Jaipur News: जयपुर के इस गांव में दशहरे से 4 दिन पहले होता है रावण दहन, वैशाख तक जलता है पुतला

Jaipur: रेनवाल कस्बे में विजयदशमी से पहले ही दशानन का दहन किया जाता है। दशानन के पुतले के दहन का सिलसिला इलाके के गांवों में अलग-अलग तिथियों में वैशाख तक चलता है। सबसे आखिर में गांव नांदरी में होली के बाद वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को नृसिंह लीला व रावण के पुतले को जलाया जाता है।

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जयपुर के इस गांव में दशहरे से 4 दिन पहले होता है रावण दहन।

मुख्य बातें
  1. रेनवाल कस्बे में विजयदशमी से पहले ही दशानन का किया जाता है दहन
  2. दशानन के पुतले के दहन का सिलसिला इलाके के गांवों में वैशाख तक चलता है
  3. गांव नांदरी में वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को रावण के पुतले को जलाया जाता है

Jaipur News : राजधानी जयपुर के एक कस्बे में एक अद्भुत परंपरा बरसों से चली आ रही है। हालांकि ये जानने में थोड़ी अजीब लगती है, मगर सच है कि, रेनवाल कस्बे में विजयदशमी से पहले ही दशानन का दहन किया जाता है। नवरात्रि के 6वें दिन यानि की 4 रोज पहले आश्विन माह की षष्टमी को कस्बे में रावण का पुतला फूंका जाता है। इसके अलावा यहां की एक खास बात ये भी है कि, दशानन के पुतले के दहन का सिलसिला इलाके के गांवों में अलग-अलग तिथियों में मार्च तक चलता है। यहां के लोगों की मान्यता है कि, विजयदशमी को रावण दहन के बाद भी वह छह महीने तक जिंदा रहता है। इसलिए अलग- अलग तिथियों के हिसाब से उसका दहन किया जाता है।

इन तिथियों पर होता है गांवों में दशानन का दहन

स्थानीय लोगों के मुताबिक रेनवाल कस्बे में दशानन के दहन के बाद गांव हरसोली में विजय दशमी को रावण दहन किया जाएगा। इसके बाद गांव करणसर में आश्विन माह में शुक्ल पक्ष की तिथि त्रयोदशी को दशानन का दहन किया जाएगा। इसके बाद इसी दिन गांव मींडी त्रयोदशी तिथि को मेला लगेगा व रावण का पुतला फुंका जाएगा। इधर, गांव बाघावास में कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी व गांव बासडीखुर्द में कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की सप्तमी को दहन होता है। इसके बाद सबसे आखिर में गांव नांदरी में होली के बाद वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को नृसिंह लीला व रावण के पुतले को जलाया जाता है।

अद्भुत है रेनवाल का दशहरा

इलाके के बुर्जुगों के मुताबिक, रावण दहन की यह रवायत सदियों से यहां मनाई जा रही है। गांवों में अलग-अलग तिथियों पर रावण दहन की परंपरा के पीछे की वजह यहां के लोग ये भी बताते हैं कि, पुराने समय में धर्म के प्रचार के साथ ही मनोरंजन के साधन सीमित होने के कारण 6 महीने तक मेला भरने से लोगों आपस में मिलते थे। इससे कारोबार बढ़ता था, लोगों की रोजी- रोटी चलती थी। अब यह परंपरा के तौर पर मनाया जा रहा है। रेनवाल में रामलीला का मंचन होता है। इसके बाद रावण दहन से पूर्व शानदार आतिशबाजी की जाती है। रावण दहन के कार्यक्रम को देखने के लिए आसपास के इलाके सहित देश के कई कोनों से लोग आते हैं।

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