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मुख्यमंत्री : बिहार के 20वें मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव, जिन्होंने आडवाणी का रथ रोका; रेलवे को फायदे में लाकर कहलाए मैनेजमेंट गुरु

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में लालू प्रसाद यादव भले ही चुनाव न लड़ रहे हों लेकिन उनकी रणनीतियां अब भी राष्ट्रीय जनता दल के काफी काम आ रही हैं। चुनावों के मद्देजनर हम आपको स्पेशल मुख्यमंत्री सीरीज में सभी मुख्यमंत्रियों के बारे में बता रहे हैं। आज जानिए बिहार के 20वें मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बारे में।

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बिहार के 20वें मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव

'मेरा जन्म 1948 में हुआ और मेरे डर से अंग्रेज 1947 में ही गायब हो गए।' जी हां, बात लालू प्रसाद यादव की हो रही है। लालू यादव का जन्म 11 जून 1948 को बिहार में गोपालगंज जिले के फुलवरिया गांव में एक साधारण ग्वाला परिवार में हुआ था। उनके पिता कुंदन राय के पास लगभग 2 बीघा जमीन और कुछ जानवर थे। घास-फूस की झोपड़ी में पले लालू प्रसाद यादव आगे चलकर भारतीय राजनीति के सबसे चर्चित और विवादित नेताओं में से एक बन गए। चारा घोटाला मामले में जेल भी गए और उन पर देश का रेल मंत्री रहते हुए नौकरी के बदले जमीन लेने का भी आरोप लगा। चारा घोटाला मामले में जब जेल गए तो अपनी पत्नी को मुख्यमंत्री बना गए। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दौरान हमारी स्पेशल मुख्यमंत्री सीरीज में आज हम बात कर रहे हैं बिहार के 20वें मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव के बारे में। चलिए जानते हैं -

गरीबी में बीता लालू यादव का बचपन

लालू प्रसाद यादव का परिवार गरीब था और उनका बचपन आभावों में गुजरा। वह सात भाई-बहनों में छठे नंबर के थे। दिनभर गाय-भैंस चराना और शाम ढले उनकी पीठ पर बैठकर वापस घर आना, लालू के बचपन की दिनचर्या थी। लालू यादव ने अपनी आत्मकथा 'गोपालगंज टू रायसीना : माय पॉलिटिकल जर्नी' भी लिखी है। इसमें वह अपने बचपन के बारे में कहते हैं, 'हमारे पास न कपड़े थे, न ठीक से खाने को अन्न। मां मकई या अन्य मोटे अनाज को पानी में उबालकर देतीं। पिता दूध लाते थे और हम उस दूध में उबला खाना मिलाकर खाते थे।' इसी गरीबी ने लालू यादव को स्वयं हंसना और दूसरों को हंसाना भी सिखाया। गांव के लोगों को अपने चुटकुलों पर हंसाना और ढोलक बजाकर मनोरंजन करना लालू के बचपन का फेवरिट पासटाइम था।

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एक तंज ने बदल दी लालू प्रसाद की जिंदगी

एक दिन लालू यादव ईंट के टुकड़े से स्लेट पर कुछ लिख रहे थे। इस पर जमींदार ने तंज कसते हुए कहा - 'देखो हो! अब ई ग्वाल का बेटा भी पढ़ाई करेगा, बैरिस्टर बनेगा का?' लालू यादव तो छोटे थे, लेकिन उनके चाचा यदुनंद को यह बात चुभ गई। पटना वेटनरी कॉलेज में ग्वाला यदुनंद उन्हें अपने साथ पटना ले आए और यहीं से लालू की जिंदगी ने करवट ले ली। वेटनरी कॉलेज के पास ही सरकारी स्कूल में लालू यादव की पढ़ाई शुरू हुई। वह स्कूल के नाटकों में भी भाग लेते थे और एक नाटक के लिए उन्हें बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड भी मिला। वह स्कूल में सभी के फेवरिट बन गए थे। बाद में उनका एडमिशन मिलर हाई स्कूल, शेखपुरा में कराया गया। इस स्कूल में उन्होंने एनसीसी ज्वाइन कर ली और तब उन्हें पहली बार जूता पहनने को मिला। साल 1965 में उन्होंने मैट्रिक पास की और 1966 में पटना यूनिवर्सिटी के बिहार नेशनल कॉलेज में आ गए।

