Brain Surgery: ना ऑपरेशन थियेटर ना डॉक्टर फिर भी ब्रेन सर्जरी, हजारों साल पुराना इतिहास
ब्रेन सर्जरी का इतिहास कितना पुराना है। इसे लेकर तरह तरह की बहस चलती रहती है। लेकिन हाल ही में उत्तरी इजराइल के कस्बे तेल मैगिडिडो में दो भाइयों के कंकाल मिले जिनकी खोपड़ी में सुराख पाया गया था। खोपड़ी में सुराख को लेकर अलग अलग तरह के तरह तर्क हैं।
हजारों साल पुराना है ब्रेन सर्जरी का इतिहास
मानव मष्तिष्क की संरचना को समझना इतना आसान नहीं है। आपने देखा होगा कि पेट के डॉक्टर, आंखों के डॉक्टर, हड्डियों के डॉक्टर या दांतों के डॉक्टर आसानी से उपलब्ध होते हैं। लेकिन न्यूरो साइंस के डॉक्टरों की कमी है। मानव मष्तिष्क के बारे में कहा जाता है कि आज तक .1 फीसद संरचना को समझ पाने में कामयाबी मिली है। आधुनिक विज्ञान में मेडिकल साइंस ने तरक्की की और ब्रेन की सर्जरी भी हो रही है। लेकिन क्या आपको पता है कि ब्रेन की सर्जरी कब हुई थी। सामान्य तौर अगर भारतीय व्यवस्था की बात करें तो पौराणिक तौर पर भगवान गणेश की सर्जरी को माना जाता है। लेकिन हाल ही में उत्तर इजरायल के एक कस्बे में दो भाइयों के कंकाल मिले जिनकी खोपड़ी में सुराख थे। इन कंकालों को 1550 बीसी से 1450 बीसी बताया जा रहा है। अगर इसकी गणना आज से करें तो करीब 34 साल पहले ब्रेन की सर्जरी हुई थी।
इजराइल में मिले कंकाल
इजराइल के तेल मैगडिडो में 2016 में दो भाइयों के कंकाल मिले थे। इन कंकालों की खोपड़ी में सुराख किए गए थे। शोधकर्ता कहते हैं इससे पता चलता है कि करीब 3400 साल पहले भी ब्रेन की सर्जरी की जाती थी। लेकिन कुछ शोधकर्ताओं के मुताबिक खोपड़ी में सुराख को कर्मकांडो से जोड़कर देखना चाहि। यहां पर जिस जगह की बात कर रहे हैं वहां प्राचीन काल में कई लड़ाइयां लड़ी गईं और अंतिम युद्ध भगवान और असुरों के बीच हुआ था। शोधकर्ताओं के मुताबिक मैगडिडो से मिले दोनों कंकाल आपस में भाई थे और गंभीर बीमारी का सामना कर रहे थे। एक कंकाल जो बड़े भाई का है उसकी खोपड़ी से हड्डी का एक टुकड़ा निकाला गया था। उसके पीछे का मकसद यह था कि कम से कम यह पता चल सके कि दिनोंदिन वो कमजोर क्यों होता जा रहा है। ऐसा कहा जाता है कि इस इलाके में इस तरह का पहला उदाहरण हो जिसमें मष्तिष्क को नुकसान पहुंचाए बगैर खोपड़ी में सुराख किया जाता था।
अलग अलग राय
खोपड़ी में सुराख को लेकर कई जानकार अलग राय रखते हैं। उनका मानना है कि इसके जरिए बीमारी का इलाज नहीं किया जाता था। बल्कि शख्स की मौत के बाद उसकी खोपड़ी का इस्तेमाल धार्मिक क्रियाकलाप के लिए किया जाता था। इस संबंध में कालीशेर और उनकी सहयोगी का कहना है कि छोटे भाई की उम्र 20 के आसपास थी जब उसकी मौत 1550 बीसी से लेकर 1450 बीसी के बीच हुई होगी। इसी तरह उसके बड़े भाई की उम्र 21 से 46 के बीच थी(बड़े भाई का निधन छोटे भाई के मरने के एक साल बाद हुआ था)। बड़े भाई की खोपड़ी में करीब 30 मिलीमीटर का सुराख कर हड्डी को निकाला गया था। बताया जाता है कि उस शख्स की मौत से एक हफ्ते पहले ही उसकी खोपड़ी में सुराख किया गया था क्योंकि उसकी हीलिंग नहीं हो पाई खथी।
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