चंद्र ग्रहण की वजह से आया भूकंप ! जानें- क्या कहता है विज्ञान
क्या चंद्रग्रहण और भूकंप के बीच किसी तरह का संबंध है। आम तौर पर लोग कहते हैं कि ग्रहण अशुभ का कारक है। लेकिन आधुनिक विज्ञान इसे नकारता है।
मंगलवार को चांद पर लगा था ग्रहण
- मंगलवार को चांद पर लगा था ग्रहण
- मंगलवार को ही नेपाल, भारत में भूकंप की दस्तक
- नेपाल में 6 लोगों की हुई है मौत
मंगलवार को दो प्राकृतिक घटनाएं हुई। चंद्रमा पर ग्रहण लगा(lunar eclipse) और उसके ठीक बाद तीन मुल्कों में अलग अलग समय पर जलजले(earthquake) ने दस्तक दी। नेपाल में बीती रात तीन बार भूकंप आया जिसमें एक की तीव्रता 6.3 थी। इसके साथ ही भारत के उत्तराखंड के जिले पिथौरागढ़(pithoragarh earthquake) में बुधवार सुबह सुबह जलजला आया हालांकि तीव्रता कम थी। यहां पर सवाल उठता है कि क्या चंद्रग्रहण और भूकंप के बीच कोई संबंध है। वैज्ञानिक वैसे तो ग्रहण और जलजले के बीच किसी तरह का संबंध होने से इनकार करते हैं। लेकिन भारतीय विज्ञान में इसका जिक्र है कि ग्रहण और जलजले के बीच संबंध है। वराहमिहिर ने वृहत संहिता में इस तरह का सिद्धांत दिया था कि ग्रहण और प्राकृतिक आपदा में रिश्ता है। उन्होंने चंद्र ग्रहण और भूकंप के बीच संबंध बताया। हालांकि इसे आधुनिक विज्ञान कसौटी पर खरा नहीं मानता है। लेकिन 2018 में अफगानिस्तान में इसी तरह से चंद्रग्रहण के बाद जलजला आया और नेपाल में भी आया जलजला चंद्रग्रहण के बाद घटित हुआ ।
क्या कहता है आधुनिक विज्ञान
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पृथ्वी की छाया जब चंद्रमा पर पड़ती है तो उसे चांद पर ग्रहण के तौर पर देखा जाता है और जहां तक जलजले का सवाल है तो भूकंप टेक्टोनिक प्लेट के बीच घर्षण की वजह से होता है। अब सवाल यह है कि पृथ्वी की चांद पर छाया की वजह से ग्रहण का प्रभाव इतना अधिक बढ़ जाता है कि वो टेक्टोनिक प्लेट की गति को प्रभावित कर देता है। सामान्य तौर पर टेक्टोनिक प्लेट गतिमान हैं औक उसकी वजह से पृथ्वी के क्रस्ट में ऊर्जा संचित हो जाती है और क्रैक्स के जरिए समय समय पर बाहर निकलती है जिसकी वजह से सतह पर कंपन महसूस होने लगता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि चांद के गुरुत्व की वजह से ज्वार और भांटा पर असर पड़ता है। लेकिन महज पृथ्वी की छाया की वजह से इतनी ऊर्जा का पैदा होना संभव नहीं है जो पृथ्वी के अंदर टेक्टोनिक प्लेट्स में हलचल पैदा कर दे।
टेक्टोनिक प्लेट्स हमेशा गतिशील है। उसकी वजह से ऊर्जा संचित होती रहती है। पृथ्वी के अंदर हर दिन हलचल हो रही है हालांकि गहराई अधिक होने की वजह से अंदर की ऊर्जा बाहर नहीं आ पाती। लेकिन जब सतह के नजदीक कोई बदलाव होता है तो वो ऊर्जा तेजी से पृथ्वी की सतह को हिट करती है और हम कंपन महसूस करते हैं। यह महज इत्तेफाक हो सकता है कि किसी खास दिन ऊर्जा ज्यादा रिलीज हुई और उसकी वजह से कंपन की तीव्रता में तेजी आई हो।
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