फिर लालू ने सीखी राजनीति की एबीसीडी

बिहार नेशनल कॉलेज में छात्र राजनीति जोरों पर थी। लालू यादव भी सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ गए और जल्द ही नेता नरेंद्र सिंह के करीब भी आ गए। फिर उन्होंने 'मुफ्त यूनिफॉर्म और बूट' के लालच में पुलिस भर्ती में भाग लिया, लेकिन वह दौड़ में फेल हो गए। आखिर उनके लिए भविष्य ने अलग ही भूमिका जो तय कर रखी थी। साल 1970 में लालू यादव पटना यूनिवर्सिटी छात्रसंघ के महासचिव और फिर बाद में अध्यक्ष भी बन गए। इस बीच उसी वेटनरी कॉलेज में उन्हें नौकरी मिल गई, जिसमें उनके चाचा थे। साल 1973 में बसंत पंचमी के दिन राबड़ी देवी के साथ उनकी शादी भी हो गई। सुशील मोदी और रविशंकर प्रसाद जैसे नेता कॉलेज के उस दौर में लालू यादव के साथी थे।

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जेपी आंदोलन, गिरफ्तारी और नेता बनने का सफर

इस बीच 1974 में बिहार में जयप्रकाश नारायण यानी जेपी का आंदोलन भी शुरू हो गया। लालू यादव भी अपनी पूरी ताकत के साथ इस आंदोलन से जुड़ गए। साल 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी। इस दौरान लालू प्रसाद यादव ने दो साल जेल में बिताए। इसी दौरान उनकी दोस्ती मौजूदा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, शरद यादव और रामविलास पासवान से भी हुई। साल 1977 में इमरजेंसी खत्म हुई और विपक्षी पार्टियों ने मिलकर जनता पार्टी बनायी तो लालू यादव को छपरा से लोकसभा का टिकट मिल गया। सिर्फ 29 साल की उम्र में लालू यादव सांसद बनकर दिल्ली पहुंच गए। लेकिन जनता पार्टी की सरकार ज्यादा समय नहीं चली और 1980 के लोकसभा चुनाव में लालू यादव को हार का सामना करना पड़ा।

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बिहार के 20वें मुख्यमंत्री बन गए लालू यादव

1980 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद लालू यादव ने बिहार की राजनीति में अपना ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने विधानसभा का रुख किया और 1980 के बिहार विधानसभा चुनाव में भाग लिया और वह जीतकर विधानसभा पहुंच गए। साल 1985 में वह एक बार फिर बिहार विधानसभा के लिए चुने गए। पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद लालू यादव बिहार में जनता दल का चेहरा बनकर उभरने लगे। इधर जनता पार्टी में फूट पड़ी और इससे टूटकर जनता दल अलग पार्टी बना। 1989 में लालू यादव एक बार फिर छपरा से लोकसभा चुनाव लड़े और जीते। 1989 के भागलपुर दंगों ने मुसलमानों को जनता दल की तरफ धकेल दिया और उधर लालू यादव स्वयं को यादव सहित पिछड़ों और निम्न जातियों का नेता बताने में सफल रहे।

Lalu Yadav PTI
लालू प्रसाद यादव की फाइल फोटो (PTI)

1990 के विधानसभा चुनाव में जनता दल सबसे बड़ा दल बना और बहुमत के करीब पहुंच गया था। जब मुख्यमंत्री चुनने की बारी आई तो जनता दल के अंदर चुनाव की तक की नौबत आ गई और इसमें लालू यादव ने बाजी मार ली। हालांकि, उस समय लालू यादव सांसद थे। फिर 10 मार्च 1990 को लालू प्रसाद यादव ने बिहार के 20वें मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ ली। लालू यादव ने मुख्यमंत्री पद की शपथ राजभवन की जगह पटना के मशहूर गांधी मैदान में ली और ऐसा करने वाले वह पहले मुख्यमंत्री बने। बाद में उन्होंने विधान परिषद की सदस्यता ग्रहण की। पहले मुख्यमंत्री श्रीबाबू के बाद लालू प्रसाद यादव बिहार के पहले मुख्यमंत्री रहे, जिन्होंने पांच साल का कार्यकाल पूरा किया। 28 मार्च 1995 को 5 साल 18 दिन तक मुख्यमंत्री रहने के बाद उन्होंने इस्तीफा दिया। चुनाव के चलते विधानसभा को भंग कर दिया गया और 7 दिन पद खाली रहा।

