'आम आदमी की आंखों की रोशनी चली गई, वो...', नेहरू के निधन पर संसद में यूं जज्बाती हो गए थे अटल, पढ़िए पूरा भाषण

Atal Bihari Vajpayee on Jawahar Lal Nehru Death: जवाहर लाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री थे। मूल रूप से यूपी के प्रयागराज से ताल्लुक रखने वाले पंडित जी की 27 मई, 1964 को 75 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई थी।

atal ji on nehru death

तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है। (क्रिएटिवः अभिषेक गुप्ता)

तस्वीर साभार : टाइम्स नाउ ब्यूरो

Atal Bihari Vajpayee on Jawahar Lal Nehru Death: देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता अटल बिहारी वाजपेयी बेहद जज्बाती हो गए थे। वह तब संसद के उच्च सदन राज्यसभा के सदस्य थे और संसद में अपने भाषण के जरिए श्रद्धांजलि दी थी। पढ़िए, अटल जी वह यादगार स्पीच:

"सर, एक सपना टूट गया, एक गीत खामोश हो गया, एक लौ अनंत में लुप्त हो गई। यह भय रहित और भूख रहित विश्व का सपना था, यह एक महाकाव्य का गीत था जिसमें गीता की गूंज और गुलाब की खुशबू थी। यह एक दीपक की लौ थी जो पूरी रात जलती रही, हर अंधेरे से लड़ी, हमें रास्ता दिखाया और एक सुबह निर्वाण प्राप्त किया।

मृत्यु निश्चित है, शरीर अनित्य है। जिस सुनहरे शरीर को कल हमने चंदन की चिता के हवाले कर दिया उसका तो अंत होना ही था। लेकिन क्या मौत को इतने छुपकर आना था? जब दोस्त सो रहे थे और पहरेदार सुस्त थे, तो हमसे जीवन का अमूल्य उपहार छीन लिया गया।

भारत माता आज दुःख से त्रस्त हैं - उन्होंने अपना प्रिय राजकुमार खो दिया है। आज मानवता दुःखी है- उसने अपना भक्त खो दिया है। शांति आज बेचैन है - उसका रक्षक नहीं रहा। वंचितों ने अपना आश्रय खो दिया है। आम आदमी की आंखों की रोशनी चली गयी है। पर्दा गिर गया। विश्व के मंच पर अग्रणी अभिनेता ने अपनी अंतिम भूमिका प्रदर्शित की और धनुष धारण किया।

रामायण में महर्षि वाल्मिकी ने भगवान राम के बारे में कहा है कि उन्होंने असंभव को एक साथ ला दिया। पंडित जी के जीवन में हमें महान कवि की कही बातों की झलक मिलती है। वह शांति के भक्त थे और फिर भी क्रांति के अग्रदूत थे, वह अहिंसा के भक्त थे लेकिन स्वतंत्रता और सम्मान की रक्षा के लिए हर हथियार की वकालत करते थे।

वह व्यक्तिगत स्वतंत्रता के समर्थक थे और फिर भी आर्थिक समानता लाने के लिए प्रतिबद्ध थे। वह कभी किसी के साथ समझौते से नहीं डरते थे, लेकिन उन्होंने कभी भी डर के कारण किसी के साथ समझौता नहीं किया। पाकिस्तान और चीन के प्रति उनकी नीति इसी अनूठे मिश्रण का प्रतीक थी। इसमें उदारता भी थी और दृढ़ता भी। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इस उदारता को कमजोरी समझ लिया गया, जबकि कुछ लोग उनकी दृढ़ता को हठ के रूप में देखते थे।

मुझे याद है कि चीनी आक्रमण के दिनों में मैंने एक बार उन्हें बहुत गुस्से में देखा था, जब हमारे पश्चिमी मित्र कश्मीर पर पाकिस्तान के साथ किसी समझौते पर पहुंचने के लिए हम पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे थे। जब उनसे कहा गया कि अगर कश्मीर समस्या पर कोई समझौता नहीं हुआ तो हमें दो मोर्चों पर लड़ना होगा, तो वे भड़क गए और कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो हम दोनों मोर्चों पर लड़ेंगे। वह किसी भी दबाव में बातचीत के ख़िलाफ़ थे।

महोदय, जिस स्वतंत्रता के वे सेनापति और संरक्षक थे, वह आज खतरे में है। हमें अपनी पूरी शक्ति से इसकी रक्षा करनी होगी। जिस राष्ट्रीय एकता और अखंडता के वे प्रचारक थे वह भी आज खतरे में है। हमें इसे हर हाल में बचाकर रखना है। जिस भारतीय लोकतंत्र की उन्होंने स्थापना की और जिसे उन्होंने सफल बनाया उसका भविष्य भी संदिग्ध है। हमें अपनी एकता, अनुशासन और आत्मविश्वास से इस लोकतंत्र को सफल बनाना है।

नेता तो चला गया, अनुयायी बचे हैं। सूरज डूब चुका है, अब हमें तारों की रोशनी में अपना रास्ता ढूंढना है। यह अत्यंत परीक्षण का समय है। अगर हम सभी अपने आप को एक शक्तिशाली और समृद्ध भारत के महान आदर्श के लिए समर्पित कर सकें जो विश्व शांति में हमेशा के लिए सम्मानजनक योगदान दे सके, तो यह वास्तव में उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

संसद को हुई क्षति अपूरणीय है। ऐसा निवासी फिर कभी तीन मूर्ति की शोभा नहीं बढ़ा सकता। वह जीवंत व्यक्तित्व, विपक्ष को भी साथ लेकर चलने की वह प्रवृत्ति, वह परिष्कृत सज्जनता, वह महानता शायद हमें निकट भविष्य में दोबारा देखने को न मिले। मतभेद के बावजूद उनके महान आदर्शों, उनकी सत्यनिष्ठा, देश के प्रति उनके प्रेम और उनके अदम्य साहस के प्रति हमारे मन में सम्मान के अलावा और कुछ नहीं है। इन्हीं शब्दों के साथ मैं उस महान आत्मा को विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।"

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अभिषेक गुप्ता author

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