Navaratri 2022: रांची के इस मंदिर में 16 दिन होती है मां की आराधना, पान पत्र गिरने के बाद होती है विदाई, ये हैं मंदिर से जुड़ी खास बातें

Ranchi: रांची में चंदवा उपखंड से करीब 10 किमी की दूरी पर स्थित रांची चतरा रोड पर स्थित है ये चमत्कारों व रहस्यों से लबरेज मंदिर। मां का मंदिर मंदागिरि की पहाड़ियों पर मौजूद है। इस मंदिर में सबसे खास बात तो ये है कि, नवरात्रि में मां की पूजा का दौर पूरे 16 दिन तक चलता है। जबकि अन्य स्थानों पर सिर्फ 9 दिन। बताया जाता है कि, देवी अहिल्या ने भी बंगाल यात्रा के दौरान अपने कारवां संग मंदिर पहुंची व मां की कई घंटों तक आराधना की।

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रांची के इस मंदिर में 16 दिन चलती है पूजा, ये हैं इसकी खासियत। (Photo-Facebook)

मुख्य बातें
  1. यहां मां उग्रतारा की नवरात्रों में 16 दिन की जाती है आराधना
  2. मां को रसोई में लगाया जाता है वर्ष भर दाल चावल का भोग
  3. देवी अहिल्या ने भी मां की बहुत समय तक की थी पूजा-अर्चना

Ranchi Navarata 2022 : मां शक्ति की आराधना का दौर सोमवार 26 सितंबर से कलश के साथ आरंभ होगा। नौ दिनों तक देवी भगवती की उपासना का दौर चलेगा। इसको लेकर हर तरफ श्रद्धा का दौर नजर आने लगा है। माता रानी के उपासक भक्ति में सराबोर होने को लेकर उत्साहित हैं। बात दें कि, कोरोना महामारी के दो साल के बाद अब सब कुछ सामान्य हुआ है तो दुर्गा पूजा को लेकर देश भर में बड़े पैमाने पर तैयारियां की गई हैं। उपासना के इस दौर में यहां जिक्र हो रहा है देवी मां की 52 शक्ति पीठों में से एक मां उग्रतारा के मंदिर का। झारखंड के नक्सल इलाके में लातेहर जनपद के तहत चंदवा उपखंड से करीब 10 किमी की दूरी पर रांची चतरा रोड पर स्थित है ये चमत्कारों व रहस्यों से लबरेज मंदिर। मां का मंदिर मंदागिरि की पहाड़ियों पर मौजूद है।

इस मंदिर में सबसे खास बात तो ये है कि, नवरात्रि में मां की पूजा का दौर पूरे 16 दिन तक चलता है। जबकि अन्य स्थानों पर सिर्फ 9 दिन। बताया जाता है कि, यह मंदिर अति प्राचीन है। जन श्रुति के मुताबिक देवी अहिल्या ने भी बंगाल यात्रा के दौरान अपने कारवां संग मंदिर पहुंची व मां की कई घंटों तक आराधना की।

मां के दर पर विजयादशमी को चढ़ता है पान

मां उग्रतारा के मंदिर में विजयादशमी पर्व 16 दिन की पूजा के बाद मनाया जाता है। विजयादशमी के दिन मां के दर पर पान चढ़ाने की रवायत वर्षों से निभाई जा रही है। इसमें सबसे हैरानी की बात तो ये है कि, मां के आसन पर पान चढ़ाने के बाद उसके गिरने की

प्रतीक्षा की जाती है। इसके बाद जब पान गिर जाता है तो इसे मां की अनुमति समझ विशेष पूजा के बाद नवरात्रि का समापन कर दिया जाता है। कई बार पान गिरने में विलंब होने के चलते आराधना का दौर लगातार जारी भी रहा है। मां को साल भर सिर्फ चावल व दाल का भोग लगता है। इसमें सबसे खास बात तो यह है कि, मां की मूर्ति को रसोई घर में ले जाकर भोग लगाया जाता है। इसके बाद प्रतिमा को पुन: गर्भगृह में स्थापित किया जाता है। मां की सेवा के लिए मंदिर में यहां के मिश्रा और पाठक परिवार के लोग हैं। मंदिर को लेकर कई दंतकथाएं प्रचलित हैं।

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