Operation Sindoor: भारत और पाकिस्तान के बीच चौधरी बनने चला था चीन, ट्रंप के दांव से ड्रैगन के मंसूबों पर फिर गया पानी
India Pakistan Ceasefire: सीजफायर के बाद भले ही तनी संगीने नीचे हो गयी, लेकिन पश्चिमी सीमा पर छाया तनाव अभी भी कम नहीं हुआ है। भारतीय सुरक्षा बल और पाकिस्तानी सेना अभी भी आमने सामने बनी हुई है, सैन्य शब्दावली में कहें तो मिरर डिप्लॉयमेंट बना हुआ है। भारतीय रणबाकुंरों ने एक बार फिर जमीन, हवा और पानी में अपना दबदबा साबित किया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (बाएं), चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (बीच) और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ (दाएं)
India Pakistan Ceasefire: सीजफायर के बाद भले ही तनी संगीने नीचे हो गयी, लेकिन पश्चिमी सीमा पर छाया तनाव अभी भी कम नहीं हुआ है। भारतीय सुरक्षा बल और पाकिस्तानी सेना अभी भी आमने सामने बनी हुई है, सैन्य शब्दावली में कहें तो मिरर डिप्लॉयमेंट बना हुआ है। भारतीय रणबाकुंरों ने एक बार फिर जमीन, हवा और पानी में अपना दबदबा साबित किया। ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) के दौरान आंतकी ठिकानों को निशाना बना गया, ये काम अभी भी बदस्तूर जारी है। घाटी में आतंकियों की निशानदेही और धरपकड़ की मुहिम लगातार जारी है। जिस ढंग से ये ऑपरेशन शुरू किया गया उससे साफ है कि अब हमें कई पक्ष की ओर सोचना पड़ेगा। अब विमर्श का दौर सामरिक, रणनीतिक और कूटनीतिक पहलूओं की ओर बढ़ेगा। इससे नई दिल्ली को भविष्य की रणनीतियां तैयार करने में खासा मदद मिलेगी। इसी फेहरिस्त में अहम रहेगी इस्लामाबाद और ड्रैगन की कथित लेकिन स्याह जुगलबंदी। बीजिंग ने अस्थिर देश पाकिस्तान में निवेश कर बड़ा दांव खेला है। इसी वजह से जब हालात बिगड़ते तो उसकी बेचैनी बढ़ने लगी। चीन ये अच्छे से जानता है कि स्थितियां अगर नहीं संभली तो इससे उसका निवेश तो बेकार जायेगा ही साथ ही दक्षिण-एशियाई उपमहाद्वीप के कई हिस्सों में इसका असर पहुंचेगा।
सीजफायर से राहत महसूस करता ड्रैगन
भले ही युद्ध विराम कराने में कई लोग शामिल रहे हो, लेकिन इस कवायद में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नाम उभर कर सामने आया। इन सबके बीच ड्रैगन संघर्ष विराम को लेकर खुश है, साफ है सामरिक नफा चीन को मिला, क्योंकि उसकी परिसंपत्तियों पर अब जंग की परछाईंयां नहीं हैं। चीन की ऊपरी भलमनसाहत की अवसरवादिता ने तनाव कम करने पर जोर दिया। दीर्घकालीन आकलन दिखाते हैं कि नई दिल्ली और इस्लामाबाद का लंबा सामरिक संघर्ष उपमहाद्वीप के लिए तो खतरा था ही, लेकिन ये चीनी भू-राजनीतिक टैक्टोनिक प्लेटों को हिलाकर रख देता, जिससे कि उसके आर्थिक हितों के लिए सीधा खतरा था।
नाकाम रहे चीनी हथियार
