डाउन सिंड्रोम के साथ हर साल पैदा हो रहे 37 हजार बच्चे, WHO की रिपोर्ट में हुआ खुलासा, देश में यहां सबसे ज्यादा केस

37 Thousand Children Are Born With Down Syndrome Every Year Says WHO: डाउन सिंड्रोम कोई लाइलाज बीमारी नहीं है, लेकिन इसके लिए समय पर पहचान और सामाजिक जागरूकता बेहद जरूरी है। हाल ही में आई WHO की रिपोर्ट ने देश में इसके मामलों की असली तस्वीर शेयर की है, रिपोर्ट चेतावनी दे रही है कि हमें अपनी स्वास्थ्य प्रणाली को और मजबूत बनाना होगा, ताकि हर बच्चा एक बेहतर जीवन जी सके। चलिए जानते हैं, रिपोर्ट में क्या बताया गया है।

37 Thousand Children Are Born With Down Syndrome Every Year

37 Thousand Children Are Born With Down Syndrome Every Year

37 Thousand Children Are Born With Down Syndrome Every Year Says WHO: हाल ही में WHO यानी वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन की एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसने लोगों की चिंता बढ़ा दी है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर साल करीब 37 हजार बच्चे डाउन सिंड्रोम के साथ पैदा हो रहे हैं। यह कोई छोटी बात नहीं है, क्योंकि इस बीमारी का सीधा असर बच्चे के दिमागी और शारीरिक विकास पर पड़ता है। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि देश के कुछ राज्यों, खासतौर पर मध्य प्रदेश में इसके मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं।

क्या होता है डाउन सिंड्रोम?

डाउन सिंड्रोम एक तरह की जेनेटिक बीमारी होती है, जो बच्चे के जन्म के समय ही होती है। इसमें बच्चे के शरीर में एक क्रोमोसोम ज्यादा होता है, जिससे उसका मानसिक विकास धीमा हो जाता है। ऐसे बच्चों को बोलने, समझने और सीखने में ज्यादा समय लगता है। इनके चेहरे के बनावट और हावभाव भी सामान्य बच्चों से थोड़े अलग होते हैं।

हर साल 37 हजार केस

WHO की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल लगभग 37 हजार बच्चे इस बीमारी के साथ जन्म लेते हैं। यह आंकड़ा बहुत बड़ा है और इससे साफ होता है कि अब वक्त आ गया है जब इस पर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत में इस बीमारी को लेकर अभी भी काफी कम जागरूकता है, जिस वजह से समय रहते इलाज और देखभाल नहीं हो पाती।

भोपाल और मध्य प्रदेश में मामले ज्यादा क्यों?

इस रिपोर्ट में खासतौर पर भोपाल और मध्य प्रदेश का ज़िक्र किया गया है, जहां डाउन सिंड्रोम के केस तेजी से बढ़ रहे हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि समय पर प्रेग्नेंसी की जांच न होना, देर से शादी करना और महिलाओं की उम्र ज़्यादा होने पर गर्भधारण करना इसके पीछे के मुख्य कारण हैं। कई बार माता-पिता को खुद भी इस बीमारी के बारे में जानकारी नहीं होती।

समय पर जांच और जानकारी से बच सकते हैं जोखिम से

डाउन सिंड्रोम को पूरी तरह खत्म तो नहीं किया जा सकता, लेकिन समय रहते अगर जांच हो जाए और माता-पिता को इसकी सही जानकारी हो, तो बच्चे को अच्छी देखभाल और सही मार्गदर्शन मिल सकता है। गर्भावस्था के दौरान कुछ जरूरी टेस्ट करवा लेने से इस बीमारी का अंदाजा लगाया जा सकता है और ज़रूरत पड़ने पर सही सलाह ली जा सकती है।

सही देखभाल से सामान्य जीवन जी सकते हैं ऐसे बच्चे

हालांकि डाउन सिंड्रोम से जूझ रहे बच्चों को सामान्य बच्चों से थोड़ा अलग देखभाल की जरूरत होती है, लेकिन प्यार, धैर्य और सही स्पेशल एजुकेशन से ये बच्चे भी पढ़-लिखकर, काम करके एक बेहतर और सम्मानजनक जीवन जी सकते हैं। ज़रूरत सिर्फ समाज में जागरूकता फैलाने और ऐसे बच्चों को अपनाने की है, न कि उनसे दूर होने की।

अब वक्त आ गया है कि हम डाउन सिंड्रोम जैसे मुद्दों को गंभीरता से लें। सिर्फ मेडिकल जांच नहीं, समाज को भी इस पर खुलकर बात करनी होगी ताकि हर बच्चा, चाहे वो किसी भी हालत में पैदा हुआ हो, एक बेहतर जिंदगी पा सके।

डिस्क्लेमर: प्रस्तुत लेख में सुझाए गए टिप्स और सलाह केवल आम जानकारी के लिए हैं और इसे पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जा सकता। किसी भी तरह का फिटनेस प्रोग्राम शुरू करने अथवा अपनी डाइट में किसी तरह का बदलाव करने से पहले अपने डॉक्टर से परामर्श जरूर लें।

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Vineet author

मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर चीफ कॉपी एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से दिल्ली का रहने वाला हूं। हेल्थ और फिटनेस जुड़े विषयों में मेरी खास दिलचस्पी है।...और देखें

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