Rabindranath Tagore Death Anniversary 2023: भारत ही नहीं इन देशों के लिए राष्ट्रगान की रचना 'गुरुदेव' रवींद्रनाथ टैगोर ने ही की, जानें कुछ रोचक तथ्य
रवींद्रनाथ टैगोर एक कवि थे, कहानीकार थे, गीतकार थे, संगीतकार थे, लेखक और नाटककार थे, चित्रकार भी थे ,यही नहीं इसके अलावा वे एक महान विचारक थे, साल 1941 में आज ही के दिन उनका निधन हो गया था।
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर को 1913 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था
रबीन्द्रनाथ ठाकुर विश्वविख्यात कवि, साहित्यकार, दार्शनिक और भारतीय साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता हैं। उन्हें गुरुदेव के नाम से भी जाना जाता है। बांग्ला साहित्य के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना में नयी जान फूँकने वाले युगदृष्टा वे ही थे। वे एशिया के प्रथम नोबेल पुरस्कार सम्मानित व्यक्ति हैं। वे एकमात्र कवि हैं जिसकी दो रचनाएँ दो देशों का राष्ट्रगान बनीं - भारत का राष्ट्र-गान 'जन गण मन' और बाँग्लादेश का राष्ट्रीय गान 'आमार सोनार बांङ्ला' गुरुदेव की ही रचनाएँ हैं।
रबीन्द्रनाथ ठाकुर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता के जोड़ासाँको ठाकुरबाड़ी में हुआ। उनकी आरम्भिक शिक्षा प्रतिष्ठित सेंट जेवियर स्कूल में हुई। उन्होंने बैरिस्टर बनने की इच्छा में 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजटोन में पब्लिक स्कूल में नाम लिखाया फिर लन्दन विश्वविद्यालय में कानून का अध्ययन किया किन्तु 1880 में बिना डिग्री प्राप्त किए ही स्वदेश पुनः लौट आए। सन् 1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ।
भारत का जो राष्ट्रगान है- जन गण मन, उसे रवींद्रनाथ टैगोर ने लिखा था, टैगोर ने देश के अधिनायक की बात कही थी, केवल भारत ही नहीं पड़ोसी देश बांग्लादेश के राष्ट्रगान में भी टैगोर का योगदान है।
16 साल की उम्र में टैगोर की पहली लघुकथा प्रकाशित
रवींद्रनाथ टैगोर को बचपन से ही कविताएं और कहानियां लिखने में रूचि थी, सिर्फ आठ साल की उम्र में रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी पहली कविता लिखी थी, 16 साल की उम्र में टैगोर की पहली लघुकथा प्रकाशित हो गई थी।
'गीतांजलि' के लिए मिला नोबेल पुरस्कार
1882 में उन्होंने अपनी पहली बंगाली लघुकथा 'भिखारिणी' लिखी. 1913 में रविंद्रनाथ टैगोर को उनके साहित्य में महान योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया, यह पुरस्कार उन्हें उनके द्वारा लिखी हुई 'गीतांजलि' के लिए मिला था।
उन्होंने अपने नोबेल पुरस्कार राशि से एक स्कूल बनाया
वर्ष 1921 में उन्होंने 'शांति निकेतन' की नींव रखी थी, जो आज सेंट्रल यूनिवर्सिटी 'विश्व भारती' के नाम से जाना जाता है, जिसने देश को कई प्रतिष्ठित व्यक्तित्व दिए जैसे अमर्त्य सेन, सत्यजीत रे और इंदिरा गांधी, रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन में "विश्व-भारती" स्कूल के निर्माण में अपनी नोबेल पुरस्कार राशि का निवेश किया था।
1913 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था
गुरुदेव टैगोर को उनकी सबसे लोकप्रिय रचना गीतांजलि के लिए 1913 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, उन्हें 'नाइटहुड' की उपाधि भी मिली थी, जिसे उन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड (1919) के बाद लौटा दिया था।
उनका नोबेल पुरस्कार चोरी हो गया था
2004 में, शांतिनिकेतन में एक चोरी में टैगोर का नोबेल पुरस्कार पदक चोरी हो गया था। स्वीडिश अकादमी ने उन्हें दो प्रतिकृतियों, एक स्वर्ण और एक रजत, के रूप में फिर से पुरस्कार दिया।
रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचनाओं पर बन चुकी है कई फिल्म
रवींद्रनाथ टैगोर की लघु कहानी पर रितुपर्णो घोष ने साल 2003 में 'चोखेर बाली' बनाई वहीं साल 1953 में रिलीज हुई बिमल रॉय की फिल्म 'दो बीघा जमीन' अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय फिल्म बनी थी, जिसकी कहानी रवींद्रनाथ टैगोर की बंगाली रचना 'दुई बीघा जोमी' पर आधारित थी।
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