G20 के संयुक्त घोषणापत्र पर मान क्यों गए रूस पर सख्त तेवर दिखाने वाले पश्चिमी देश?

Joint Declaration Of G20 Summit : वैश्विक चुनौतियों एवं समस्याओं को निपटने में संयुक्त राष्ट्र सहित अतंरराष्ट्रीय संस्थाओं पर लगातार सवाल उठे हैं। बीते वर्षों में जी-20 की प्रासंगिकता सवालों के घेरे में रही है। ऐसे में जी-20 नहीं चाहता था कि साझा संयुक्त घोषणापत्र जारी करने में समूह के सदस्य देशों में बिखराव दिखे।

Joint Declaration Of G 20

जी-20 सम्मेलन के घोषणापत्र पर बनी सहमति।

G20 Summit 2023 : जी-20 सम्मेलन के सफल आयोजन के लिए दुनिया भर में भारत की प्रशंसा हो रही है। खासकर दिल्ली घोषणापत्र पर सदस्य देशों की आम सहमति को मोदी सरकार के एक बड़ी कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा है। इस सम्मेलन पर रूस-यूक्रेन युद्ध की छाया थी और पश्चिमी देश इस बात का संकेत दे चुके थे कि संयुक्त घोषणापत्र में वह रूस के खिलाफ सख्त तेवर एवं कड़े शब्दों का इस्तेमाल करेंगे लेकिन भारत की कूटनीति एवं सदस्य देशों में उसकी पकड़ ने असंभव कार्य को संभव कर दिखाया।

संयुक्त घोषणापत्र भारत की कूटनीतिक जीत

संयुक्त घोषणापत्र से रूस 'संतुष्ट' है, यह भारत के लिए बड़ी जीत है क्योंकि भारत की अध्यक्षता में जी-20 सम्मेलन से यदि मास्को के खिलाफ कड़े शब्दों का इस्तेमाल होता तो यह रूस-भारत संबंधों के लिए अच्छा नहीं माना जाता। संयुक्त घोषणापत्र पर यूक्रेन ने भले ही अपनी 'निराशा' जाहिर की हो लेकिन बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य के परिप्रेक्ष्य में सदस्य देशों ने भी माना कि संयुक्त घोषणापत्र की भाषा समायनुकूल एवं प्रासंगिक है।

भारतीय शेरपा अमिताभ कांत की भूमिका

दिल्ली घोषषापत्र पर आम सहमति बनाने में भारतीय शेरपा अमिताभ कांत की भूमिका बहुत ज्यादा है। इस बात की आशंका था कि जी-20 के देश खासकर अमेरिका और यूरोपीय संघ के देश रूस के खिलाफ कड़े शब्दों का इस्तेमा करेंगे लेकिन कांत के प्रयासों ने रंग दिखाया। भारतीय हितों के अनुकूल एक सर्वसम्मति वाले संयुक्त घोषणापत्र पर सहमति बनाने के लिए कांत की अगुवाई में भारतीय टीम ने सदस्य देशों को समझाने-बुझाने के लिए लगातार उनके साथ बातचीत एवं बैठकें कीं।

सहमति के लिए भारतीय राजनयिकों ने की कड़ी मेहनत

‘जी20 डिक्लेरेशन’ (घोषणापत्र) पर आम सहमति बनाने के लिए भारतीय राजनयिकों के एक दल ने 200 घंटे से भी अधिक समय तक लगातार बातचीत की। संयुक्त सचिव ई गंभीर और के नागराज नायडू समेत कई राजनयिकों के एक दल ने 300 द्विपक्षीय बैठकें कीं और ‘जी20 लीडर्स समिट’ के पहले दिन ही सर्वसम्मति बनाने के लिए विवादास्पद यूक्रेन संघर्ष पर अपने समकक्षों को 15 मसौदे वितरित किए। अंतत: भारतीय राजनयिकों के प्रयासों ने रंग दिखाया और घोषणापत्र पर यूक्रेन और रूस को लेकर एक आम सहमति बनी।

ताकि जी-20 कमजोर न दिखे

वैश्विक चुनौतियों एवं समस्याओं को निपटने में संयुक्त राष्ट्र सहित अतंरराष्ट्रीय संस्थाओं पर लगातार सवाल उठे हैं। बीते वर्षों में जी-20 की प्रासंगिकता सवालों के घेरे में रही है। ऐसे में जी-20 नहीं चाहता था कि साझा संयुक्त घोषणापत्र जारी करने में समूह के सदस्य देशों में बिखराव दिखे। घोषणापत्र पर सहमति न बनना भी कई सवालों को जन्म देता। रिपोर्टों में यूरोपीय संघ के नेताओं एवं अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि आगे वे रूस के खिलाफ अपने तेवर सख्त करेंगे लेकिन मौजूदा सम्मेलन किसी एक देश के लिए नहीं बल्कि यह वैश्वक मुद्दों पर था।

चीन को जवाब देना भी मकसद

यही नहीं, BRICS के बढ़ते प्रभाव की काट एवं उससे बड़ी रेखा खींचने की चुनौती भी जी-20 सम्मेलन पर थी। दरअसल, चीन ब्रिक्स के दायरे को बढ़ाने की कोशिश में है। वह जी-20 के समानांतर इसे खड़ा करना चाहता है। ब्रिक्स को लेकर वह अपने विस्तारवादि हितों के मुताबिक काम कर रहा है। ऐसे में अमेरिका सहित यूरोपीय देशों पर एक तरह से ब्रिक्स का दबाव भी था कि वे जी-20 सम्मेलन में एकजुट दिखें और चीन की विस्तारवादी महात्वाकांक्षा पर अंकुश लगाएं।

देश और दुनिया की ताजा ख़बरें (Hindi News) अब हिंदी में पढ़ें | देश (india News) और चुनाव के समाचार के लिए जुड़े रहे Times Now Navbharat से |

आलोक कुमार राव author

करीब 20 सालों से पत्रकारिता के पेशे में काम करते हुए प्रिंट, एजेंसी, टेलीविजन, डिजिटल के अनुभव ने समाचारों की एक अंतर्दृष्टि और समझ विकसित की है। इ...और देखें

End of Article
Subscribe to our daily Newsletter!

© 2024 Bennett, Coleman & Company Limited