Union Budget 2023: ऐसी घोषणाएं जो टैक्सपेयर्स को अच्छी लगेंगी, बजट में हो सकती हैं ये चीजें

Union Budget 2023 for Taxpayers: वित्त वर्ष 2023-24 के लिए आम बजट पेश किया जाने वाला है और इसको लेकर कई तरह की अटकलें लग रही हैं। यहां पर जानिए एक्सपर्ट की ओर से टैक्सपेयर्स को लेकर किन बातों को शामिल करने की सलाह दी गई है और टैक्स देने वालों के लिए बजट में क्या घोषणाएं हो सकती हैं।

Union Budget 2023 for Taxpayers

आम बजट 2023

1 फरवरी को सरकार फाइनेंशियल वर्ष 2023-24 (वित्तीय वर्ष 24) के लिए बजट पेश करेगी। इस वर्ष का बजट, 2024 के आम चुनावों से पहले आखिरी बजट होगा। हर वर्ष की तरह, टैक्सपेयर्सयह उम्मीद करेंगे कि बजट में ऐसी घोषणाएं की जाएं जिससे रहन-सहन की उच्च लागत तथा इंफ्लेशन का सामना करने के लिए उनके हाथों में अधिक पैसा बचा रहे।

वे विभिन्न हैड्स (मदों) के तहत टैक्स कटौतियों की उम्मीद करते हैं। नई कटौतियों से उनके हाथ में अधिक आय रहती है। जितनी अधिक डिस्पोसेबल आय होगी, उतना ही अधिक खर्च को बढ़ावा मिलेगा। खासतौर पर इंफ्लेशन के समय पर यह स्वागत योग्य बात साबित होती है।

सरकार द्वारा हाल में एक ऑप्शनल टैक्स व्यवस्था की घोषणा की गई है। नई टैक्स व्यवस्था में कुछ टैक्सपेयर्स को निम्न-कर व्यवस्था का विकल्प चुनने की अनुमति दी गई जिसमें वे कटौतियां प्राप्त नहीं करते हैं। लेकिन, कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसकी फाइनेंशियल और पारिवारिक जिम्मेदारियां हैं, उसके लिए उन कटौतियों को छोड़कर नई टैक्स व्यवस्था को चुनना मुश्किल होगा। इसलिए, वे ज़रूरी कटौतियों का लाभ पाने के लिए पुरानी व्यवस्था में ही जुड़े रहे।

प्रोविडेंट फंड, बीमा भुगतान, किराया या होम लोन ईएमआई या बच्चों के स्कूल की ट्यूशन फीस के लिए कटौतियां आम बात हैं। कोई भी ऐसा व्यक्ति जिसने होम लोन ले रखा है, वह इतने बड़े टैक्स लाभ को नहीं खो सकता है। करदाताओं की इस श्रेणी को कटौतियों में बढ़ोतरी की ज़रूरत है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। इंफ्लेशन के अनुसार कटौतियों में बढ़ोतरी नहीं की गई है।

इस लेख में, मैंने कुछ सुझाव दिए हैं जिन पर सरकार विचार कर सकती है। आइये उन पर विचार करते हैं:

धारा 80C लिमिट को बढ़ाया जा सकता है

धारा 80C कटौती की सीमा को अंतिम बार 2014 में संशोधित कर 1.5 लाख रुपये किया गया था। यह मशहूर कर लाभ कटौती है जिसका प्रयोग पुरानी टैक्स व्यवस्था में करदाताओं द्वारा किया जाता है। इंफ्लेशन में बढ़ोतरी को देखते हुए, 1.5 लाख रूपये की कटौती की सीमा को बढ़ाकर 2 लाख रूपये करने से काफी अधिक राहत मिल सकेगी। इससे लोगों के पास अधिक डिस्पोजेबल आय भी उपलब्ध होगी तथा इससे अधिक बचत करने में भी उनको मदद मिलेगी।

पुरानी कर व्यवस्था में 20% और 30% कर स्लैब को बढ़ाया जा सकता है।

सरकार 10 वर्ष के लिए बजट की व्यवस्था करने के लिए विभिन्न कर स्लैब की ऊपरी सीमा को बढ़ाने पर विचार कर सकती है। उदाहरण के लिए, 20% कटौती के लिए ऊपरी सीमा को मौजूदा 10 लाख रूपये की सीमा से बढ़ाकर 15 लाख रूपये कर देना चाहिए।

