Maha Shivratri 2023: संगम नगरी के इस मंदिर में आज भी बाबा भोलेनाथ की लगती है कचहरी, भगवान राम ने किया था यहां शिवलिंग स्थापित, जानिए पूरा रहस्य

Maha Shivratri 2023: त्रिवेणी संगम की पावन नगरी में मोक्षदायिनी मां गंगा के तट पर स्थित शिवकुटी पुरम में बाबा कोटेश्वर महादेव विराजमान हैं। कहा जाता है कि, त्रेतायुग में मौजूद इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना भगवान श्रीराम ने स्वयं की थी। कोटेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना के बाद से ही इसके अहाते में शिव का दरबार लगता है। जिसमें इंद्रलोक से समस्त देवी - देवता अप्रत्यक्ष तौर पर उपस्थित होते हैं।

Koteshwar Temple Prayagraj

प्रयागराज के कोटेश्वर शिव मंदिर की स्थापना भगवान श्रीराम ने स्वयं की थी (फाइल फोटो)

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • बाबा कोटेश्वर महादेव की स्थापना भगवान श्रीराम ने स्वयं की थी
  • गंगा के तट पर शिवकुटी पुरम में है बाबा कोटेश्वर महादेव विराजमान
  • कचहरी में बाबा के भक्तों समेत देवी - देवता अपनी फरियाद सुनाते हैं

Maha Shivratri 2023: प्रयागराज में महादेव का एक अनूठा प्राचीन मंदिर है, जहां बाबा आज भी अपने भक्तों की पुकार सुनते हैं। त्रिवेणी संगम की पावन नगरी में मोक्षदायिनी मां गंगा के तट पर स्थित शिवकुटी पुरम में बाबा कोटेश्वर महादेव विराजमान है। कहा जाता है कि, त्रेतायुग में मौजूद इस मंदिर में शिवलिंग की स्थापना भगवान श्रीराम ने स्वयं की थी।

महाशिवरात्रि का पर्व नजदीक है, ऐसे में भगवान शिव के भक्तों को बताते हैं कुछ खास ऐसे मंदिर जहां के कंकर -कंकर में शंकर का वास है। तो चलिए ऐसे ही एक मंदिर के बारे में बताते हैं, जहां का पौराणिक महत्व इतना है कि, आज भी भोले के दीदार के लिए उसकी चौखट पर लगता है भक्तों का तांता। यहां पर महादेव की कृपा ऐसी की प्रभु श्रीराम को भी उनके दर्शनों के लिए संगम के तीरे आना पड़ा।

जानें इस पौराणिक मंदिर के बारे में संगम नगरी में प्रचलित कथाओं में दावा किया गया है कि, त्रेता काल खंड में लंका युद्ध में दशानन का वध कर विजय का वरण करने के पश्चात भगवान राम जब प्रयागराज स्थित महर्षि भारद्वाज के आश्रम लौटे। इसके बाद महर्षि भारद्वाज ने प्रभु श्रीराम से कहा कि, लंकाधिपति रावण एक प्रकांड पंडित था, उसकी ब्रह्महत्या का पाप अब उनके सर पर है, यदि इससे मुक्त होना चाहते हैं, तो बस एक ही उपाय है। जिसमें श्रीराम को मां गंगा के तट पर सवा करोड़ शिवलिंग की स्थापना करनी होगी। महर्षि की आज्ञा पाने के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने गंगा के तट पर सवा करोड़ शिवलिंग की स्थापना उनकी प्राण प्रतिष्ठा करके सबको एक ही शिवलिंग में शामिल कर दिया। इसके बाद उस काल खंड से ही इस मंदिर का नाम कोटेश्वर महादेव प्रचलित हुआ।

कचहरी में सुनते हैं भोले भक्तों की फरियादपौराणिक कथाओं के मुताबिक कहा जाता है कि, कोटेश्वर महादेव मंदिर की स्थापना के बाद से ही इसके अहाते में शिव का दरबार लगता है। जिसमें इंद्रलोक से समस्त देवी - देवता अप्रत्यक्ष तौर पर उपस्थित होते हैं। कचहरी में बाबा के भक्तों समेत देवी - देवता अपनी फरियाद सुनाते हैं, जिसे भोलेनाथ पूरी करते हैं। प्रयागराज में ये मान्यता है कि, बाबा शिव के दरबार में श्रद्धालु अपनी मनोकामना सुनाते हैं, जिसके बाद वे पूरी होती है। बता दें कि, मंदिर में बाबा के दरबार में हाजिरी लगाने से पहले श्रद्धालु मां गंगा के पावन जल से स्नान करने के पश्चात यहां आते हैं। इसके बाद गंगाजल से भगवान आशुतोष का अभिषेक भी करते हैं।

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