महागठबंधन की ताकत, रणनीति और चुनौतियां
बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा के साथ ही राज्य में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) और विपक्षी महागठबंधन के बीच सीधा मुकाबला तय हो गया है। इस बार महागठबंधन, जिसका नेतृत्व राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस कर रही हैं, सत्ता में वापसी के लिए पूरी ताकत झोंक रहा है।
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राजद की सबसे बड़ी ताकत उसका पारंपरिक मुस्लिम-यादव (एम-वाई) समीकरण है। यह वोट बैंक राज्य के कुल मतदाताओं का लगभग 30 प्रतिशत है और दशकों से पार्टी के साथ खड़ा रहा है। हर चुनाव में यही समीकरण राजद की रीढ़ साबित हुआ है। लालू प्रसाद यादव के सक्रिय राजनीति से पीछे हटने के बाद पार्टी की कमान उनके बेटे और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव को सौंपी गई है। तेजस्वी यादव ने युवाओं के मुद्दों—जैसे रोजगार, पलायन और सामाजिक न्याय—को अपनी प्राथमिकता बनाया है। राज्य की नई पीढ़ी में वे उम्मीद और परिवर्तन की राजनीति का चेहरा बनकर उभरे हैं। उनका युवाओं के प्रति दृष्टिकोण और संवाद शैली उन्हें अन्य नेताओं से अलग पहचान देती है।
कांग्रेस के लिए राहुल गांधी की ‘वोटर अधिकार यात्रा’ ने संगठन में नई ऊर्जा का संचार किया है। यह अभियान निचले स्तर तक कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर रहा है, जिसका असर पूरे ‘इंडिया’ गठबंधन के जोश और चुनावी तैयारियों पर दिखाई दे रहा है। कांग्रेस के सक्रिय होने से गठबंधन को ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में वोट बैंक मजबूत करने का लाभ मिल सकता है।
हालांकि राजद की ताकत स्पष्ट है, लेकिन इसे परिवार-केंद्रित पार्टी माना जाता है। लालू प्रसाद यादव और उनके परिवार पर केंद्रित नेतृत्व शैली को लेकर आलोचनाएं समय-समय पर उठती रही हैं। ‘जमीन के बदले नौकरी’ मामले जैसी जांचों ने भी पार्टी की छवि को चुनौती दी है। तेजस्वी यादव को कार्यकर्ताओं का समर्थन मिला है, लेकिन उनके भाई तेज प्रताप यादव और परिवार के अन्य सदस्यों के विवादित बयान और राजनीतिक आचरण ने कई बार पार्टी की एकजुटता को चुनौती दी है। इसके बावजूद तेजस्वी के नेतृत्व में गठबंधन के पास छवि सुधारने और नए मुद्दों के जरिए जनता से जुड़ने का अवसर है।
राज्य में हाल ही में हुए जातीय सर्वेक्षण का राजनीतिक लाभ भी राजद के पक्ष में जा सकता है। हालांकि इसका श्रेय राजग सरकार को दिया जाता है, लेकिन उस समय राजद सत्ता में साझेदार था। पिछड़े और वंचित वर्गों के लिए आरक्षण बढ़ोतरी को राजद अपने ‘मंडल राजनीति’ के एजेंडे से जोड़कर चुनावी लाभ उठा सकता है।
‘इंडिया’ गठबंधन में कांग्रेस, वाम दल और अन्य समान विचारधारा वाले संगठन शामिल हैं। इसके अलावा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के राजग में लौटने से मुस्लिम वोट बैंक का बड़ा हिस्सा इस बार गठबंधन के पक्ष में जा सकता है। यह गठबंधन विशेषकर मुस्लिम और पिछड़े वर्गों के वोट बैंक को जोड़ने की रणनीति पर जोर दे रहा है।
गठबंधन के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। लंबे समय से सत्ता से बाहर रहने के कारण राजद-कांग्रेस गठबंधन को महत्वाकांक्षी नेताओं के बीच तालमेल बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। सीट बंटवारे और नेतृत्व संतुलन को लेकर मतभेद चुनाव से पहले असंतोष पैदा कर सकते हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि राजग “विकास और स्थिर शासन” के एजेंडे को जनता के सामने रखेगा, जबकि ‘इंडिया’ गठबंधन “सामाजिक न्याय, रोजगार और समानता” को अपने चुनावी मुद्दे के रूप में केंद्र में रख रहा है। इस बार चुनावी समीकरणों में जातीय संतुलन, पिछड़े और दलित वर्गों की सक्रियता, और युवा मतदाताओं की भूमिका निर्णायक साबित हो सकती है।
तेजस्वी यादव ने युवाओं के मुद्दों पर लगातार जोर दिया है। बेरोजगारी, पलायन और रोजगार सृजन पर उनके स्पष्ट रुख ने उन्हें युवा मतदाताओं के बीच लोकप्रिय बनाया है। युवा वर्ग के सक्रिय मतदान से ‘इंडिया’ गठबंधन को फायदा हो सकता है, विशेषकर उन जिलों में जहां युवा मतदाता बड़ी संख्या में हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, इस चुनाव में जातीय संतुलन, युवा मतदाताओं की सक्रिय भागीदारी और गठबंधन की एकजुटता ही निर्णायक कारक होंगे। ‘इंडिया’ गठबंधन की सफलता और तेजस्वी यादव की नेतृत्व क्षमता का असली परीक्षण इसी चुनाव में होगा।
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