Datta Purnima: दत्त पूर्णिमा की तारीख ही नहीं जानिए पूरी पूजन विधि , इसलिए है बेहद खास
Datta Purnima: हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा को दत्त जयंती, देव दत्तात्रेय के अवतरण के रूप मे बड़ी धूम-धाम से मनायी जाती है। भगवान दत्तात्रेय एक समधर्मी देवता है और उन्हें त्रिमूर्ति अथार्त ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश का अवतार माना जाता है। इस बार 7 दिसंबर को दत्त जयंती पड़ रही है। और पढ़ें
दत्त पूर्णिमा की तारीख नहीं जानिए पूरी पूजन विधि
- ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश के अवतार हैं भगवान दत्तात्रेय
- देवी अनसूया की कोख से हुआ था भगवान दत्तात्रेय का जन्म
- इस बार 7 दिसंबर को मनाया जाएगा दत्त जयंती
Datta Purnima: हिन्दू धर्म में भगवान दत्तात्रेय को भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक माना जाता है। मान्यता है कि, भगवान दत्तात्रेय एक ऐसे ऋषि हैं जिन्होंने बिना गुरु के ज्ञान प्राप्त किया। भगवान दत्तात्रेय की पूजा महाराष्ट्र, गोवा, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना और गुजरात और मध्य प्रदेश में किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा को दत्त जयंती बड़ी ही धूम-धाम से मनायी जाती है। इसबार दत्त जयंती 7 दिसंबर को पड़ रहा है। दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु और महेश का अवतार माना जाता है। तीन सिर और छह भुजाओं वाले भगवान दत्तात्रेय का जन्म ऋषि अत्रि और उनकी पत्नी देवी अनसूया से हुआ था। आइए जानते हैं पूजा का महत्व, पूजा विधि और कथा।
दत्त पूर्णिमा का महत्व
मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा के दिन भगवान दत्तात्रेय की जयंती होती है। इस दिन विशेष पूजा की जाती है। इस दिन भक्त एक दिन का उपवास रखते हैं और भगवान दत्तात्रेय की पूजा करने के लिए ध्यान लगाते हैं। आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार दत्तात्रेय के तीन सिर तीन गुणों के प्रतीक माने जाते हैं-- सत्त्व, रजस और तमस। वहीं इनके छह हाथ यम, नियम, साम, दम, दया का प्रतीक माना जाता है।
दत्त पूर्णिमा की पूजन विधि
भगवान दत्तात्रेय की उपासना करने वाले प्रातः ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थान पर चौकी बिछाएं और उसे गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करें। इसके बाद भगवान दत्तात्रेय कि तस्वीर स्थापित कर फूल, माला आदि अर्पित करें। यह सब करने के बाद भगवान दत्तात्रेय को विधिविधान से धूप व दीप दिखाएं। अंत में आरती कर सबमें प्रसाद वितरित करें।
भगवान दत्तात्रेय की कथा
भगवान दत्तात्रेय की कथा के अनुसार, देवी अनसूया के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने के लिए ब्रह्मा, विष्णु, महेश पृथ्वी लोक पर आते हैं। तीनों ने माता अनसूया के सम्मुख भोजन की इच्छा प्रकट की। साथ ही शर्त रखी कि वह उन्हें निर्वस्त्र होकर भोजन कराएं। इस पर माता अनसूया संशय में पड़ गई। उन्हें अपनी दिव्य दृष्टि से ज्ञात हो गया कि उनके पास ऋषि बनकर स्वयं ब्रह्मा विष्णु और महेश आए हैं। जिसके बाद माता अनसूया ने अत्रिमुनि के कमंडल से जल निकाला और तीनों साधुओं पर छिड़क दिया। इसपर तीनों छह माह के शिशु बन गए। तब माता ने उन्हें भोजन कराया। तीनों देवों को शिशु बन जाने पर पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी पृथ्वी लोक में पहुंचीं और माता अनसूया से क्षमा याचना करने लगी। साथ ही तीनों देवों ने भी अपनी गलती को स्वीकार कर माता की कोख से जन्म लेने का आग्रह किया। जिसके बाद तीनों देवों ने दत्तात्रेय के रूप में जन्म लिया। उसी दिन से इस त्योहार को मनाया जाने लगा।
डिस्क्लेमर : यह पाठ्य सामग्री आम धारणाओं और इंटरनेट पर मौजूद सामग्री के आधार पर लिखी गई है। टाइम्स नाउ नवभारत इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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