राहुल गांधी के मेकओवर से मोदी से ज्यादा I.N.D.I.A को खतरा? समझिए कैसे विपक्षी गठबंधन में आ सकती है दरार
जब सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को मोदी सरनेम मामले मिली सजा पर रोक लगा दी और तस्वीर लगभग साफ हो गई कि 24 के समर में राहुल के उतरने में अब कोई रोड़ा नहीं, लेकिन खेल यहीं से बदलना शुरू हो गया।
राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से राहत मिलने के बाद कांग्रेस उत्साहित है। राहुल गांधी की सांसदी जाने और चुनावी मैदान में उतरने पर लगा ग्रहण खत्म हो चुका है। पिछले साल सितंबर में शुरू हुई भारत जोड़ो यात्रा से लेकर संसद के बजट सत्र तक राहुल बदले अंदाज और सधे तेवर के साथ दिखते रहे हैं। पर क्या राहुल का ये मेकओवर 2024 में ब्रैंड मोदी को चुनौती दे पाएगा? या फिर राहुल का यह मेकओवर मोदी से ज्यादा नए नवेले विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' के लिए खतरा है? आइए समझते हैं।
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मोदी बनाम राहुल की लड़ाई?
भारत की संपूर्ण राजनीति का दर्शन क्या अब इन दो अध्यायों का है? राजनीति की धारा और धार क्या इन्हीं दो किरदारों के इर्द-गिर्द बुनी जानी शुरु हो चुकी है? क्या पॉलिटिकली परिष्कृत होकर आए राहुल मोदी कल्ट की राजनीति के विरुद्ध विपक्ष के चुने हुए योद्धा तय हो चुके हैं? शुक्रवार का दिन 2024 के सियासी समर के मानचित्र के लिए अहम दिन था। जब सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को मोदी सरनेम मामले मिली सजा पर रोक लगा दी और तस्वीर लगभग साफ हो गई कि 24 के समर में राहुल के उतरने में अब कोई रोड़ा नहीं, लेकिन खेल यहीं से बदलना शुरू हो गया।
खतरे में 'इंडिया'?
दरअसल राहुल गांधी ब्रांड मोदी को सफलतापूर्वक कितना टक्कर दे पाएंगे ये तो 2024 का रिजल्ट बताएगा, लेकिन उससे पहले उस गठबंधन में दरार की आशंका है, जिसे हाल ही में कांग्रेस ने 'इंडिया' के तौर पर जनता के सामने पेश किया है। दरअसल विपक्षी गठबंधन में कई सीनियर लीडर हैं, जो अपने आप को पीएम पद की रेस में मानते रहे हैं। नीतीश कुमार, ममता बनर्जी, शरद पवार के साथ-साथ अखिलेश यादव, केसीआर, केजरीवाल जैसे नेता पीएम पद पर नजर गड़ाए हुए हैं। अभी तक ये साफ था कि राहुल गांधी इस सजा के कारण चुनाव नहीं लड़ सकते, इस तरह इन नेताओं की राह का सबसे बड़ा रोड़ा अपने आप साफ था। कांग्रेस भले ही अभी पीएम पद पर समझौता करने के मूड में नहीं थी, लेकिन हो सकता था कि वो 2024 के रिजल्ट के बाद मान जाती, लेकिन राहुल गांधी के मैदान में रहते हुए ऐसा अब असंभव सा है। उधर शरद पवार भी अपने बागी भतीजे अजीत पर नरम पड़ चुके हैं, कहा जा रहा है कि शरद पवार भी भाजपा के साथ जा सकते हैं। नीतीश कुमार को लेकर भी कुछ ऐसा ही दावा किया जा रहा है, ऐसे में मोदी के टक्कर में सीधे राहुल गांधी को दिखाना विपक्षी गठबंधन को खतरे में डाल सकता है।
राहुल के मेकओवर के मायने
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान से ही राहुल गांधी यह दिखाने की कोशिश करने लगे थे कि वो अब पुराने वाले राहुल गांधी नहीं रहे हैं। राहुल ने कहा था- "राहुल गांधी आपके दिमाग में है मैंने मार दिया उसको..वो है ही नहीं..मेरे माइंड में है ही नहीं..गया वो..गया..जिस व्यक्ति को आप देख रहे हो वो राहुल गांधी नहीं है..वो आपको दिख रहा है...बात नहीं समझे आप..हिंदू धर्म को पढ़ो जरा..शिवजी को पढ़ो समझ आ जाएगी बात..."
तो सवाल ये है कि आखिर पुराने वाले राहुल गांधी को खत्म कर देना क्यों जरूरी था? क्यों जरूरी हो गया नए राहुल को गढ़ना? दरअसल अगर देखें तो राहुल गांधी का राजनीतिक रूपांतरण यानि पॉलिटिकल ट्रान्सफॉर्मेशन इसलिए दो वजहों से बेहद अहम है। एक विपक्षी पार्टियों को लेकर ताकि ये भरोसा कायम किया जा सके कि अब बदले हुए राहुल गांधी महागठबंधन के नेतृत्व को तैयार हैं और दूसरा देश के वोटर को भी ये संदेश दिया जा सके कि बीते राहुल को बिसार कर आज के राहुल को देखें। ताकि सीधे ब्रांड मोदी को चुनौती दी जा सके और अगर जीत मिले तो पीएम पद पर राहुल गांधी सीधे दावा ठोक सकें।
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