Sawal Public Ka : क्या पीएम मोदी के अपमान पर पवन खेड़ा की गिरफ्तारी को बोलने की आजादी से जोड़ना सही है?
Sawal Public Ka : अडानी मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पिता का नाम घसीटने का मामला तुल पकड़ता जा रहा है। कांग्रेस नेता पवन खेड़ा को गिरफ्तार किया गया। फिर सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम जमानत मिल गई। खेड़ा की गिरफ्तारी के बाद कांग्रेस ने देश में अघोषित इमरजेंसी और तानाशाही जैसे आरोपों की झड़ी लगा दी। अब सवाल पब्लिक का है कि क्या प्रधानमंत्री के अपमान को कांग्रेस राजनीतिक अधिकार का मुद्दा बनाने पर लगी है?
पवन खेड़ा कांग्रेस के कई और नेताओं के साथ पार्टी के रायपुर महाधिवेशन के लिए निकले थे। 3 दिनों पहले कोयला मामले में छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं पर ED की रेड और अब पवन खेड़ा की गिरफ्तारी को कांग्रेस ने महाधिवेशन से पहले नरेंद्र मोदी सरकार का डर बताया है।
सवाल पब्लिक का है कि क्या प्रधानमंत्री के अपमान को कांग्रेस राजनीतिक अधिकार का मुद्दा बनाने पर लगी है? क्या प्रधानमंत्री का अपमान भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में आता है? बोलने की आजादी है ..तो क्या प्रधानमंत्री का अपमान करने की छूट है? यही है आज सवाल पब्लिक का।
पवन खेड़ा ने प्रधानमंत्री पर विवादित बयान 17 फरवरी को दिया था। प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने जाहिर किया मानो प्रधानमंत्री के पिता के साथ पूरा नाम लेने में वो कन्फ्यूज हो गए। लेकिन बयान देते वक्त पवन खेड़ा हंसे भी थे। इस मामले में उत्तर प्रदेश और असम में FIR दर्ज हुई। आज दिल्ली एयरपोर्ट पर कार्रवाई असम में दर्ज FIR पर हुई।
जिस शिकायत पर ये FIR दर्ज हुई उसमें कहा गया कि प्रधानमंत्री के ऊंचे संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को बदनाम करने और उनका अपमान करने के पीछे देश को अस्थिर करने और नीचा दिखाने की बड़ी साजिश है। पवन खेड़ा की गिरफ्तारी का मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो उन्हें कोर्ट से अंतरिम जमानत मिली। कोर्ट ने अंतरिम जमानत इसलिए दी ताकि दिल्ली कोर्ट में रेगुलर बेल की अपील करने का समय मिल सके।
पवन खेड़ा के खिलाफ जितनी भी FIR हुई हैं उन्हें क्लब करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई की तारीख तय कर दी। लेकिन ये मामला कोर्ट की चौखट तक सीमित नहीं है। कांग्रेस का तंज है कि एक अकेला लोकतंत्र पर भारी है।
कमाल है भई! आप प्रधानमंत्री के पिता को राजनीति में घसीटे और फिर बोलने की आजादी का मसला उठाएं। हम आपको UPA के दौर की कुछ बातें बताना चाहते हैं। नवंबर 2007 में टेलीकॉम मंत्री रहते हुए ए राजा ने 2G मामले में तब के पीएम मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखी थी।
इसमें 2G स्पेक्ट्रम की नीलामी के डॉ मनमोहन सिंह के सुझाव को ए राजा ने unfair, discriminatory, arbitrary और capricious यानी अन्यायपूर्ण, पक्षपात से भरा और मनमाना कहा था।
दिसंबर 2010 में 2G मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने ए राजा की इस भाषा पर कहा था - जरा इस भाषा को देखिए। जब आप सबसे ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति को संबोधित करते हैं तो भाषा संयमित होनी चाहिए। यहां एटीट्यूट का सवाल है।
अप्रैल 2009 में एक चुनावी रैली में डॉ मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री कहने के बीजेपी के आरोपों पर तब की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा था कि प्रधानमंत्री देश का नेता होता है किसी पार्टी का नहीं। अगर कोई प्रधानमंत्री का अपमान करता है तो वो पूरे देश का अपमान करता है।
2013 में छत्तीसगढ़ की चुनावी रैली में तब के पीएम डॉ मनमोहन सिंह ने कहा था कि हमें अपना संयम खोकर विपक्षी नेताओं के विरुद्ध ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए जो अपमानजनक हो।
सितंबर 2013 में तब के बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के उस समय के पीएम नवाज शरीफ को ललकारा था क्योंकि उन्होंने भारत के पीएम मनमोहन सिंह के लिए देहाती औरत शब्द का इस्तेमाल किया था।
लेकिन आज पवन खेड़ा ने जब पीएम मोदी ही नहीं उनके पिता का नाम राजनीति में घसीटा है तो राजनीतिक घमासान मचा है। बीजेपी का पलटवार किया।
सवाल पब्लिक का
1. क्या PM मोदी के अपमान पर पवन खेड़ा की गिरफ्तारी को बोलने की आजादी से जोड़ना सही है ?
2. बात-बात पर अघोषित आपातकाल कहना क्या भारत के लोकतंत्र पर हमला है ?
3. क्या छत्तीसगढ़ में ED के रेड और पवन खेड़ा पर कार्रवाई का कांग्रेस अधिवेशन से कनेक्शन है ?
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