कब, कहां और कैसे बनेगा 2024 का ब्लू प्रिंट? नीतीश पहुंचे दिल्ली, 5 प्वाइंट में समझें BJP की मुश्किल और विपक्ष की पूरी राजनीति

Lok Sabha election 2024: संयुक्त विपक्ष की पहली बैठक कब और कहां होगी? ऐसे में आइए जानते हैं विपक्ष किस तरह से भाजपा को घेरने की कोशिश कर रहा है? संयुक्त विपक्ष की पहली बैठक कब और कहां हो सकती है? कांग्रेस की इसमें क्या भूमिका होगी? और भाजपा के लिए यह बैठक किस तरह से मुश्किल बन सकती है...

Updated May 21, 2023 | 10:44 AM IST

Nitish Kumar

दिल्ली पहुंचे नीतीश कुमार

Lok Sabha election 2024: कर्नाटक विधानसभा चुनाव ने पूरे देश की राजनीति को बदल कर रख दिया है। राज्य के चुनावी नतीजों से हाशिए पर खड़ी कांग्रेस को बूस्टर मिला है तो विपक्षी एकता को भी धार मिली है। इसका मजमून शनिवार को बेंगलुरू में कर्नाटक सीएम के शपथ ग्रहण समारोह में देखने को मिला, जहां कांग्रेस ने विपक्ष के कई बड़े नेताओं को आमंत्रित किया था। इस शपथ ग्रहण समारोह में महबूबा मुफ्ती, फारुख अब्दुल्ला, शरद पवार और नीतीश कुमार जैसे विपक्ष के दिग्गज नेता भी पहुंचे थे। हालांकि, कांग्रेस के मंच से विपक्षी एकता का किसी प्रकार का शक्ति प्रदर्शन नहीं किया गया, लेकिन भाजपा को यह संदेश देने की कोशिश जरूर हुई कि 2024 के लोकसभा के लिए संयुक्त विपक्ष बड़ी रणनीति तैयार कर रहा है।
2024 में कितनी विपक्षी पार्टियां साथ आएंगी, यह तो भविष्य ही बताएगा। लेकिन हिमाचल के बाद कर्नाटक चुनाव के नतीजों ने कांग्रेस के कद को जरूर बढ़ा दिया है। सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण समारोह में एक तरह से कांग्रसे ने विपक्षी दलों को यह संदेश देने की भी कोशिश की कि आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा का विकल्प सिर्फ कांग्रेस ही हो सकती है और सभी दलों को उसके नेतृत्व में चुनाव लड़ना होगा।
सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण समारोह के बाद विपक्ष 2024 का ब्लूप्रिंट तैयार करने में जुट गया है। इसके अगुवा बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं, जो कर्नाटक से सीधे दिल्ली पहुंचे है। कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार आज दिल्ली में कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों के नेताओं के साथ बैठक कर सकती हैं। इस बैठक में यह तय होगा कि संयुक्त विपक्ष की पहली बैठक कब और कहां होगी? ऐसे में आइए जानते हैं विपक्ष किस तरह से भाजपा को घेरने की कोशिश कर रहा है? संयुक्त विपक्ष की पहली बैठक कब और कहां हो सकती है? कांग्रेस की इसमें क्या भूमिका होगी? और भाजपा के लिए यह बैठक किस तरह से मुश्किल बन सकती है...

कहां हो सकती है विपक्ष की पहली बैठक?

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण समारोह के बाद नीतीश कुमार सीधे दिल्ली पहुंचे हैं। उनके साथ बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव भी हैं। माना जा रहा है कि दोनों नेता आज दिल्ली में कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात कर सकती हैं। इस बैठक में यह तय होगा कि संयुक्त विपक्ष की पहली बैठक कहां होगी। माना जा रहा है कि यह बैठक पटना में हो सकती है।

कैसा होगा विपक्ष का ब्लूप्रिंट?

खबरों के मुताबिक, कर्नाटक में शनिवार को विपक्षी नेताओं के बीच हुई मुलाकात के दौरान यह सहमति बनी है कि जितनी जल्दी हो सके विपक्षी दल एकजुटता को लेकर आम रणनीति तैयार कर ली जाए। इसके लिए टीएमसी सुप्रीमो पहले ही अपना फार्मूला सामने रख चुकी हैं। उन्होंने आगामी लोकसभा चुनाव में अलग-अलग राज्यों में क्षेत्रीय दलों को वरीयता देने की बात कही है। हालांकि, अभी इस पर आम सहमति नहीं बनी है। लेकिन माना जा रहा है कि विपक्ष की रणनीति इस दिशा में आगे बढ़ सकती है, क्योंकि पहले एनसीपी प्रमुख शरद पवार भी ऐसे ही रणनीति की वकालत कर चुके हैं।

कांग्रेस की क्या होगी भूमिका?

विपक्ष को एक करने में जुटे नीतीश कुमार के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस की भूमिका तय करने में है। दरअसल, विपक्षी एकता में सबसे बड़ा सवाल विपक्ष के चेहरे को लेकर है, इस सवाल से कांग्रेस समझौता नहीं करना चाहती है। हिमाचल प्रदेश के बाद कर्नाटक विधानसभा चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस का कद भी बढ़ा है, ऐसे में 2024 चुनाव में कांग्रेस खुद को ड्राइविंग सीट पर रखना चाहती है।

अब पांच बिंदुओं में भाजपा की चुनौतियां

  1. कर्नाटक हारने के बाद दक्षिण भारतीय राज्यों में भाजपा की उपस्थिति लगभग शून्य हो गई है। इन राज्यों में क्षेत्रीय दलों के बाद कांग्रेस सीधे मुकाबले में है। ऐसे में अगर दोनों साथ आते हैं तो भाजपा के लिए चुनौती बन सकते हैं।
  2. बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। पिछले चुनाव में एनडीए को 39 सीटें मिली थीं। हालांकि, अब जेडीयू एनडीए से अलग हो चुकी है, जिसके बाद यहां के राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल गए हैं। कांग्रेस, राजद और जेडीयू अगर एक होकर चुनाव लड़ती हैं तो सीधा नुकसान भाजपा को हो सकता है।
  3. उत्तर प्रदेश में भाजपा की सीधी लड़ाई समाजवादी पार्टी से है। अखिलेश यादव ने यहां कांग्रेस को समर्थन देने के संकेत दिए हैं, जो समस्या बन सकता है।
  4. अगर लोकसभा चुनाव क्षेत्रीय दलों के फार्मूले पर लड़ा जाता है और विपक्ष का गठबंधन इसमें सफल होता है तो भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है।
  5. अगर लोकसभा चुनाव में भाजपा को 50 से 80 सीटों का नुकसान होता है तो कई सहयोगी दल भी उससे छिटक सकते हैं।
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