सुप्रीम कोर्ट (फाइल फोटो)
देश में बढ़ते ऑनलाइन सट्टेबाजी और गेमिंग के खतरे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक नई जनहित याचिका दाखिल की गई है। यह याचिका सेंटर फॉर एकाउंटेबिलिटी एंड सिस्टेमेटिक चेंज (CASC)और एडवोकेट शौर्या तिवारी की ओर से दायर की गई है। देश के साइबर कानून के जाने माने जानकर और एडवोकेट विराग गुप्ता ने चीफ जस्टिस बी आर गवई के सामने इस याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग की। जिस पर इसी हफ्ते के शुक्रवार को सुनवाई सम्भव है। याचिका में कहा गया है कि ऑनलाइन गेमिंग और सट्टेबाजी समाज, अर्थव्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट के सामने रखी गई प्रमुख मांगें-
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार और संबंधित मंत्रालयों को निर्देश देने की मांग की है कि वे तत्काल ये कदम उठाएं
1. ऑनलाइन सट्टेबाजी और जुए वाले सभी ऐप्स को ब्लॉक किया जाए।
2. Google Play Store और Apple App Store पर केवल वही गेमिंग ऐप्स रखे जाएं, जो सरकार से लाइसेंस प्राप्त हों।
3. 18 साल से कम उम्र के बच्चों को किसी भी मनी गेम या ई-स्पोर्ट्स में भाग लेने से रोका जाए।
4. बैंकिंग, UPI और पेमेंट गेटवे से ऐसे गेमिंग प्लेटफॉर्म पर होने वाली किसी भी लेनदेन की अनुमति न दी जाए।
5. CBI और ED के जरिए इंटरपोल की मदद से विदेशी कंपनियों से टैक्स की वसूली की जाए।
6. बच्चों का डेटा सुरक्षित करने के लिए सभी गेमिंग कंपनियों पर निगरानी रखी जाए।
याचिका में सुझाव दिया गया है कि केंद्र सरकार, तमिलनाडु की तर्ज पर पूरे देश में ऑनलाइन गेमिंग (प्रतिबंध) कानून 2022 जैसे सख्त प्रावधान लागू करे। याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि जिस तरह आतंकवाद से निपटने के लिए महाराष्ट्र ने मकोका कानून लागू किया, उसी तरह ऑनलाइन सट्टेबाजी को संगठित अपराध मानकर सख्त कानून बनाए जाएं।
याचिका में बताया गया है कि देश में करीब 65 करोड़ लोग ऑनलाइन गेम खेलते हैं, जिनमें से लगभग 45 करोड़ लोग सट्टेबाजी और जुआ जैसे ऐप्स के शिकार बन चुके हैं। इन खेलों से हर साल करीब 1.8 लाख करोड़ रुपये का अवैध कारोबार हो रहा है। सरकार के ही आंकड़ों के मुताबिक, अब तक 20,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की जनता के मेहनत की गाढ़ी कमाई इन गेमिंग कंपनियों के पास चली गई है।
याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि ऑनलाइन सट्टेबाजी केवल आर्थिक नहीं बल्कि सामाजिक और मानसिक संकट भी बन चुकी है। कई लोग कर्ज में डूबकर आत्महत्या कर चुके हैं। परिवार टूट रहे हैं और युवा वर्ग नशे की तरह ही इन ऐप्स पर निर्भर होता जा रहा है।
सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री ने भी संसद में चर्चा के दौरान कहा था कि इन ऐप्स के एल्गोरिदम इतने जटिल हैं कि खिलाड़ी को यह तक पता नहीं चलता कि सामने कौन खेल रहा है और हार निश्चित होती है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि नामी क्रिकेटर और फिल्मी सितारे ऐसे अवैध गेम्स का प्रचार कर रहे हैं, जिससे बच्चों और युवाओं में गलत संदेश जा रहा है। कई विज्ञापन तो सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे प्लेटफॉर्म पर चलाए जा रहे हैं, जो कानून का उल्लंघन है। याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से मांग की है कि ऐसे सभी सरोगेट विज्ञापनों पर तुरंत रोक लगाई जाए।
