Lok Sabha Election 2024: कभी यूपी पर राज करने वाली मायावती का इस चुनाव में क्या होगा? सिमटती जा रही है बसपा, समझें वजह
Lok Sabha Chunav: चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रहने के बावजूद आज मायावती की पार्टी बसपा की हालत डमाडोल स्थिति में है। बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो अपनी इस बात पर अडिग हैं कि वो अकेले लोकसभा चुनाव लड़ेंगी। भले ही पिछले चुनाव में उन्हें 10 सीटें मिली थी, इस बार उनका सीमकरण बिगड़ा हुआ है। आपको इसकी वजह समझना चाहिए।
आगामी चुनाव में मायावती का क्या होगा?
भाजपाभाजपाबसपाबसपाMayawati Plan For Election: लोकसभा चुनाव सिर पर है, मगर बहुजन समाज पार्टी में सन्नाटा पसरा हुआ है। मायावती के मन में न जाने कौन सी रणनीति चल रही है कि वो सिर्फ सोशल मीडिया पर जवाब दे रही हैं। यदि ये कहा जाए कि उनकी पार्टी का वजूद खतरे में हो तो गलत नहीं होगा। बीते विधानसभा चुनाव 2022 में यूपी की कुल 403 सीटों में से बसपा को महज 1 सीट पर जीत हासिल हुई, वो भी उमाशंकर सिंह जिन्होंने अपनी मजबूत छवि के आधार पर बलिया के रसड़ा से जीत हासिल की थी। शायद मायावती इस बात को समझने के लिए तैयार ही नहीं हैं कि उन्हें जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है। उनका सियासी समीकरण बिगड़ रहा है इसका असर ये वो रहा है कि बसपा सिमटती जा रही है।
क्या मायावती की झोली रह जाएगी खाली?
राजनीति में एक कहावत बहुत चर्चित है कि यहां कोई किसी को सगा नहीं है। जाहिर है कि सियासत में कोई कभी भी किसी को भी गच्चा दे सकता है और पाला बदल सकता है। दल-बदल और पीठ पर खंजर घोंपने वाले ऐसे अनगिनत उदाहरण मौजूद हैं। कभी मुलायम की कट्टर दुश्मन कही जाने वाली मायावती ने पिछले चुनाव में अखिलेश यादव की साइकिल के साथ-साथ चल रही थीं। हाथी और साइकिल की इस जोड़ी ने साथ मिलकर उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से 15 सीटों पर जीत हासिल की थी, जिसमें 10 पर मायावती की अकेले बसपा के उम्मीदवारों ने विजय का परचम फहराया था। मगर इस बार अगर मायावती की झोली खाली रह जाए तो कोई खास हैरानी नहीं होगी।
वेट एंड वॉच के मूड में हैं बसपा सुप्रीमो मायावती
जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव को लेकर उठापटक का दौर तेज हो रहा है, मायावती के सुर हर किसी के समझ से परे हैं। विपक्षी गठबंधन इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इंक्लूसिव अलायंस (INDIA) की ओर से बार-बार मायावती को ऑफर आ रहे हैं, मगर को इसके हर बार न सिर्फ ठुकरा रही हैं, बल्कि विपक्षी गठबंधन को पानी पी-पीकर कोस भी रही हैं। आखिर उनकी असल रणनीति क्या है?
बीते कुछ दिनों पहले मायावती ने अपने एक बयान में कहा था कि 'विपक्ष के गठबंधन में बसपा सहित अन्य जो भी पार्टियां शामिल नहीं हैं, उनके बारे में किसी का भी फिजूल टीका-टिप्पणी करना उचित नहीं है। मेरी उन्हें सलाह है कि वह इससे बचें, क्योंकि भविष्य में, देश में, जनहित में कब किसको, किसकी जरूरत पड़ जाए, कुछ भी कहा नहीं जा सकता।' मतलब साफ है वो फिलहाल वेट एंड वॉच के मूड में हैं। मगर यहां ये समझने की जरूरत है कि उनकी लापरवाही चुनाव में उनकी पार्टी की मुसीबतों में इजाफा कर सकती है। सवाल ये भी है कि क्या विपक्षी गठबंधन को मायावती की जरूरत पड़ेगी?
