हंसते-खेलते बच्चों को Kota भेजते हैं मां-बाप, वापस आती है उनकी लाश! जरा सोचिए...

'मेरे बच्चे डॉक्टर बनेंगे, इंजीनियर बनेंगे, आईआईटी में पढ़ेंगे, एमबीबीएस करेंगे... कुछ ऐसे ही ख्वाब को पूरा करने के लिए माता-पिता अपने बच्चों को खुद से दूर कोटा में पढ़ाई के लिए भेजते हैं। लाखों बच्चे तैयारी करते हैं, इनमें से कुछ के ही सपने पूरे हो पाते हैं, कुछ वापस लौट आते हैं। मगर कुछ बच्चों की लाश वापस आती है।

Kota, Suicide

कोटा में बच्चे आखिर क्यों करते हैं सुसाइड?

Kota Students Suicide: वो अपने कलेजे के टुकड़े को खुद से दूर भेजते हैं। ऐसे माता-पिता को अपने बच्चों से अपार उम्मीदें रहती हैं। आईआईटी-नीट जैसे ख्वाब सजाकर बच्चे राजस्थान के कोटा जिले में पहुंचते हैं। इस शहर को कोचिंग हब के नाम से जाना जाता है, मगर धीरे-धीरे ये कोचिंग हब बच्चों का हत्यारा बनता जा रहा है। आखिर चंद महीनों में ऐसा क्या बदल जाता है जो अपने सपनों को पंख देने के मकसद से इस शहर में आने वाले बच्चे इस कदर डिप्रेशन के जंजाल में फंस जाते हैं, जिन्हें मौत को गले लगाने के अलावा कुछ और नहीं सूझता।

क्या बच्चों के पास मौत के अलावा कोई विकल्प नहीं होता?

जरा सोचिए... उन मां-बाप पर क्या गुजर रही होगी, जिन्होंने अपने बच्चों को सही-सलामत कोटा भेजा और कुछ ही महीनों बाद उन्हें अपने बच्चों की लाश मिली। बच्चों की खुदकुशी का सिलसिला कोई नया नहीं है, सालों से कोचिंग सेंटर्स में तैयारी करने वाले बच्चे मौत को गले लगा रहे हैं। आंकड़े इस बात की गवाही दे रहे हैं कि कोचिंग हब में कारोबार फल फूल रहा है, कोचिंग मालिकों की जेब भरती जा रही है और आत्महत्याएं थमने का नाम नहीं ले रही हैं। नीचे दिए इन आंकड़ों से समझिए कोटा का दर्द...

किस साल कितने बच्चों ने मौत को गले लगाया?

साल 2023 का 9वां महीना चल रहा है और अब तक कुछ 24 बच्चों ने खुद को मार डाला। यानी इस साल अब तक 24 बच्चों ने आत्महत्या कर ली। सुसाइड का मामला कितनी तेजी से रफ्तार पकड़ रहा है, ये समझने के लिए आपको पिछले 8 सालों के आंकड़े देखने चाहिए। साल 2015 से 2019 के बीच 80 से भी अधिक बच्चों ने सुसाइड कर लिया। जबकि बीते 2022 में 15 छात्रों ने आत्महत्या की। ये आंकड़ा सिलसिलेवार तरीके से समझिए।

वर्ष 2015- 18 बच्चों ने सुसाइड किया

वर्ष 2016- 17 बच्चों ने आत्महत्या की

वर्ष 2017- 7 बच्चों ने सुसाइड किया

वर्ष 2018- 20 बच्चों ने आत्महत्या की

वर्ष 2019- 18 बच्चों ने सुसाइड किया

वर्ष 2020 और 2021- कोविड के चलते कोई आत्महत्या नहीं हुई

वर्ष 2022- 15 बच्चों ने सुसाइड किया

वर्ष 2023 (अब तक)- 24 बच्चों ने आत्महत्या की

फल फूल रहा है कोचिंग का कारोबार, देखें पूरा हिसाब

रिपोर्ट्स के अनुसार, राजस्थान के कोटा में कोचिंग का कारोबार धड़ल्ले से चल रहा है। कमाई इस कदर रफ्तार पकड़ ली है कि ये कारोबार करीब 5 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा का हो चुका है। कोटा में कोचिंग सेंटर की सालाना फीस करीब 40 हजार रुपये से 1.5 लाख रुपये तक है। इस शहर में छोटे-बड़े कोचिंग संस्थान हैं। इस शहर में हर साल करीब दो लाख बच्चे जुलाई से जनवरी तक NEET, UG और JEE की तैयारी करने पहुंचते हैं। इस कोचिंग हब को 'कोटा जंक्शन' या 'कोटा फैक्ट्री' भी कहा जाता है। मेडिकल और इंजीनियरिंग का सपना बुनकर यहां बच्चे हर साल उम्मीदों के साथ पहुंचते हैं।

ज्यादा से ज्यादा क्या होगा? परीक्षा में फेल हो जाएंगे

जब जिंदगी ही नहीं बचेगी तो फिर उम्मीदें अपने आप खत्म हो जाएंगी। सपने हर किसी के टूटते हैं, इसका मतलब ये नहीं कि हम हार मान जाए। कागज और कम्यूटर पर होने वाली मजह एक परीक्षा जिंदगी से बड़ी नहीं हो सकती है। ज्यादा से ज्यादा क्या होगा, बच्चे परीक्षा में फेल हो जाएंगे। अगर जिंदा रहेंगे तो कुछ और कर लेंगे, मगर मन से हार कभी नहीं माननी चाहिए। कोचिंग छात्रों की खुदकुशी पर राजस्थान के शिक्षा मंत्री बीडी कल्ला ने बच्चों को एक सकारात्मक संदेश दिया। उन्होंने कवि कुमार विश्वास का उदाहरण पेश करते हुए कहा कि 'बच्चों का IQ टेस्ट करके ही उन्हें कोचिंग के लिए भेजना चाहिए। प्रख्यात कवि कुमार विश्वास से सीखें। कुमार विश्वास इंजीनियर बनना चाहते थे और आज बड़े कवि बनकर एक-एक शो से 25 लाख रुपये कमाते हैं।' मां-बाप को सलाह देते हुए मंत्री ने आगे बोला कि माता-पिता को बच्चों की रुचि भी देखनी चाहिए।

बच्चों का कसूरवार, कौन लेगा जिम्मेदारी?

