इसलिए Chandrayaan-3 की हुई कामयाब 'सॉफ्ट लैंडिंग', सबक लेकर सफल हुआ इसरो
Chandrayaan-3 Landing On Moon : 2008 से शुरू हुआ चंद्र मिशन आज अपनी बुलंदियों पर पहुंचा है। हालांकि, चंद्रयान-2 की अंतिम समय की असफलता से थोड़ी निराशा जरूर हुई लेकिन इसरो इससे हतोत्साहित नहीं हुआ बल्कि दोगुने जोश के साथ चंद्रयान के अगले मिशन के लिए आगे बढ़ा।
चंद्रमा के दक्षिणी हिस्से पर सफलतापूर्वक उतरा चंद्रयान-3
Chandrayaan-3 Landing On Moon : चंद्रमा पर चंद्रयान-3 ने बुधवार को इतिहास रच दिया। चांद के सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्से दक्षिणी ध्रुव पर इसकी सफलतापूर्वक 'सॉफ्ट लैंडिंग' हुई है। यह कारनामा करने वाला भारत दुनिया का चौथा और दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। अमेरिका, रूस और चीन भी चंद्रमा के इस हिस्से पर अपने यान नहीं उतार पाए जहां भारत का चंद्रयान-3 उतरा है। जाहिर है कि इसरो की यह कामयाबी बहुत बड़ी है। अगले 14 दिनों तक चंद्रयान-3 चंद्रमा की सतह पर चहलकदमी करते हुए कई तरह के शोध एवं वैज्ञानिकों परीक्षणों का अंजाम देगा।
परीक्षणों के दौरान चंद्रयान-3 जो डेटा भेजेगा उससे चंद्रमा से जुड़े रहस्य एवं सौरमंडल की बनावट के बारे में कई गुत्थियों को सुलझाने में मदद मिलेगी। चंद्र मिशन के लिए इसरो के दशकों की मेहनत आज सफल हुई है। 2008 से शुरू हुआ चंद्र मिशन आज अपनी बुलंदियों पर पहुंचा है। हालांकि, चंद्रयान-2 की अंतिम समय की असफलता से थोड़ी निराशा जरूर हुई लेकिन इसरो इससे हतोत्साहित नहीं हुआ बल्कि दोगुने जोश के साथ चंद्रयान के अगले मिशन के लिए आगे बढ़ा। महज चार साल के बाद ही उसने चंद्रमा पर सफलता के झंडे गाड़ दिए।
इसरो ने पिछली विफलताओं से लिए सबक
चद्रयान-2 की विफलता से सबक लेते हुए इसरो ने इस बार अपने चंद्रयान-3 मिशन को डिजाइन किया। मिशन की सफलता की संभावनाओं को बढ़ाने के लिए उसने चंद्रयान के सॉफ्टवेयर हार्डवेयर और लैंडिंग अनुक्रम में कई संशोधन किए। चंद्रयान-3 मिशन को सफल बनाने के लिए इसरो ने कड़ी मेहनत की। इस बार तैयारी इस तरह से की गई कि लैंडर विक्रम में गड़बड़ी होने के बावजूद रोवर चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतर सके। इसरो प्रमुख एस सोमनाथ ने बताया कि एजेंसी ने सफलता सुनिश्चित करने के लिए चंद्रयान-3 के लिए विफलता-आधारित दृष्टिकोण डिजाइन को अपनाया।
मिशन के लिए कई तकनीकी बदलाव किए
चंद्रयान-2 के लिए लैंडिंग साइट 500 मीटर x 500 मीटर तय थी। लैंडिंग के लिए यह साइट छोटी थी लेकिन इस बार इसे बढ़ाकर 2.5 किलोमीटर किया गया। इससे चंद्रयान-3 के लिए लैंडिंग का दायरा काफी बड़ा हो गया। चंद्रयान को यदि दूसरी जगह पर लैंड कराने की जरूरत पड़े तो उसमें ईंधन की कमी न पड़े इसलिए उसमें ईंधन भी ज्यादा रखा गया।
चंद्रयान-3 के लेग्स मजबूत बनाए
चंद्रयान-2 की तुलना में चंद्रयान-3 के लेग्स को मजबूत बनाया गया। दरअसल, लैंडर जब चंद्रमा की सतह से 10 मीटर होता है तो उसके सभी इंजन बंद कर दिए जाते हैं। इसके बाद लैंडर को चंद्रमा की सतह पर गिरना पड़ता है। लैंडिंग के समय लैंडर काफी गति से नीचे उतरेगा ऐसे में उसके लेग्स को काफी मजबूत बनाया गया। इसरो के अध्यक्ष एस सोमनाथ ने बताया कि इस बार चंद्रयान के लैंडिंग वेग को 2 मीटर प्रति सेकेंड से बढ़ाकर 3 मीटर प्रति सेकेंड किया गया।
चंद्रयान-3 से पांचवें इंजन को हटाया
चंद्रयान-3 में नए एवं अत्याधुनिक सेंसर लगाए गए। इसके इंजन एवं सॉफ्टवेयर पर भी काम किया गया। इंजन में व्यवधान, थ्रस्ट की दिक्कतों, सेंसर की चुनौतियों से निपटने के लिए अपडेटेड सॉफ्टवेयर लगाया गया। यही नहीं, चंद्रयान-3 से पांचवें इंजन को भी हटा दिया गया। इसे चंद्रयान-2 में अंतिम समय में जोड़ा गया था।
लैंडर में इस बार 2 बचाव कैमरे लगाए
चंद्रयान-2 में लैंडर को खतरे का पता लगाने के लिए कैमरे नहीं थे लेकिन इसरो ने गलती को सुधारते हुए चंद्रयान-3 के लैंडर में 2 बचाव कैमरे लगाए हैं। चंद्रयान-2 में केवल एक ही ऐसा कैमरा था। चंद्रयान 3 चाहे किसी भी तरह से लैंड करे, इसे एनर्जी देने के लिए अलग से सोलर पैनल लगाए गए हैं। इसरो ने इसकी लैंडिंग को हेलिकॉप्टर और क्रेन के जरिए टेस्ट किया है।
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