Shivratri Vrat Katha In Hindi: सावन शिवरात्रि व्रत कथा पढ़ने से शिव होंगे प्रसन्न

Masik Shivratri Vrat Katha: आज यानि 14 अगस्त को सावन की दूसरी शिवरात्रि (Sawan Ki Dusri Shivratri) मनाई जा रही है। ये अधिक मास की शिवरात्रि है। जो हर तीन साल में एक बार आती है। जानिए इस शिवरात्रि की पावन व्रत कथा।

sawan shivratri vrat katha in hindi

Shivratri Vrat Katha In Hindi

Masik Shivratri Vrat Katha: पंचांग अनुसार शिवरात्रि का त्योहार प्रत्येक महीने की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व माना गया है। 14 अगस्त को अधिक मास सावन शिवरात्रि (Monthly Shivratri Katha) मनाई जा रही है। इस दिन शिव भक्त भगवान शिव की विधि विधान पूजा करते हैं साथ ही शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं। इसके बाद शाम के समय में शुभ मुहूर्त में पूजा कर शिवरात्रि की कथा सुनते हैं। यहां देखिए सावन शिवरात्रि की पावन व्रत कथा।

अधिक मास सावन शिवरात्रि व्रत कथा (Sawan Shivratri Vrat Katha In Hindi)

पौराणिक कथा अनुसार चित्रभानु नाम का एक शिकारी था। जो पशुओं को मारकर अपना परिवार चलाता था। उसने एक साहूकार के कर्जा ले रखा था लेकिन समय पर कर्ज न चुका पाने के कारण साहूकार ने उसे अपने यहां बंदी बना लिया था। संयोग से उस दिन शिवरात्रि पर्व था।

साहूकार के यहां बंदी रहते हुए शिकारी शिव-संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा, वहीं उसने शिवरात्रि की व्रत कथा भी सुनी। शाम के समय साहूकार ने उसे बुलाया और कर्ज चुकाने का पूछा तो शिकारी ने कहां वो अगले दिन कर्ज जरूर चुका देगा। साहुकार ने उसकी बात मान ली और उसे छोड़ दिया। इस तरह से शिकारी जंगल में शिकार के लिए निकल गया। दिनभर बंदी गृह में बंद रहने के कारण वो भूखा-प्यासा था।

सूर्यास्त के बाद वो एक जलाशय के पास गया और वहां किनारे पर स्थित पेड़ पर थोड़ा सा जल लेकर चढ़ गया। शिकारी को पूरी उम्मीद थी कि यहां कोई न कोई जानवर अपनी प्यास बुझाने ज़रूर आयेगा। शिकारी बेल-पत्र के पेड़ पर था और संयोग से उस पेड़ के नीचे एक शिवलिंग भी था जो बेलपत्रों की वजह से ढका था।

शिकारी ने मचान बनाते समय जैसे ही टहनियां तोड़ीं, वो संयोग से शिवलिंग पर जा गिरीं। इस तरह से दिनभर भूखे-प्यासे रहकर शिकारी ने संयोग से शिवलिंग पर बेलपत्र भी चढ़ा दिए। एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब के किनारे पहुंची।

शिकारी ने उसे देखकर धनुष पर तीर चढ़ा दिया इस दौरान शिकारी के हाथ के धक्के से कुछ पत्ते और जल की कुछ बूंदे नीचे बने शिवलिंग पर जा गिरी और अनजाने में ही शिकारी की पहले प्रहर की पूजा संपन्न हो गई।

मृगी बोली, हे शिकारी मैं गर्भिणी हूं मुझे जाने दो मैं शीघ्र ही प्रसव करूंगी। तुम एक साथ दो जीवों की हत्या का पाप अपने सिर पर मत लो। मैं वादा करती हूं कि अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी, तब तुम मुझे मार लेना। शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी को जाने दिया।

कुछ देर बाद एक और मृगी वहां से निकली। शिकारी ने फिर धनुष पर बाण चढ़ा दिया। इस तरह से शिकारी से एक बार फिर से अनजाने में कुछ और बेलपत्र नीचे शिवलिंग पर जा गिरे और उसकी दूसरे प्रहर की पूजा भी पूरी हो गई।

