भारत चीन की तरह नहीं है धोखेबाज और सूदखोर,इसलिए हिट होगा इंडिया-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर

India Middle East Europe Corridor: साल 2013 में चीन ने जब शी जिनपिंग के नेतृत्व में वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट शुरू किया था। तो उससे 140 से ज्यादा देशों को जोड़ने का प्लान किया गया। इसके जरिए इन देशों में चीन के पैसे से इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट करने का सार्वजनिक उद्धेश्य था। लेकिन उसके पीछे चीन की विस्तारवादी नीति थी। जिसमें चीन छोटे और गरीब देशों को कर्ज के जाल में फंसाना था।

INDIA EUROPE MIDDLE EAST ECONOMIC CORRIDOR

भारत की कूटनीतिक विजय

India Middle East Europe Corridor: G 20 सम्मेलन में भारत की साख पर बट्टा लगे, इसके लिए चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी। और इसी रणनीति के तहत उन्होंने आयोजन से ठीक पहले सम्मेलन में न आने का ऐलान कर दिया। इसके बाद यह भी कोशिश थी कि किसी तरह साझा घोषणा पत्र का ऐलान नहीं हो। लेकिन न केवल सम्मेलन के पहले दिन ही G 20 देशों ने साझा घोषणा पत्र का ऐलान कर दिया। बल्कि उसी दिन भारत ने चीन को ऐसा सबक दिया, जिसका अंदाजा उसे नहीं रहा होगा। भारत ने सउदी अरब, यूएई और यूरोप के साथ मिलकर इंडिया मिडिल ईस्ट यूरोप कॉरिडोर का ऐलान कर दिया। खास बात यह थी कि इस कॉरिडोर को अमलीजामा पहनाने में अमेरिका ने भी अहम भूमिका निभाई। इंडिया मिडिल ईस्ट यूरोप कॉरिडोर चीन के वन बेल्ट वन रोड (OBOR) यानी BRI प्रोजेक्ट का जवाब है। जिसके जरिए चीन विस्तारवादी नीति अपनाए हुए और छोटे देशों को अपने कर्ज के मकड़जाल में फंसा रहा है।

क्या है इंडिया मिडिल ईस्ट यूरोप कॉरिडोर (IMEC)

इंडिया मिडिल ईस्ट यूरोप कॉरिडोर के जरिए भारत से लेकर यूरोप तक रेल और शिप का एक इकोनॉमिक कॉरिडोर बनेगा। जिसके जरिए स्वेज नहर पर निर्भरता कम होगी और भारत से खाड़ी देशों और यूरोप के बीच बेहद तेज गति से व्यापार होगा। यह इकोनॉमिक कॉरिडोर कितना अहम है, यह इस तरह भी समझा जा सकता है कि इस समझौते के ऐलान के वक्त अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन खुद मौजूद थे। और भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और उनकी टीम अमेरिका के साथ मिलकर पिछले 2 साल से इसे अमलीजामा पहुंचाने में लगी हुई थी।

चीन जैसी नीयत नहीं इसलिए होगा हिट

साल 2013 में चीन ने जब शी जिनपिंग के नेतृत्व में वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट शुरू किया था। तो उससे 140 से ज्यादा देशों को जोड़ने का प्लान किया गया। इसके जरिए इन देशों में चीन के पैसे से इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट करने का सार्वजनिक उद्धेश्य था। लेकिन उसके पीछे चीन की विस्तारवादी नीति थी। जिसमें चीन छोटे और गरीब देशों को कर्ज के जाल में फंसाना था। इसी कड़ी में श्रीलंका, पाकिस्तान, मंगोलिया, सूडान, केन्या सेंट्रल एशिया देशों के बुरे आर्थिक हालात चीन की चाल को बयां करते हैं। इसी का नतीजा है नेपाल, बांग्लादेश जैसे देश चीन के प्रोजेक्ट से दूरी बन रहे हैं। और अब G 20 सम्मेलन में पहुंचे इटली ने चीन के प्रोजेक्ट से अलग होने के संकेत दे दिए हैं।

वहीं अगर भारत-मिडिल ईस्ट यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर की बात की जाय तो इसमें सभी देश साधनसंपन्न हैं। और वह चीन की तरह विस्तारवादी नीति और दूसरे देशों को कर्ज के मकड़जाल में फंसाने का इरादा नहीं रखते हैं। भारत, सउदी अरब, यूएई और यूरोप का उद्देश्य बिजनेस आसान करना है।

कच्चे तेल, डाटा ट्रांसफर से लेकर मिलेंगे ये फायदे

इस कॉरिडोर पर यूरोपीयन कमीशन के प्रेसिडेंट उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने कहा कि मेगा रेल लिंक से भारत और यूरोप के बीच व्यापार 40% तेज हो जाएगा। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति ने भी इस रेल लिंक को एक बड़ा कदम बताया है। ऐलान पर भारतीय इंजीनियरिंग निर्यात संवर्द्धन परिषद (ईईपीसी इंडिया) के चेयरमैन अरुण कुमार गरोडिया ने कहा कि इस गलियारे से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में और ज्यादा लचीलापन आएगा। इस परियोजना का मकसद भारत को समुद्र तथा बंदरगाह के माध्यम से पश्चिम एशिया के जरिए यूरोप से जोड़ना है। निवेश से आर्थिक गतिविधियों को काफी बढ़ावा मिलेगा, नौकरियों का सृजन होगा और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलेगी।

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प्रशांत श्रीवास्तव author

करीब 17 साल से पत्रकारिता जगत से जुड़ा हुआ हूं। और इस दौरान मीडिया की सभी विधाओं यानी टेलीविजन, प्रिंट, मैगजीन, डिजिटल और बिजनेस पत्रकारिता में काम कर...और देखें

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