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सीएम बनकर भी पिऑन क्वार्टर में रहे लालू

मुख्यमंत्री बनने के बाद भी लालू यादव कुछ महीनों तक पटना में वेटनरी कॉलेज के पिऑन क्वार्टर में रहे। जब अधिकारी सुरक्षा का हवाला देकर उनसे बात करते थे तो वो कहते थे, हम चीफ मिनिस्टर हैं। सब जानते हैं, हम जहां रहेंगे, वही सीएम हाउस है। वह स्वयं ही ट्रैफिक संभालने लगते थे। शराब की दुकानों पर छापा मारते और अधिकारियों को फटकार भी लगा दिया करते थे। लोगों को उनका यह अंदाज काफी पसंद आता था।

लालू दूसरी बार बने मुख्यमंत्री और RJD का गठन

साल 1995 के विधानसभा चुनाव में जनता दल ने 324 में से 167 सीटों पर जीत दर्ज की। राघोपुर से चुनाव जीतकर आए लालू प्रसाद यादव एक बार फिर बिहार के मुख्यमंत्री बने। 4 जुलाई 1995 को उन्होंने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। चारा घोटाला मामले में 23 जून 1997 को सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की। इसके बाद जनता दल के अंदर लालू यादव के खिलाफ विरोध बढ़ गया। बस फिर क्या था 23 जुलाई 1997 को लालू यादव ने अपनी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल बना दिया। जब उनके जेल जाने की नौबत आई तो उन्होंने 25 जुलाई 1997 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का मुख्यमंत्री बना दिया। दूसरे कार्यकाल में वह 2 साल 112 दिन तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे। राबड़ी देवी देवी को विश्वास मत हासिल करने में दिक्कत आने लगी तो कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा ने समर्थन देकर उनकी सरकार को बचा लिया।

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केंद्र में किंगमेकर बनकर लौटे लालू यादव

साल 2004 के लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव किंग मेकर बनकर निकले। वह केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व में बनने वाली यूपीए सरकार में रेलमंत्री बन गए। अपने इस कार्यकाल के दौरान लालू यादव दशकों से घाटे में चल रही भारतीय रेलवे को फायदे में ले आए। इसके बाद उन्होंने भारत के कई मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट के साथ ही दुनियाभर के बिजनेस स्कूलों में प्रबंधन पर वकतव्य दिए। लालू यादव ने भारतीय रेलवे में कुल्हड़ का चलन शुरू किया। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी राजद को बिहार में सिर्फ 4 सीटें ही मिलीं और उनकी भी केंद्र सरकार में जगह नहीं बनी।

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आडवाणी का रथ रोकने वाले लालू

बात उस समय की है, जब भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी सोमनाथ से अयोध्या तक रथ यात्रा कर रहे थे। रामजन्म भूमि आंदोलन को गति देने के लिए आडवाणी यह यात्रा कर रहे थे। बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव थे। 22 अक्टूबर 1990 को समस्तीपुर सर्किट हाउस से लालू यादव ने लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करवा दिया था। बिहार में उस समय लालू यादव की सरकार भाजपा के समर्थन से चल रही थी। आडवाणी की रथयात्रा को रोकने के बाद भाजपा ने उनकी सरकार से समर्थन वापस ले लिया, लेकिन लालू यादव ने 10 विधायक तोड़कर सत्ता बचा ली थी।

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चारा घोटाले ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। साल 2013 में इसी घोटाले के चलते उन्हें पांच साल की सजा सुनाई गई और चुनाव लड़ने पर भी रोक लग गई। इसके बाद लालू यादव ने अपनी राजनीतिक विरासत अपने दोनों बेटों तेज प्रताप यादव और तेजस्वी यादव को सौंप की। दोनों विधायक बने और छोटा बेटा तेजस्वी यादव तो बिहार के उपमुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में महागठबंधन ने उन्हें अपना मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी बनाया है। तेज प्रताप यादव बिहार के स्वास्थ्य मंत्री रह चुके है। पार्टी से निकाले जाने के बाद अब उन्होंने अपनी अलग पार्टी बना ली है।

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Digpal Singh
Digpal Singh Author

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