Maha Shivratri 2023: भोपाल में ये शिव मंदिर हैं बेमिसाल, ऐसे करें दर्शन, जानें पूरा इतिहास

Maha Shivratri 2023: भोपाल से 32 किमी की दूरी पर पहाड़ी पर एक बड़ा मगर, अधूरा शिव मंदिर स्थित है। इसे भोजपुर शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर का निर्माण परमार वंश के राजा भोज द्वारा करवाया गया था। दिर में स्थापित शिवलिंग एक पत्थर से निर्मित है और दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग है। इस मंदिर की सबसे खास बात तो ये है कि, ये आज भी अधूरा खड़ा है।

Bhojapur Shiv Temple

आज भी अधूरा खड़ा है भोपाल के नजदीक प्रसिद्ध भोजपुर शिव मंदिर

तस्वीर साभार : Times Now Digital
मुख्य बातें
  • मंदिर का निर्माण परमार वंश के राजा भोज द्वारा करवाया गया
  • अलग अंदाज से होती है यहां भगवान आशुतोष की पूजा
  • मंदिर में शिवलिंग एक पत्थर से निर्मित दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग है

Maha Shivratri 2023: इस बार अगर आप महाशिवरात्रि के मौके पर किसी प्रसिद्ध शिव मंदिर में दर्शन करने का प्लान बना रहे हैं तो आपको बताते हैं एक ऐसे अनूठे महादेव मंदिर के बारे में जो कि, प्राचीन तो है ही, इसके अलावा यहां का प्राकृतिक दृश्य अनुपम है। तो चलिए जानते हैं इस अद्भुत मंदिर के बारे में।

लेक सिटी भोपाल से 32 किमी की दूरी पर पहाड़ी पर स्थित है एक बड़ा मगर, अधूरा शिव मंदिर। इसे भोजपुर शिव मंदिर के नाम से जाना जाता है। मंदिर का निर्माण परमार वंश के राजा भोज द्वारा करवाया गया था।

दुनिया के सबसे बड़े शिवलिंग का दावामंदिर के आसपास की छटा सभी को लुभाती है। मंदिर बेतवा नदी के किनारे स्थित है। इलाके के इतिहासकार दावा करते हैं कि, इस मंदिर में स्थापित शिवलिंग एक पत्थर से निर्मित है और दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग है। इस मंदिर की सबसे खास बात तो ये है कि, ये आज भी अधूरा खड़ा है। इसके पूरा नहीं बनने के पीछे की कहानी इस प्रकार है कि, इस मंदिर का निर्माण एक ही रात्रि में होना था। मगर, सूर्योदय तक इसके ऊपर के गुंबद तक का ही निर्माण हो सका। इसके बाद निर्माण बंद कर दिया गया, तब से मंदिर अधूरा ही खड़ा है।

अलग अंदाज से होती है यहां पूजा आप मंदिर में पूजा करने जाएंगे तो हैरान हो जाएंगे, वजह है यहां की अनठी पूजा पद्धति। इस मंदिर में भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करने का तरीका सबसे जुदा है। खास बात ये है कि, शिवलिंग का आकार इतना बड़ा है कि आप यहां खड़े होकर ही भगवान शंकर का अभिषेक कर सकते हैं। जो कि, हमेशा जलहरी पर चढ़ने के बाद ही किया जाता है। कुछ अर्से पूर्व तक बाबा के भक्त जलहरी तक जाकर पूजा कर सकते थे, मगर अब वहां जाना वर्जित कर दिया गया है। केवल मंदिर के पुजारी ही वहां तक जा सकते हैं।

दो बार लगता है यहां मेलाइलाके के लोगों के मुताबिक महाभारत कालखंड के दौरान अज्ञातवास के समय पांडव माता कुंती के साथ इस इलाके में आए थे। पांडवों ने भगवान शिव की पूजा भी की थी। इसके बाद दूसरे दिन भोर में जैसे ही पांडव गायब हुए व मंदिर अधूरा रह गया। बता दें कि, यहां साल में दो बार मकर संक्रांति और महा शिवरात्रि के समय मेला लगता है। मंदिर में साल भर सैलानियों का आवागमन रहता है।

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