लोकसभा चुनाव 2019 में मायावती का प्रदर्शन
लोकसभा सीट | जीत | जीती हुई पार्टी | हार | हारी हुई पार्टी |
सहारनपुर | हाजी फजलुर रहमान | बसपा | राघव लखनपाल | भाजपा |
बिजनौर | मलूक नागर | बसपा | कुंवर भारतेंद्र सिंह | भाजपा |
नगीना (एससी) | गिरीश चंद्र | बसपा | यशवंत सिंह | भाजपा |
अमरोहा | कुंवर दानिश अली | बसपा | कंवर सिंह तंवर | भाजपा |
अंबेडकरनगर | रितेश पांडे | बसपा | मुकुट बिहारी वर्मा | भाजपा |
श्रावस्ती | राम शिरोमणि वर्मा | बसपा | दद्दन मिश्र | भाजपा |
घोसी | अतुल राय | बसपा | हरिनारायण राजभर | भाजपा |
जौनपुर | श्याम सिंह यादव | बसपा | कृष्ण प्रताप | भाजपा |
लालगंज (एससी) | संगीता आजाद | बसपा | नीलम सोनकर | भाजपा |
गाजीपुर | अफजल अंसारी | बसपा | मनोज सिन्हा | भाजपा |
मायावती की बसपा को उत्तर प्रदेश की 403 विधानसभा सीटों में से सिर्फ 1 सीट पर जीत मिली, वो भी उस प्रत्याशी ने जीत हासिल की जिसका जनाधार उसके क्षेत्र में बेहद मजबूत था। कहा जाता है कि उमाशंकर सिंह अगर निर्दलीय भी पर्चा दाखिल कर दें तो उनको हराना आसान नहीं होगा। ऐसे में मायावती को विधानसभा चुनाव के बाद अपनी गलतियों को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए थी, कमियों पर ध्यान देना चाहिए था और मंथन कर जमीनी स्तर पर मेहनत करनी चाहिए थी, मगर बसपा ने ऐसा नहीं किया, वो शांत बैठी हुई हैं।
मायावती ने चार बार संभारी उत्तर प्रदेश की गद्दी
उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक वक्त मायावती अच्छा खासा दबदबा रहा है, मगर अब उनकी हालत ठीक नहीं है। उत्तर प्रदेश में उन्होंने चार बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली है। पहली बार उन्हें 1995 में यूपी की कमान मिली थी। आपको बताते हैं कि मायावती ने कब से कब तक यूपी की गद्दी संभाली
- पहला कार्यकाल: 3 जून 1995 से 18 अक्टूबर 1995 तक
- दूसरा कार्यकाल: 21 मार्च 1997 से 20 सितंबर 1997 तक
- तीसरा कार्यकाल: 3 मई 2002 से 26 अगस्त 2003 तक
- चौथा कार्यकाल: 13 मई 2007 से 6 मार्च 2012 तक
वैसे तो मायावती का जन्म देश की राजधानी दिल्ली में हुआ था। यहीं दिल्ली विश्वविद्यालय के कालिंदी कॉलेज से उन्होंने बीए किया। इसके बाद मेरठ यूनिवर्सिटी से बीएड और फिर डीयू से ही उन्होंने एलएलबी किया। छात्र जीवन में ही कांशीराम के संपर्क में आने के बाद मायावती ने सियासत में आने का मन बनाया था। 1984 में बसपा की स्थापना हुई तो इसके 5 साल बाद 1989 में ही उन्होंने लोकसभा चुनाव में बिजनौर सीट से प्रचंड जीत हासिल की थी। इसके बाद वो राज्यसभा पहुंची। धीरे-धीरे मायावती की लोकप्रियता बढ़ती चली गई और 1995 में ही वो यूपी की मुख्यमंत्री बन गईं।
कैसे खिसकती चली गई बसपा की सियासी जमीन?
मायावती की एक खास वर्ग पर बेहद मजबूत पकड़ मानी जाती रही है। सत्ता में रहते हुए मायावती ने उस वर्ग के लिए काफी काम भी किया, मगर जब वर्ष 2012 में अखिलेश यादव की सरकार आई तो उत्तर प्रदेश में मायावती की पकड़ कमजोर होने लगी। विधानसभा चुनाव 2012 में हार के बाद अब तक उनकी पार्टी बसपा उबर नहीं पाई है। कहीं न कहीं इसकी सबसे बड़ी वजह है उनकी ढिलाई और ढुलमुल रवैया। जनहित से जुड़े मुद्दों पर सड़कों पर उतरना और एक विपक्षी पार्टी होने की भूमिका अदा करने में वो हमेशा पीछे रही हैं। जिसका खामियाजा उन्हें आगामी लोकसभा चुनाव में भी भुगतना पड़ सकता है।
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