होम लोन की लिमिट को बढ़ाया जा सकता है और इसे 80C से अलग किया जा सकता है।

तेजी से बढ़ती इंफ्लेशन को नियंत्रित करने के लिए आरबीआई द्वारा मई 2022 से दिसम्बर 2022 के दौरान रेपो रेट में 225 बेसिस पॉइंट की बढ़ोतरी करने से होम लोन मंहगे हो गए हैं। बढ़ती दरों के बावजूद, होम लोन की मांग उच्च बनी हुई है। आरबीआई डेटा के अनुसार, मार्च से अक्तूबर के दौरान होम लोन में 8.4% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है, जो पिछली छह महीने की अवधि से अधिक तीव्र है, हालांकि उस अवधि के दौरान दरों में कोई बढ़ोतरी नहीं की गई थी। होम लोन एक लंबे समय के फाइनेंशियल कमिटमेंट होते हैं। ईएमआई के बढ़ने के साथ, सरकार घर के खरीददारों को राहत देने के लिए कर छूट ऑफर कर सकती है।

सरकार को सभी होम लोन कटौतियों को एक ही सेक्शन में शामिल करने और इसे 80C से अलग करने पर विचार करना चाहिए। मूल राशि और ब्याज की सब-लिमिट के बिना 5 लाख रूपये तक की सिंगल कटौती (80C, 24B तथा 80EEA कटौतियों का टोटल) से घर मालिकों द्वारा रियल एस्टेट की लागत का बेहतर सामना किया जा सकेगा।

80D टैक्स कटौती लाभ लिमिट को बढ़ाया जा सकता है

दिन प्रति दिन हैल्थकेयर लागतें बढ़ रही हैं। परिणाम के तौर पर, हैल्थ इंश्योरेंस पॉलिसियों का प्रीमियम भी बढ़ रहा है। प्रीमियम की उच्च लागतों से लोगों की फाइनेंशियल दिक्कतें बढ़ती हैं, जो पहले से ही उच्च इंफ्लेशन का सामना कर रहे हैं। सरकार को सेक्शन 80D के तहत कटौती की लिमिट को बढ़ाने पर विचार करना चाहिए। मौजूदा समय में, ऐसे नागरिक जो सीनियर सिटिज़न नहीं हैं, वे स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम भुगतान के लिए 25,000/- रुपये तक कटौती का लाभ प्राप्त कर सकते हैं। सीनियर सिटिज़न के लिए, यह कटौती 50,000/- रूपये तक उपलब्ध है। उच्च बीमा कवरेज प्राप्त करने वाले लोगों के लिए प्रीमियम कटौती की सीमा से अधिक हो जाता है।

स्वास्थ्य बीमा पर जीएसटी को कम किया जा सकता है।

भारत में बीमा का प्रचार-प्रसार बहुत कम है। लेकिन स्वास्थ्य बीमा पर जीएसटी की दरें रिलेटिवली 18% पर अधिक हैं। सरकार जीएसटी दर पर फिर से विचार कर सकती है और इसे अधिक अफॉर्डेबल बनाने के लिए इसकी दरों को कम कर सकती है।

लिस्टेड और अनलिस्टेड इक्विटी के मामले में एलटीसीजी कर के बीच समानता लाना चाहिए

एलटीसीजी की गणना करने के लिए लिस्टेड और अनलिस्टेड इक्विटी को समान माना जाता है। जोखिम को कम करने के लिए, ज़रूरी योग्यता मानदंड जैसे क) बीएफएसआई सेक्टर में वे फिनटेक इकाइयां जो किसी फाइनेंशियल सेक्टर रेग्यूलेटर के यहां पर रजिस्टर्ड हैं, ख) एमएसएमई सेक्टर में जिनके पास उद्यम रजिस्ट्रेशन है, जो ज़रूरी पूंजी और/या रेवेन्यू जरूरतों को पूरा करती हैं, ऐसी अनलिस्टेड इकाइयों को भी उपलब्ध कराया जाना चाहिए, जो उनकी मूल नेचर की पहचान करने के लिए काफी है और अनलिस्टेड इकाई की अर्थव्यव्यवस्था में वैल्यू एडिशन की जा सके।

(इस लेख के लेखक, BankBazaar.com के CEO आदिल शेट्टी हैं)

(डिस्क्लेमर: ये लेख सिर्फ जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। इसको निवेश से जुड़ी, वित्तीय या दूसरी सलाह न माना जाए।)

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