अविश्वास प्रस्ताव पर नरेंद्र मोदी की कप्तानी पारी! सेट करना चाहा 2024 के लिए 'मैदान', समझें- BJP का प्लान
Narendra Modi on No-confidence Motion: दरअसल, मोदी सरकार ने नौ साल के अब तक के कार्यकाल में दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया। हालांकि, यह भी विफल रहा जिसका पहले से अंदाजा था। केंद्र के खिलाफ इस मोशन को लोकसभा ने ध्वनिमत से खारिज कर दिया। इस पर वोटिंग ही नहीं हुई क्योंकि विपक्ष पीएम के जवाब देने के समय ही सदन से वॉकआउट कर गया था।
Narendra Modi on No-confidence Motion: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्ष को जमकर घेरा, लपेटा और धोया। गुरुवार (10 अगस्त, 2023) को संसद के निचले सदन लोकसभा में उनके भाषण से ये संकेत तो सबको साफ मिल गए, मगर उन्होंने इसके साथ ही आगामी चुनावों के लिए नैरेटिव सेट करने का पुरजोर प्रयास किया। सवा दो घंटे से अधिक समय (लगभग 132 मिनट्स) के अपने संबोधन के दौरान उन्होंने जिस कदर विरोधियों को पानी पी-पीकर कोसा उसने राजनीतिक गलियारों में स्पष्ट संदेश दिया कि उन्होंने नो-कॉन्फिडेंस मोशन (अविश्वास प्रस्ताव) का नैरेटिव बदलने की पूरी कोशिश की। पीएम ने चुन-चुनकर एक-एक मसले पर अपनी बात रखी। फिर चाहे वह अविश्वास प्रस्ताव हो, विवपक्षी गठजोड़ 'इंडिया' को जवाब हो, कांग्रेस के पूर्व चीफ राहुल गांधी पर प्रहार हो या फिर मणिपुर हिंसा पर अपना बयान हो।
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मोदी की स्पीच में 98 बार गलतियां हुईं। 22 दफा ठहाके लगे, जबकि 13 बार विपक्षी सदस्यों की तरफ से टोकाटाकी की गई और इस दौरान मोदी ने हिंसा की आग में झुलसे नॉर्थ ईस्ट के मणिपुर का जिक्र 29 बार किया। वैसे, सदन से पीएम मोदी के ये जुबानी हमले 2024 के आम चुनाव और उनसे पहले मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ समेत कुछ और सूबों के विधानसभा चुनाव के नैरेटिव से जुड़ी पिच को बनाने वाली जमीन या पृष्ठभूमि समझे गए। प्रधानमंत्री की हालिया स्पीच एक किस्म की "कप्तानी पारी" थी, जो कि नैरेटिव सेट करने वाली थी। पीएम के भाषण के केंद्र में कांग्रेस और राहुल गांधी रहे।
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सियासी जानकारों की मानें तो यह (अविश्वास प्रस्ताव) निश्चित तौर से परसेप्शन की लड़ाई थी। चूंकि, लोकसभा चुनाव के लिए धीरे-धीरे जमीन तैयार की जा रही है और इसमें मोदी बनाम राहुल का नैरेटिव बनाया जा रहा है। रोचक बात है कि ऐसा तब देखने को मिला जब सदन में कांग्रेस का नेता और पार्टी अध्यक्ष कोई और है, मगर आमने-सामने की इस राजनीतिक लड़ाई में बीजेपी के साथ कांग्रेस भी यही चाहती है कि मोदी के सामने सबसे बड़े चेहरे के रूप में राहुल ही हों।
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दरअसल, बीजेपी राहुल को विपक्ष को नेता इसलिए चाहती है क्योंकि वह मानकर चलती है कि अगर सामने गांधी होंगे तब इस जंग को लड़ना काफी आसान रहेगा, जबकि कांग्रेस इंडिया गठबंधन में अपने कद के चलते राहुल को फ्रंटफुट पर देखना चाहती है। वैसे, यह बात इंडिया गठबंधन के बाकी दलों और बड़े नेताओं के माथे की शिकन बढ़ाने वाली है। यही वजह है कि कुछ सीनियर पत्रकार और पॉलिटिकल पंडित आशंका जताते हैं कि आने वाले समय में इंडिया गठबंधन से कुछ दल अलग भी हो सकते हैं।
अगर 2024 में कांग्रेस अकेली सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरती है, तब स्पष्ट है कि पीएम या नेता चुनने का विकल्प कांग्रेस के पास होगा और संभवतः वह राहुल ही हो सकते हैं। फिर भी नेतृत्व कौन करेगा? यह सीट के आधार पर ही मुख्यतः तय होगा। निःसंदेह मोदी मौजूदा समय में मजबूत जनाधार के साथ अच्छी लोकप्रियता वाले नेता हैं, मगर जिस कदर कांग्रेस हिमाचल और कर्नाटक में जीती वह यह चीज दर्शाती है कि कांग्रेस और राहुल का ग्राफ भी बढ़ा है। सूत्रों के हवाले से कुछ टीवी मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि राहुल की इमेज भारत जोड़ो यात्रा के दूसरा चरण के जरिए और सुधारी जा सकती है।
राहुल के निशाने पर जहां सीधे तौर पर अक्सर पीएम रहे और उन्होंने बड़े-बड़े ज्वलंत मसलों को मुख्यधारा में लाते हुए मुद्दा बनाने की कोशिश की। इसके जवाब में बीजेपी ने राहुल की छवि बिगाड़ने की रणनीति पर काम किया है। फिर चाहे वह सोशल मीडिया के जरिए "भारत माता की हत्या" वाले बयान पर जोर देना हो या "फ्लाइंग किस" को इशु बनाना। साफ तौर पर समझा जा सकता है कि बीजेपी राहुल को नॉन सीरियस नेता करार देना चाहती है। ऐसे में यह भी दिख रहा है कि खेल छवि बनाने और बिगाड़ने का भी चल रहा है।
एक ओर जहां अपनी इमेज में नई जान फूंकने के साथ राहुल की छवि को बनाती (भारत जोड़ो यात्रा और अन्य गंभीर मुद्दों को उठाते हुए) दिखी है, उससे समझा जा सकता है कि वह अभी से आम चुनावों के लिए कमर कसे है। मगर मोदी ने अपने भाषण के जरिए "इमोश्नल बॉन्ड" का कार्ड खेलना चाहा और उन्होंने स्पीच में कई ऐसी चीजों का जिक्र किया जो कि बीजेपी के राष्ट्रवाद से कनेक्ट होती हैं।
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