संसद में हाल ही में पारित प्रमोशन एंड रेगुलेशन ऑफ ऑनलाइन गेमिंग एक्ट, 2025 में सट्टेबाजी को समाज के लिए गंभीर बुराई बताया गया था। इसके बावजूद अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69ए के तहत केंद्र सरकार को ऐसे ऐप्स पर प्रतिबंध लगाने का अधिकार है। लेकिन तीन सालों में सिर्फ 1524 ब्लॉकिंग आदेश जारी किए गए, जबकि समस्या लगातार बढ़ती जा रही है।
संविधान की सातवीं अनुसूची के मुताबिक सट्टेबाजी और जुआ राज्य सूची के विषय हैं। हालांकि केंद्र सरकार पर यह जिम्मेदारी है कि वह आईटी अधिनियम के तहत इन प्लेटफॉर्मों पर कार्रवाई करे। याचिका में कहा गया है कि राज्य पुलिस ताश के पत्ते खेलने वालों को तो पकड़ रही है, लेकिन ऑनलाइन सट्टेबाजी के बड़े गिरोहों के खिलाफ कोई ठोस कदम नहीं उठाया जा रहा।
याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से केंद्र सरकार और संबंधित मंत्रालयों को निर्देश देने की मांग की है कि वे तत्काल ये कदम उठाएं
1. ऑनलाइन सट्टेबाजी और जुए वाले सभी ऐप्स को ब्लॉक किया जाए।
2. Google Play Store और Apple App Store पर केवल वही गेमिंग ऐप्स रखे जाएं, जो सरकार से लाइसेंस प्राप्त हों।
3. 18 साल से कम उम्र के बच्चों को किसी भी मनी गेम या ई-स्पोर्ट्स में भाग लेने से रोका जाए।
4. बैंकिंग, UPI और पेमेंट गेटवे से ऐसे गेमिंग प्लेटफॉर्म पर होने वाली किसी भी लेनदेन की अनुमति न दी जाए।
5. CBI और ED के जरिए इंटरपोल की मदद से विदेशी कंपनियों से टैक्स की वसूली की जाए।
6. बच्चों का डेटा सुरक्षित करने के लिए सभी गेमिंग कंपनियों पर निगरानी रखी जाए।
याचिका में सुझाव दिया गया है कि केंद्र सरकार, तमिलनाडु की तर्ज पर पूरे देश में ऑनलाइन गेमिंग (प्रतिबंध) कानून 2022 जैसे सख्त प्रावधान लागू करे। याचिकाकर्ताओं ने यह भी कहा कि जिस तरह आतंकवाद से निपटने के लिए महाराष्ट्र ने मकोका कानून लागू किया, उसी तरह ऑनलाइन सट्टेबाजी को संगठित अपराध मानकर सख्त कानून बनाए जाएं।
CASC संस्था पहले भी कई जनहित मामलों में सक्रिय रही है। इस संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में अदालती कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग की पहल, डिजिटल पेमेंट कंपनियों के डेटा लोकलाइजेशन और पर्यावरण बचाने के लिए डबल साइड पेपर नीति जैसे सुझाव दिए थे। वहीं अधिवक्ता शौर्या तिवारी ने साइबर अपराधों और महिलाओं-बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए भी कई मामलों में सहयोग किया है।
याचिका में कहा गया है कि भारत में ऑनलाइन जुआ अब सबसे बड़ा राष्ट्रीय संकट बन चुका है। सरकार ने कई बार सलाह और दिशा-निर्देश जारी किए हैं, लेकिन अब तक ठोस नतीजे नहीं दिखे। याचिका में यह भी कहा गया कि अगर महाभारत के समय ही जुए को नियंत्रित किया गया होता तो युधिष्ठिर अपनी पत्नी और भाइयों को दांव पर नहीं लगाए। और समाज को वर्तमान समय में बड़ा नुकसान नहीं होता।
याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से अपील की है कि वह केंद्र और राज्यों को साझा नीति बनाने के निर्देश दिए जाए ताकि इस बढ़ती लत को रोका जा सके। कोर्ट से यह भी अनुरोध किया गया है कि मामले पर त्वरित सुनवाई कर अंतरिम आदेश जारी किए जाएं, ताकि नाबालिगों की सुरक्षा और जनता की आर्थिक हानि रोकी जा सके।
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