Khatu Shyam History: कौन हैं बाबा खाटू श्याम, जानिए उनका इतिहास और पौराणिक कथा

Khatu Shyam Story: पौराणिक कथा अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने भीम पौत्र बर्बरीक को कलयुग में उनके श्याम नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था। इसलिए ही इन्हें श्याम बाबा के नाम से जाना जाता है। जानिए खाटू श्याम जी की कहानी।

khatu Shyam ji ki kahani

Khatu Shyam Story In Hindi

Khatu Shyam Story (खाटू श्याम जी की कहानी): खाटू श्याम जी भगवान श्री कृष्ण के कलयुगी अवतार माने जाते हैं। पौराणिक कथा अनुसार ये भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र थे। जिनका नाम बर्बरीक था। यही बर्बरीक आगे चलकर खाटू श्याम बाबा के नाम से जाने गये। दरअसल बर्बरीक के खाटू श्याम जी बनने के पीछे एक कहानी है। जिसके अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से प्रसन्न होकर उन्हें कलयुग में अपने श्याम नाम से पूजे जाने का आशीर्वाद दिया था। जानिए खाटू श्याम जी की पूरी कहानी।

Khatu Shyam Ji Ki Kahani In Hindi (खाटू श्याम जी की कहानी)

महाभारत काल में एक महान आत्मा का अवतरण हुआ था जिसे हम भीम पौत्र बर्बरीक के नाम से जानते हैं। बर्बरीक ने महीसागर संगम स्थित गुप्त क्षेत्र में नवदुर्गाओं की तपस्या कर दिव्य बल और तीन तीर व धनुष प्राप्त किए। कुछ सालों बाद कुरुक्षेत्र में युद्ध के लिए कौरव और पांडवों की सेनाएं एकत्रित हुई। युद्ध का शंखनाद होने को था कि यह वृतांत बर्बरीक को ज्ञात हो गया और वे माता का आशीर्वाद लेकर युद्धभूमि की तरफ प्रस्थान कर गए। उन्होंने ये तय कर लिया था कि युद्ध में जो भी हारेगा वे उसकी सहायता करेंगे। भगवान श्री कृष्ण को जब इस बारे में पता चला तो उन्होंने सोचा कि ऐसी स्थिति में युद्ध कभी समाप्त नहीं होगा। इसलिए उन्होंने ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक को रोकने का निश्चय किया।

भगवान कृष्ण ने बर्बरीक का मार्ग रोककर उनसे पूछा कि आप कहां प्रस्थान कर रहे हैं। बर्बरीक ने कहा कि वह कुरुक्षेत्र जाकर अपना कर्तव्य निर्वाह करेंगे। इस पर ब्राह्मण रूप में श्री कृष्ण ने उन्हें अपना कौशल दिखाने के लिए कहा। बर्बरीक ने एक ही तीर से पेड़ के सभी पत्तों को भेद दिया सिवाय उस एक पत्ते के जो श्री कृष्ण ने अपने पैरों के नीचे दबा रखा था। बर्बरीक ने ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण से प्रार्थना की कि वे अपना पैर उस पत्ते के ऊपर से हटा लें अन्यथा उनका पैर घायल हो सकता है। श्री कृष्ण ने अपना पैर हटा लिया और साथ में बर्बरीक से एक वरदान मांगा। बर्बरीक ने कहा आप जो चाहे मांग सकते हैं। ब्राह्मण रूपी श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश दान मांगा। यह सुनकर बर्बरीक तनिक भी विचलित परेशान नहीं हुए लेकिन उन्होंने श्रीकृष्ण को उनके वास्तविक रूप में दर्शन देने की बात की क्योंकि बर्बरीक को ये ज्ञान हो गया था कि ऐसा दान कोई भी साधारण व्यक्ति नहीं मांग सकता।

तब श्रीकृष्ण अपने वास्तविक रूप में आए। उन्होंने बर्बरीक का मस्तक रणचंडिका को भेंट करने के लिए मांगा और साथ ही ये भी वरदान दिया कि कलयुग में तुम मेरे नाम से जाने जाओगे। मेरी ही शक्ति तुम में वास करेगी। सभी तुम्हारे मस्तक की पूजा करेंगे। जब तक यह पृथ्वी, नक्षत्र, चंद्रमा तथा सूर्य रहेंगे तब तक तुम भी लोगों के द्वारा मेरे श्री श्याम रूप में पूजनीय रहोगे। भगवान कृष्ण ने बर्बरीक के मस्तक को अमृत से सींचा और उसे अजर अमर कर दिया। बर्बरीक के मस्तक ने संपूर्ण महाभारत युद्ध देखा और युद्ध के निर्णायक भी रहे। युद्ध के बाद बर्बरीक भगवान कृष्ण से आशीर्वाद लेकर अंतर्ध्यान हो गए।

लंबे समय बाद कलयुग का प्रसार बढ़ते ही भगवान कृष्ण के वरदान से बर्बरीक भक्तों का उद्धार करने के लिए खाटू नगरी में चमत्कारी रूप से प्रकट हुए। भगवान के प्रकट होने की घटना भी बेहद अद्भुत है। एक गाय प्रतिदिन अपने घर जाते समय एक स्थान पर खड़ी होकर अपने चारों थनों से दूध की धाराएं बहाती थी। जब ग्वाले ने गाय को ऐसा करते देखा तो ये सारा वृत्तांत भक्त नरेश जो खंडेला के राजा थे उन्हें सुनाया। राजा भगवान का स्मरण कर भाव विभोर हो गया। राजा के सपने में भगवान श्याम देव ने प्रकट होकर कहा मैं श्यामदेव हूं जिस स्थान पर गाय अपना दूध बहानी है, वहां मेरा शालिग्राम शिलारूप विग्रह है, उसकी खुदाई करके आप उसे विधि विधान से प्रतिष्ठित करवा दो। मेरे इस शिला विग्रह को पूजने जो भी भक्त खाटू आएंगे, उनका कल्याण होगा। राजा ने खुदाई से प्राप्त शिलारूप विग्रह को विधिवत प्रतिष्ठित कराया दिया।

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    TNN अध्यात्म डेस्क author

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