रावलपिंडी में बैठे जनरल चीनी तकनीक के साथ अतिआत्मविश्वास में थे, लेकिन उनका भ्रम हिंदुस्तानी हमला ले डूबा। चीनी एयर डिफेंस सिस्टम एचक्यू-9 और एलवाई-80 (सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल) की नाकामी के चलते पाकिस्तान के कई एयरबेस तबाह हो गए। उनके तोपखाने, हथियार डिपो और आर्टिलरी जमघट जमींदोज हो गए। चीनी पीएल-15 मिसाइलें फुस्स होकर भारत की पश्चिमी और उत्तरी सीमा के पास गिरी हुई मिली। साथ ही जे-10सी जेट्स भी भारतीय वायुसेना के हवाई दबदबे का सामना करने में फेल रहा। बता दें कि पाकिस्तान के हथियारों का 81 फीसदी जखीरा चीन से आता है, और इस नाकामी ने चीन की साख को भारी नुकसान पहुंचाया। दिलचस्प है कि पाकिस्तान के पास चीनी होवित्ज़र तोपे और टैंक भी भारत के खिलाफ आग उगलने में उतने कारगर नहीं रहे जितना कि पाक सेना उम्मीद लगाए बैठी थी।
नई दिल्ली की ओर खींचता बीजिंग
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीनी विदेश मंत्रालय ने दोनों ही मुल्कों से शांति और संयम बरतने की अपील की, जिससे कि आने वाली भौगोलिक पेचीदियों से बचा जा सके। इसकी बड़ी मिसाल बना सिंधु जल संधि का निलंबन। बीजिंग और इस्लामाबाद मौसम संबंधी डेटा और जल संबंधी आंकड़े साझा करते हैं, जिसमें नदियों का बहाव अहम हिस्सा है। सिंधु का पानी रुकने से इस काम में आंशिक तौर पर रुकावट आएंगी। नदियों का प्रवाह रोकना पारंपरिक संघर्ष और उसके संभावित खतरों से परे की चीज है, जिसकी कल्पना दोनों ने ही नहीं की थी। इस तथ्य से चार कदम आगे बढ़ते हुए चीन अपना कूटनीतिक दबदबा बनाने के लिए नई दिल्ली और इस्लामाबाद के बीच मध्यस्थता करके युद्धविराम कराना चाह रहा था, लेकिन इस मोर्चे पर वाशिंगटन बाज़ी मार ले गया। ड्रैगन अजीब सी दुविधा में फंसा हुआ है, जहां एक ओर CPEC और BRI के चलते वो पड़ोसी मुल्क के साथ कदमताल करने के लिए बेबस है। वो दोनों ही परियोजनाओं की सुरक्षा से समझौता नहीं कर सकता। वहीं दूसरी तरफ टैरिफ वॉर और भारत की इकोनॉमी रफ्तार उसे नई दिल्ली से कारोबार करने के लिए अपनी ओर खींचती है।
छिन गया विश्वसनीय मध्यस्थ बनने का मौका
हथियारबंद झड़पे चीन कभी भी नहीं चाहेगा, सड़क, रेल, ऊर्जा और बंदरगाह से जुड़ी परियोजनाओं के नाम पर उसने पाकिस्तान में करीबन 5,177 खरब रूपये का निवेश किया है। इस निवेश के दम पर वो दक्षिण एशिया में अपने कारोबारी सहयोगियों से सालाना 16,700 खरब रूपये कमाने की मंशा पाले बैठा है। उसके ये समीकरण तभी कामयाब होंगे, जब क्षेत्रीय शांति और स्थिरता बनी रहे। चीनी हुक्मरान माने बैठे हैं कि अमेरिकी जिस तरह से भारतीय सैन्य बलों का आधुनिकीकरण कर रहे हैं, उससे हिंद प्रशांत में उसकी बादशाहत को चुनौती मिलेगी। नई दिल्ली-वाशिंगटन की करीबियां ड्रैगन के लिए बहुपक्षीय मुश्किलें पैदा करती हैं। बीजिंग को लगता है कि ताइवान और भारत का साथ देकर अमेरिका दक्षिण एशिया में उससे दो-दो हाथ करना चाहता है। इस कथित थ्योरी के दम पर अमेरिकी कारोबारी नीतियां तेजी से उपमहाद्वीप में फैल सकती हैं। इसी का सामना करने के लिए वो पाकिस्तान को साथ लिए चल रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान उसके पास ये मौका आया था इन हालातों को काउंटर करने के लिए, लेकिन ये मौका फौरी तौर पर ट्रंप भुना ले गए। कई पश्चिमी मीडिया घराने तो यहां तक मान रहे है कि इस्लामाबाद को जंगी मदद ना देकर ड्रैगन ने पिछले दरवाज़े से भारत का साथ दिया।
