श्रीलंका के सबसे मजबूत राजनीतिक परिवार की दास्तां, जानें कैसे खत्म हो गया रसूख
राजपक्षे परिवार के पास पहली बार सत्ता साल 2005 में आई। जब महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति बने, उसके बाद उनकी मदद के लिए उनके भाई गोटबाया राजपक्षे अमेरिका से वापस लौटे और बाद में वह डिफेंस सेक्रेटरी बन गए। श्रीलंका में एलटीटीई के खात्म का श्रेय दोनों भाइयों की जोड़ी को जाता है। 2015 तक श्रीलंका में राजपक्षे परिवार की सत्ता रही।
श्रीलंका के सबसे मजबूत परिवार की कहानी
ऐसे था दबदबा
राजपक्षे परिवार का श्रीलंका की सरकार और राजनीति में किस तरह आधिपत्य था, उसे इसी से समझा जा सकता है कि एक तरफ जहां गोटाबाया राजपक्षे श्रीलंका के राष्ट्रपति थे, वहीं उनके भाई महिंदा राजपक्षे देश के प्रधानमंत्री थे। जबकि भाई चमाल राजपक्षे सिंचाई मंत्री, अन्य भाई बासिल राजपक्षे वित्त मंत्री थे। वहीं महिंदा राजपक्षे के बेटे नमल राजपक्षे खेल मंत्री और चमाल राजपक्षे के बेटे शशींद्र राजपक्षे कृषि मंत्री थे। यानी चार भाई और 2 बेटे ,श्रीलंका सरकार के सबसे अहम पदों पर बैठे हुए थे।
13 साल सीधी सत्ता
राजपक्षे परिवार के पास पहली बार सत्ता साल 2005 में आई। जब महिंदा राजपक्षे राष्ट्रपति बने, उसके बाद उनकी मदद के लिए उनके भाई गोटबाया राजपक्षे अमेरिका से वापस लौटे और बाद में वह डिफेंस सेक्रेटरी बन गए। श्रीलंका में एलटीटीई के खात्म का श्रेय दोनों भाइयों की जोड़ी को जाता है। 2015 तक श्रीलंका में राजपक्षे परिवार की सत्ता रही। और उसके बाद विपक्ष के पास श्रीलंका की कमान पहुंची, लेकिन 4 साल बाद 2019 में एक बार फिर राजपक्षे परिवार ने चुनावों में सत्ता हासिल कर ली और इस बार गोटबाया राजपक्षे राष्ट्रपति बने। और धीरे-धीरे राजपक्षे परिवार के 6 सदस्य सरकार में शामिल हो चुके थे।
बिगड़े हालात के लिए राजपक्षे परिवार कितना जिम्मेदार
2019 के राष्ट्रपति चुनाव के समय गोटबाया राजपक्षे ने यह ऐलान किया था कि वह अगर चुनाव जीतते हैं तो टैक्स में भारी कटौती करेंगे। राजपक्षे का यह चुनावी दांव श्रीलंका पर काफी भारी पड़ा है। चुनाव जीतने के बाद 15 फीसदी वैल्यू एडेड टै्कस (VAT)को घटाकर 8 फीसदी कर दिया गया। इसके अलावा दूसरी रियायतें भी दी गई। इस कदम से सरकार अपने खर्चों के लिए कर्ज पर ज्यादा निर्भर हो गई
सरकार ने उर्वरक आयात पर प्रतिबंध लगाकर, जैविक खेती को बढ़ावा देने का बिना सोचे-समझो फैसला किया। जिसका असर कृषि उत्पादन पर सीधा हुआ। और खाने-पीने की चीजों की किल्लत हो गई।
51 अरब डॉलर के विदेशी कर्ज पर बैठी श्रीलंका सरकार की जब कमाई घटी तो उसके लिए आयात करना मुश्किल हो गया और कर्ज चुकाना भी नामुमकिन हो गया। जिस कारण आज वह दिवालिया हो गया।
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