Santan Saptami Vrat Katha In Hindi (संतान सप्तमी व्रत कथा): संतान सप्तमी का व्रत भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन रखा जाता है। इस साल संतान सप्तमी का व्रत आज यानि 10 सितंबर 2024 को रखा जा रहा है। इस दिन माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा का विधान है। संतान सप्तमी का व्रत महिलाएं संतान सुख के लिए और संतान की लंबी आयु के लिए करती हैं। इस व्रत को करने से संतान को हर सुख की प्राप्ति होती है और जिनकी संतान नहीं उनको संतान की प्राप्ति होती है। संतान सप्तमी का व्रत संतान सप्तमी की कथा के बिना अधूरा माना जाता है। इस दिन इसी कथा का पाठ करना उत्तम फलदायी होता है। आइए यहां पढ़ें संतान सप्तमी की व्रत कथा।
Santan Saptami Vrat Katha In Hindi (संतान सप्तमी व्रत कथा)
एक समय की बात है जब श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को बहुत महत्वपूर्ण और खास व्रत के बारे में बताया था। ये व्रत भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन रखा जाता है। भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि इस दिन सूर्य देव और लक्ष्मी-नारायण की पूजा करने संतान सुख मिलता है। इसके साथ ही संतान की सारी समस्याओं का नाश भी होता है। उन्होंने कहा कि कंस ने कैसे उनकी माता देवकी की सारी संतान को मार दिया था। तब उनको एक ऋषि संतान सप्तमी का व्रत करने के लिए कहा था। माता देवकी ने इस व्रत का विधिपूर्वक पालन किया। इस व्रत के प्रभाव से श्रीकृष्ण का जन्म धरती पर हुआ और कंस उनका कुछ भी ना बिगड़ पाया।
इस व्रत की कथा में राजा नहुष की पत्नी की कथा भी बहुत प्रसिद्ध मानी जाती है। पौराणिक काल में अयोध्या में नहुष नाम के एक बहुत बड़े राजा राज करते थे। राजा की पत्नि का चंद्रमुखी था। इनकी एक प्रिय सखी थी जिसका नाम रूपमती था। एक बार रानी अपनी प्रिय सखी रुपमती के साथ सरयू के किनारे स्नान के लिए गईं तो वहां उन्होंने देखा कि बहुत सारी स्त्रियां संतान सप्तमी व्रत की पूजा कर रही हैं। रानी भी वहां पर अपनी सखी के संग बैठकर वो पूरी पूजा देखने लगी। उसके बाद रानी और उनकी सखी ने भी संतान सप्तमी व्रत करने की ठानी, लेकिन कुछ समय बाद रानी और उनकी सखी इस व्रत को करना भूल गई । ऐसे ही समय बिता वो और उनकी सहेली कुछ समय बाद जीवन यापन करके देह त्याग करके चली गईं। इस व्रत को भूल जानें के कारण उनका अन्य योनियों में जन्म हुआ और बाद में अच्छे कर्म करने के बाद मनुष्य तन की प्राप्ति हुई।
अगले जन्म में रानी चंद्रमुखी ईश्वरी नामक राजकन्या हुई और उनकी सहेली रूपमती ब्राह्मण की कन्या बनकर आईं। इस जन्म ने उनकी सहेली रूपमती को पूर्व जन्म की सारी बाते याद थीं। उसने संतान सप्तमी का व्रत किया जिसके कारण उनको 8 संतान की प्राप्ति हुई। चंद्रमुखी ईश्वरी ने इस व्रत को नहीं किया। जिसके कारण उनको एक भी संतान नहीं हुआ। संतान ना होने के कारण से वो रूपमती की संतानों से जलने लगीं और उन्होंने कई बार उसकी संतान का मारने का प्रयास किया पर वो हर बार असफल हो जाती। बाद में ईश्वरी को अपनी भूल का एहसास हुआ और उसने अपनी गलती मानकर रूपमती से क्षमा मांगी। उसके बाद संतान प्राप्ति के लिए रूपमती ने ईश्वरी को संतान सप्तमी व्रत करने को कहा। इस व्रत के प्रभाव से ईश्वरी को भी संतान सुख की प्राप्ति हुई और संतान के साथ वो अपना जीवन खुशी से जीने लगी।