सनातन धर्म पर बयान: वैचारिक विरोध या वोट बैंक पर निशाना साधने की कवायद
तमाम कोशिशों के बावजूद लोगों के मन में ये सवाल उठना स्वाभाविक है कि उदयनिधि के बयान को लेकर अगर स्टैंड क्लियर है फिर खुद कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे और कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियंक खरगे बयान के समर्थन में क्यों खड़े हुए?
उदयनिधि के बयान से सियासी हंगामा
तमिलनाडु के सीएम स्टालिन के बेटे उदयनिधि का सनातन धर्म के नाश वाले बयान के बाद देश की राजनीति में भूचाल आया हुआ है। भारतीय जनता पार्टी के लिए उदयनिधि का बयान वो सुनहरा मौका है जिसका फायदा नवजात इंडिया गठबंधन को हिंदू विरोधी बताकर उत्तर भारत में उठा लेना चाहती है। हिंदुत्व की राजनीति करने वाली बीजेपी ने उदयनिधि के बयान पर कांग्रेस नेतृत्व की चुप्पी पर आड़े हाथों लिया तो कांग्रेस संगठन ने सारे धर्म एक समान की बात कहकर इस बयान से किनारा कर लिया।
लेकिन सूत्र बताते हैं कि उदयनिधि के सनातन धर्म को डेंगू मलेरिया की तरह मिटा देने के बयान को लेकर INDIA गठबंधव में दो मत हैं। सूत्रों के हवाले से आपको विस्तार से बताते हैं कि बीजेपी के तमाम हमलों के बावजूद कांग्रेस समेत कई दलों के सधे हुए जवाब के पीछे दरअसल एक सोची समझी रणनीति है।
गांधी परिवार समेत ममता, उद्धव और आप ने बयान को गैरजरूरी माना
सूत्र बताते हैं कि उदयनिधि के बयान को गैरजरूरी मानने वाला तबका है कांग्रेस अध्यक्ष और गांधी परिवार का। इसके साथ ही खुद को सनातनी बता रहीं ममता बनर्जी और आम आदमी पार्टी का उद्धव ठाकरे ने भी इस बयान को अनुचित माना। इन सबके मुताबिक अगर उदयनिधि ने बयान न दिया होता तो बेहतर ही होता। क्योंकि इस तरह के बयानों से बीजेपी को उत्तर भारत में सीधा फायदा पहुंचता है।
सूत्र ये भी बताते हैं कि उदयनिधि के बयान को लेकर इंडिया खेमे में जबरदस्त विचार विमर्श का दौर भी चला। जिसके बाद कांग्रेस के नेताओं ने डीएमके को ये साफ मैसेज दे दिया कि अगर इस तरह के मुद्दे उठाने ही हैं तो धर्म पर सीधे सवाल खड़े न करके उसकी कुरीतियों जैसे जातिगत भेदभाव, छुआछूत, महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार और धार्मिक पाखंड का उदाहरण देकर निशाना साधा जाए। डीएमके ने भी इस बात को लेकर हामी भरी है।
सूत्रों से ये भी जानकारी मिली है कि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के घर पर मंगलवार को शाम में इंडिया खेमे के फ्लोर नेता सदन की होने वाली बैठक में भी ये मुद्दा उठेगा। साथ ही डीएमके को संदेश दे दिया जाएगा कि ऐसे संवेदनशील मामलों में क्या सावधानी रखनी है।
लंबे समय में राजनीतिक फायदा देगा उदयनिधि का बयान
तमाम कोशिशों के बावजूद लोगों के मन में ये सवाल उठना स्वाभाविक है कि उदयनिधि के बयान को लेकर अगर स्टैंड क्लियर है फिर खुद कांग्रेस अध्यक्ष के बेटे और कर्नाटक सरकार में मंत्री प्रियंक खरगे बयान के समर्थन में क्यों खड़े हुए? वहीं तमिलनाडु से कांग्रेस पार्टी के ही सांसद कार्ति चिदंबरम ने बयान पर हामी क्यों भरी?