चीन के कारोबारी हित दांव पर
पाकिस्तान के साथ करीबी बढ़ाकर चीन बेहद सधी और नपी तुली प्रतिक्रिया दे रहा है। भारत के साथ तिजारती तालुल्कात बढ़ाने के लिए उसने अपने तेवर नर्म किए और बातचीत का दौर शुरू किया। बीते वित्तीय वर्ष में दोनों देशों के बीच तकरीबन 108 खरब रूपये का कारोबार हुआ। चीनी मंशा है कि किसी भी सूरत में भारत और पाकिस्तान का साथ उसके पक्ष में बना रहे ताकि वो अमेरिकी दबदबे को नाकाम कर सके। इससे इतर दिलचस्प है कि ऑपरेशन सिंदूर चीन के लिए बड़ा झटका साबित हुआ। चीनी फौजी साजोसामान की नाकामी दुनिया के सामने आ गयी। इससे उसके डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग सैक्टर को बड़ा झटका लगेगा। कुछ अफ्रीकी मुल्कों ने उससे हथियार खरीदे थे, माना जा रहा है कि अब वो अपने फैसले पर दोबारा गौर करेंगे।
सिंधू जल समझौते की बहाली चाहते हैं जिनपिंग
अभी भारत गैर-सैन्य मोर्चे पर पाकिस्तान को टक्कर दे रहा है। सिंधू जल समझौते को रोककर नई दिल्ली पाकिस्तान का हल़क सुखाना चाहती है। माना तो ये भी जा रहा है कि मानसून में बांधों का पानी एकाएक खोलकर वो पाकिस्तान को घुटने पर लायेगा। ऐसे में चीन भारत को ये सब ना करने के लिए राजी करेगा। उसकी कामयाबी इस बात पर निर्भर करेगी कि नई दिल्ली जल-साझाकरण संधि को फिर से बहाल करे। इस काम के लिए उसे बहुपक्षीय साझदारों की दरकार होगी, जो कि उसकी मंशा की पैरवी करे। इस तरह के संभावित कदम उठाकर वो खुद को क्षेत्रीय स्तर पर विश्वसनीय तटस्थ मध्यस्थ के तौर पर स्थापित करना चाहेगा। बड़ी बात ये भी है कि ड्रैगन इस संभावित राह पर चलकर खुद को संतुलित साबित करेगा। मौजूदा तस्वीर में वो पाकिस्तान के साथ खड़ा दिखायी दे रहा है। अगर वो अपनी सोच को अमली जामा पहना सका तो उसकी भू-राजनीतिक व्यावहारिकता अमेरिका से चार कदम आगे निकलती दिखायी देगी।
छवि को लेकर छटपटाहट में चीन
भले ही पाकिस्तानी सरजमीं चीनी हथियारों की टेस्टिंग रेंज है, लेकिन अगर बीजिंग की पहल से उपमहाद्वीप में स्थिरता, शांति और शक्ति संतुलन कायम होता है तो ये उसके लिए बड़ा तोहफा होगा। चीन अपनी स्थिति मजबूत करते हुए ब्रिक्स जैसे मंचों पर वैश्विक संतुलनकर्ता की भूमिका में आने के लिए छटपटा रहा है। ऐसा करके वो दक्षिण एशिया और ग्लोबल साउथ में अपनी धमक का अहसास करवायेगा। कुल मिलाकर चीन दुनिया के सामने खुद को जिम्मेदार मुल्क साबित करने के लिए बेकरार है, साथ ही वो साबित करना चाहता है कि अमेरिकी मध्यस्थता, पहल और उनके कार्यक्रम लेन-देन वाली नीति से जुड़े हुए है। साथ ही ऑपरेशन सिंदूर की कामयाबी ने चीन को ये भी सोचने पर मजबूर किया कि नई दिल्ली के साथ सीधा टकराव उसके हित में नहीं है।
इस आलेख के लेखक राम अजोर जो वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार एवं समसमायिक मामलों के विश्लेषक हैं।
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