Gujarat के पूर्व MLAs का हाल: कोई BPL कार्डधारक तो किसी के पास कच्चा मकान...पेट भरने को करना पड़ा यह काम

अपनी विधायकी के दिन याद करते हुए उन्होंने बताया- हम जब विधायक के तौर पर चुने गए थे, तब हमें एक जिला पंचायत अध्यक्ष की ओर से कुर्ता-पैजामा दिया गया था। पर समय तेजी से बदला। 1967 में कोई भी बड़ा नेता हमारे विस क्षेत्र में न आया था। हम तब नेताओं के रैलियों में आने पर उन्हें भुने हुए चने/मुंगफली खिलाया करते थे।

Political Leader

तस्वीर का इस्तेमाल सिर्फ प्रस्तुतिकरण के लिए किया गया है।

तस्वीर साभार : टाइम्स नाउ ब्यूरो

"चाचा विधायक हैं हमारे...", किसी फिल्म या वेब सीरीज में आपने ये डायलॉग तो सुना ही होगा। एक एमएलए की छवि समाज में कुछ इसी तरह की होती है कि वह बहुत ही प्रभावशाली व्यक्ति होता है। बड़ी-बड़ी गाड़ियों में चलता है। महीने में एक लाख रुपए से अधिक की सैलरी और भत्ते उठाता है, जबकि उसके आगे पीछे मोटा स्टाफ होता है, जो एक हुकुम पर सारे काम झट-पट निपटाने के लिए तैयार खड़ा रहता है। लेकिन देश में विधायकों की एक जमात ऐसी भी है, जो गुरबत से जूझी है। आइए, जानते हैं गुजरात के कुछ ऐसे ही विधायकों के बारे में जिन्होंने कड़े समय के साथ संघर्ष के दिनों में बेहद कड़वे अनुभव झेले।

85 साल के जेठाभाई राठौर उत्तरी गुजरात के सांबरकांठा के Khedbrahma से विधायक रह चुके हैं। उनके पास बीपीएल (गरीबी रेखा के नीचे) कार्ड है। वह साल 1967 में स्वतंत्रता पार्टी की ओर से विस चुनाव जीते थे, जिसे 66 सीटें हासिल हुई थीं। वह आज भी अपने पुश्तैनी गांव तेबड़ा में रहते हैं, जहां की कुल आबादी 4000 के आस-पास है।

20 लोगों के संयुक्त परिवार में रहने वाले राठौर ने हमारे सहयोगी अखबार टीओआई को बताया- मैंने चुनाव प्रचार पर करीब 30 हजार रुपए खर्च किए थे, जो कि मेरे दोस्तों और पार्टी सदस्यों ने मुझे मुहैया कराए थे। मैं अपनी कैंपेनिंग साइकिल पर किया करता था।

मौजूदा दौर की राजनीति, उसके तौर तरीकों और विधायकों के ठाठ-बाट पर वह बोले- आज कल की कैंपेनिंग बहुत आधुनिक हो गई है। कैंडिडेट्स अब तो पानी की तरह प्रचार पर पैसे बहाते हैं। हमारे समय में सिर्फ एजेंडा या वादे हुआ करते थे, जो हम लोगों से जन समस्याओं को लेकर किया करते थे।

ऐसे ही एक विधायक हैं, जिनका नाम वीरसिंह मोहनिया है, जो 91 साल के हैं और मिट्टी के कच्चे घर में रहते हैं। गरीबी का आलम उन पर इस कदर हावी है कि उन्हें परिवार का भरण-पोषण करने के लिए खेतों में मजदूरी तक करनी पड़ती है।

यही नहीं, 90 पार की उम्र में वह स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से भी जूझ रहे हैं। ठीक से चल भी नहीं पाते। लिमखेड़ा सीट से कांग्रेस विधायक के तौर पर चार साल का अपना कार्यकाल पूरा करने वाले मोहनिया 1975 में चुनाव जीते थे। अपनी खस्ता आर्थिक हालत के चलते तब उन्हें खेतों में मजदूरी करनी पड़ती थी।

देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | इलेक्शन (elections News) की खबरों के लिए जुड़े रहे Timesnowhindi.com से | आज की ताजा खबरों (Latest Hindi News) के लिए Subscribe करें टाइम्स नाउ नवभारत YouTube चैनल

अभिषेक गुप्ता author

छोटे शहर से, पर सपने बड़े-बड़े. किस्सागो ऐसे जो कहने-बताने और सुनाने को बेताब. कंटेंट क्रिएशन के साथ नजर से खबर पकड़ने में पारंगत और "मीडिया की मंडी" ...और देखें

End of Article

© 2024 Bennett, Coleman & Company Limited