असल सवाल यही है कि आखिर बच्चे इतने तनाव में आ रहे हैं और अपनी जिंदगी को खत्म कर देने का फैसला ले रहे हैं तो इसका असल जिम्मेदार कौन है, उन बच्चों का कसूरवार कौन है? कोई सिस्टम पर सवाल उठा रहा है तो कोई माता पिता का कसूर बता रहा है। वहीं कोचिंग सेंटर्स पर भी उगाही का आरोप लग रहा है।

मंत्री ने बच्चों के माता-पिता पर जाहिर की नाराजगी

9 महीने में कोटा में 24 बच्चों ने सुसाइड कर लिया। राज्य सरकार में प्रताप सिंह ने Times Now नवभारत से बातचीत में कोचिंग संस्थानों को जमकर खरी-खोटी सुनाई। उन्होंने कहा कि 'यह सिर्फ कोटा की प्रॉब्लम नहीं है, बल्कि यूनिवर्सल प्रॉब्लम है। बच्चे सुसाइड कर रहे हैं, क्योंकि जिनके माता-पिता कभी फर्स्ट डिवीजन नहीं आए वह चाहते हैं कि बच्चा फर्स्ट पोजीशन लेकर आए। डीएनए भी तो कोई चीज होती है जिनके मदर-फादर होशियार होते हैं, उनके बच्चे भी होशियार होते हैं। आप 8th के बच्चों को 12th की तैयारी करवा रहे हैं और 12th के बच्चों को डायरेक्ट IAS की तैयारी करवाते हैं। यह सब क्या है?

कोचिंग सेंटर्स के खिलाफ जरूर होगी बड़ी कार्रवाई

प्रताप सिंह ने आगे कहा कि कोचिंग इंस्टीट्यूट ने बड़े-बड़े अंपायर खड़े कर लिए, लेकिन बच्चों के एंजॉयमेंट और काउंसलिंग के लिए अलग विंग बनानी चाहिए। हम कोचिंग वालों के खिलाफ भी एक्शन लेंगे। कोचिंग वाले सोचते है कि बच जाएंगे। कोई नहीं बचेगा, यह बच्चों से पैसे इकट्ठे करके नहीं बच सकते हैं। यह टॉपर बच्चों को अपने इंस्टिट्यूट में अलग से सुविधा देकर पढ़ाते हैं और कहते हैं कि हमारा टॉपर है, जबकि यह टॉपर उनका बनाया हुआ नहीं होता। वो तो बचपन से ही टॉपर है, फिर लोग सोचते हैं कि उसे इंस्टिट्यूट का बच्चा टॉप आया है। लेकिन वो तो पहले से ही मेरिट में आ रहा था। यह उसको पकड़ लेते हैं बच्चे को डिप्रेशन में लाते हैं और बच्चा परेशान हो जाता है।

उन्होंने कहा कि बच्चा अगर नंबर नहीं ला पता है और वह सुसाइड कमिट कर लेता है, तो जिन कोचिंग इंस्टिट्यूट और हॉस्टल में माहौल नहीं है उनके खिलाफ कार्रवाई करेंगे। माता-पिता से भी रिक्वेस्ट करूंगा कि अपने सपने बच्चों में पूरे करने की कोशिश ना करें। इंस्टिट्यूट के खिलाफ जितनी सख्त कार्रवाई हो सकती करेंगे। इंस्टिट्यूट अगर ज्यादा आगे बढ़कर मदद नहीं करेंगे तो इंस्टिट्यूट वाले घर बैठेंगे, फिर जरूरत नहीं है उनकी उनके बिना भी स्कूल और कॉलेज और यूनिवर्सिटी थी। तब भी बच्चे टॉप कर रहे थे साइंटिस्ट बन रहे थे। ऐसे लोगों की जरूरत नहीं है अगर सुसाइड बढ़ाने में रोकने में आगे बढ़कर मदद नहीं करोगे तो ऐसे कोचिंग इंस्टिट्यूट हमें नहीं चाहिए।

जीत की चाह रखने वाले क्यों हार जाते हैं जिंदगी की जंग?

खुद को मौत की आगोश में झोंक देने वाले इन बच्चों के दिमाग में आखिर ऐसा क्या चल रहा था और उन्हें ऐसी कौन सी पीड़ा थी जिससे इस दुनिया में रहकर लड़ाई नहीं लड़ी जा सकती थी। उन मां-बाप के बारे में सोचिए, जो अपने बच्चों को हंसते-खेलते Kota भेजते हैं और खुद से दूर करके उनके भविष्य को उज्ज्वल होता देखना चाहते हैं और एक दिन कोटा से उनके बच्चे की लाश वापस आती है।

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आयुष सिन्हा author

मैं टाइम्स नाउ नवभारत (Timesnowhindi.com) से जुड़ा हुआ हूं। कलम और कागज से लगाव तो बचपन से ही था, जो धीरे-धीरे आदत और जरूरत बन गई। मुख्य धारा की पत्रक...और देखें

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