मृगी ने विनम्रतापूर्वक उस शिकारी से कहा क‍ि मैं थोड़ी देर पहले ऋतु से निवृत्त हुई हूं। अपने प्रिय को ढूंढ रही हूं। मैं अपने पति से मिलकर शीघ्र ही वापस आ जाऊंगी। शिकारी ने उस मृगी को भी जाने दिया।

दो शिकार को खोकर शिकारी काफी परेशान हो गया था। रात्रि का आखिरी पहर बीतने को था कि तभी एक और मृगी अपने बच्चों के साथ वहां आई। शिकारी ने उसे देख तुरंत धनुष पर तीर चढ़ा दिया। मृगी बोली, मैं इन बच्चों को इनके पिता को देकर वापस लौट आऊंगी। इस समय मुझे मत मारो।

शिकारी ने कहा मैं इतना मूर्ख थोड़ी हूं कि अपने सामने आए शिकार को ऐसे ही जानें दूं। इससे पहले भी मैं दो शिकार छोड़ चुका हूं। मेरे बच्चे भूख-प्यास से व्याकुल होंगे। मृगी ने कहा कि जैसे तुम्हें अपने बच्चों की चिंता है, वैसे ही मुझे भी इनकी फिक्र है इसलिए मेरे बच्चों के लिए ही सही मुझे थोड़ी देर का जीवनदान दे दो। मेरा विश्वास करो, मैं इन बच्चों को इनके पिता को देकर तुम्हारे पास तुरंत लौट आऊंगी। मृगी की बात सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गई। उसने उसे भी नहीं मारा।

शिकार न कर पाने की वजह से परेशान शिकारी पेड़ पर बैठा बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंक रहा था। इस तरह से उसके तीसरे प्रहर की पूजा भी संपन्न हो गयी। पौ फटने को हुई तो एक मृग उसी रास्ते से गुजरा। शिकारी ने इस बार तय कर लिया था कि चाहे कुछ भी हो जाए इस शिकार को अपने हाथ से नहीं जाने देगा।

शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग ने कहा यदि तुमने मुझसे पहले आने वाली तीन मृगियों और उनके बच्चों को मार दिया है तो मुझे भी शीघ्र मार दो जिससे मुझे उनके वियोग का दुःख न सहना पड़े। लेकिन अगर तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ कुछ समय के लिए जीवन दान दे दो। मैं वचन देता हूं कि मैं उनसे मिलकर तुम्हारे पास उपस्थित हो जाऊंगा।

मृग की बात सुनकर शिकारी ने इससे पहले छोड़े हुए तीनों शिकार की बात मृग को बता दी। तब मृग ने कहा कि मेरी तीनों पत्नियां जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु का समाचार सुनकर वो अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएंगी। अतः जैसे तुमने उन पर विश्वास करके उन्हें छोड़ा दिया है वैसे ही मुझे भी जाने दो। मैं उन सभी को लेकर तुम्हारे पास शीघ्र ही उपस्थित हो जाऊंगा।

उपवास, रात्रि-जागरण और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ने से शिकारी का हृदय अब निर्मल हो गया था। उसके हाथ से धनुष छूट गया और उसने अपने इस शिकार को भी जाने दिया। थोड़ी देर में वह मृग सपरिवार शिकारी के सामने उपस्थित हो गया। जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता और आपसी प्रेम भावना देखकर शिकारी को अपने पर बड़ी ग्लानि हुई। उसके नेत्रों से आंसू निकलने लगे। उसने मृग परिवार को जाने दिया। अब उसका मन जीवन हिंसा से हट चुका था।

शिकारी से प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उसे अपने दिव्य दर्शन दिये और उसे सुख-समृद्धि का वरदान दिया साथ ही गुह नाम प्रदान किया। ये वही गुह था जिसके साथ भगवान श्री राम ने मित्रता की थी।

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    TNN अध्यात्म डेस्क author

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