इसको समझने के लिए हमें बहुत पीछे नहीं जाना होगा। इसी साल कर्नाटक में विधानसभा चुनाव हुए और कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत की सरकार बनाई। जब चुनाव प्रचार अपने चरम पर था तो कांग्रेस ने अचानक से बजरंग दल को बैन करने की चुनावी घोषणा कर दी। बीजेपी ने लाख कोशिशें की, कांग्रेस को हिंदू विरोधी बताया लेकिन वो वोटों में तब्दील नहीं हो पाया। इसके उलट बीजेपी के आक्रामक तेवर ने मुसलमान वोटरों को उससे बिल्कुल दूर कर दिया साथ ही इसका खामियाजा जनता दल एस को भी भुगतना पड़ा, जहां वो अपने ही गढ़ में बुरी तरह से हार गई।
अब आते हैं सीधा कांग्रेस और इंडिया खेमे पर जिसकी राय बिल्कुल जुदा है और वो उदयनिधि के बयान में राजनीतिक फायदा देख रहा है। ये धड़ा दक्षिण भारत के राज्यों के नेताओं और दलित पिछड़ों की राजनीति करने वाली राष्ट्रीय जनता दल का है। कांग्रेस समेत कई घटक दलों के दक्षिण भारत के नेताओं और लालू की आरजेडी का मानना है कि उदयनिधि के इस बयान का लंबे समय में फायदा ही होगा।
हल्की प्रतिक्रया देकर मुद्दा खत्म करने की कोशिश
राजनीति में एक कहावत है कि लोगों की याददाश्त कमजोर होती है। जनता को नया मुद्दा मिलते ही वो पिछला भुला देती है। ऐसे में इन नेताओं का मानना है कि लोकसभा चुनाव में 6 महीने से ज्यादा का वक्त है और इसे भुलाकर आगे बढ़ चुके होंगे। कामचलाऊ प्रतिक्रिया देकर इस मुद्दे को यही खत्म कर दिया जाए। लेकिन इसका सकारात्मक असर दलित, पिछड़े, अतिपिछड़े, अल्पसंख्यक और आदिवासियों के वोट बैंक पर पड़ेगा।
इस सोच के पीछे की वजह उत्तर भारत में कांग्रेस की कमजोर राजनीतिक जमीन भी है। कांग्रेस समेत बाकी दलों को 2024 के आम चुनावों में उत्तर भारत से ज्यादा दक्षिण भारत से उम्मीदें हैं। ऐसे में नेता चाहते हैं कि इंडिया गठबंधन दक्षिण भारत से बीजेपी का सूपड़ा साफ कर सके।
अब तक इंडिया एलायंस की तीन बैठकें हुई हैं। गठबंधन के साथी दलों की राज्य स्तर की पॉलिटिक्स को लेकर ये आम राय बनी हुई है कि ये दल स्थानीय मुद्दों पर अपनी राजनीति जारी रखेंगे। यही वजह है उदयनिधि अपने बयान पर न सिर्फ डंटे हुए हैं बल्कि सनातन धर्म को भेदभाव वाला धर्म बताकर उसे तमिलनाडु से साफ करने की बात भी दोहरा रहे हैं। लेकिन उनका बयान तमिलनाडु के उस द्रविड़ आंदोलन का प्रतिबिंब है जिसकी नींव अन्नादुरई और पेरियार ने रखी थी। जिसमें धर्म से धार्मिक विश्वासों, ब्राह्मणवादी सोच और हिंदू कुरीतियों पर प्रहार करने की बात कही गई। और इसी आंदोलन के जनक महान समाज सुधारक ईवीके रामास्वामी पेरियार की लाइन पकड़कर उदयनिधि के दादा करुणानिधि ने राजनीति में अपना कद बड़ा कर लिया था।
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