क्या दस्तक देने लगा है थर्ड फ्रंट? RJD प्रमुख लालू यादव को भी दिखी ममता में उम्मीद
Third Front : केजरीवाल, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, अखिलेश के बाद अब लालू का कांग्रेस से कन्नी काटना। इंडिया गठबंधन के नेतृत्व पर बड़े बदलाव का संकेत दे रहा है। राजनीतिकार भी मान रहे हैं कि हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद सहयोगी दल कांग्रेस को दग चुके कारतूस की तरह देख रहे हैं। क्षेत्रीय दलों का मानना है कि जिस राज्य में वे मजबूत हैं।
इंडिया गठबंधन में सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है।
Third Front : इंडिया गठबंधन की गाड़ी हिंचकोले खाने लगी है। घटक दलों का कांग्रेस और उसके नेतृत्व से मोहभंग होने लगा है। इस अलायंस के एक-एक साथी टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी के पीछे लामबंद हो रहे हैं। कांग्रेस के लिए बुरी खबर यह भी है कि सोनिया गांधी से बेहतर रिश्ते रखने वाले राजद सुप्रीमो लालू यादव ने भी ममता के नेतृत्व पर हामी भर दी है। राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के बीच भी अच्छी केमेस्ट्री मानी जाती है। हिंदी बेल्ट के राज्यों में कांग्रेस का किसी राजनीतिक दल से यदि सबसे बेहतर तालमेल है तो वह राजद ही है लेकिन इंडिया गठबंधन के नेतृत्व के मुद्दे पर उसका स्टैंड कांग्रेस को तो चौंकाया ही है। लालू के बयान ने राजनीतिक पंडितों को भी हैरत में डाल दिया है।
लालू बोले-ममता को नेतृत्व दे देना चाहिए
राजद अध्यक्ष के बयान ने इंडिया गठबंधन में नेतृत्व परिवर्तन पर बहस तेज कर दी है। आइए जानते हैं कि मीडिया से बातचीत में लालू ने नेतृत्व के मुद्दे पर आखिर कहा क्या। लालू ने कहा कि ममता को इंडिया गठबंधन का नेतृत्व दे देना चाहिए। हम लोग उनका समर्थन करेंगे। कांग्रेस के विरोध से कुछ नहीं होने वाला है, ममता को नेतृत्व दे दिया जाना चाहिए।' तेजस्वी ने भी अपने पिता के सुर में सुर मिलाते हुए ममता का समर्थन किया। तेजस्वी ने कहा कि ममता बनर्जी के नेतृत्व को लेकर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है लेकिन कोई भी फैसला सबकी सहमति से होना चाहिए।
कांग्रेस को दग चुके कारतूस के रूप में देख रहे
केजरीवाल, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, अखिलेश के बाद अब लालू का कांग्रेस से कन्नी काटना इंडिया गठबंधन के नेतृत्व पर बड़े बदलाव का संकेत दे रहा है। राजनीतिकार भी मान रहे हैं कि हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद सहयोगी दल कांग्रेस को दग चुके कारतूस की तरह देख रहे हैं। क्षेत्रीय दलों का मानना है कि जिस राज्य में वे मजबूत हैं। वहां तो वह या तो भाजपा के विजय रथ को रोक ले रहे हैं या उसे कड़ी टक्कर दे रहे हैं लेकिन कांग्रेस ऐसा नहीं कर पा रही है। ममता बनर्जी की टीएमसी का कहना है कि बंगाल में उसने भाजपा को हराया है। ममता के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा और नरेंद्र मोदी को हरा सकता है। यही बात अखिलेश और केजरीवाल के भी मन में कहीं न कहीं हो सकती है।
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सपा और कांग्रेस के बीच टकराव
दिल्ली में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। यहां कांग्रेस के साथ गठबंधन कि किसी संभावना से केजरीवाल पहले ही इंकार कर चुके हैं तो संभल और अंडानी मुद्दे पर प्रदर्शन को लेकर कांग्रेस और सपा के बीच टकराव सामने आ चुका है। कुल मिलाकर इंडिया के सहयोगी दलों को लगता है कि कांग्रेस की वजह से राज्यों और राष्ट्रीय स्तर पर उनका प्रदर्शन कमजोर पड़ता जा रहा है। उन्हें कांग्रेस के लिए कम्प्रोमाइज करना पड़ता है, उनकी बदौलत कांग्रेस तो आगे बढ़ जाती है लेकिन इसके बदले उन्हें गठबंधन में जो एक सम्मान मिलना चाहिए, उसे वह नहीं देती।
सहयोगी दल कांग्रेस से भीतर ही भीतर नाराज
लेकिन सच्चाई यह भी है चाहे वह ममता हों, अखिलेश हों या केजरीवाल। इन सबकी ताकत और प्रभाव एक या दो राज्यों से अधिक नहीं है। कांग्रेस भले ही कमजोर है लेकिन उसकी उपस्थिति और प्रभाव देश भर में है। यह बात इंडिया गठबंधन के सहयोगी दल भी जानते हैं तो फिर इनकी नाराजगी और असंतोष की वजह क्या है तो इसकी भी एक कारण है। इंडिया गठबंधन को कांग्रेस जिस तरह से चला रही है, उससे उसके सहयोगी दल नाराज हैं। सामान्य तौर पर होना तो ये चाहिए था कि गठबंधन का कोई सचिवालय होता, संयोजक और प्रवक्ता होतास साझा मुद्दे होते, बेहतर तालमेल होता लेकिन ये सारी चीजें इंडिया गठबंधन से नदारद हैं। इसलिए सहयोगी दलों को लगता है कांग्रेस इस गठबंधन को चलाने में सक्षम नहीं है। उसे दूसरे को मौका देना चाहिए। दूसरी बात कांग्रेस को लगता है कि सपा, टीएमसी, शरद पवार वाली एनसीपी और उद्धव ठाकरे वाली शिवसेना के पास उसके साथ रहने के अलावा कोई और दूसरा विकल्प नहीं है। ये भाजपा के साथ नहीं जा सकते इसलिए वह और मनमानी करती है।
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तीसरे मोर्चे के शक्ल की दस्तक
जाहिर है कि कांग्रेस के नेतृत्व से उसके सहयोगी दलों को परहेज होने लगा है। ममता बनर्जी के चेहरे पर उन्हें भरोसा जगा है। यह सियासी उधेड़बुन एक बार फिर तीसरे मोर्चे के शक्ल की दस्तक दे रही है। दिल्ली चुनाव में अगर केजरीवाल की हैट्रिक लग जाती है तो हो सकता है कि इस दिशा में ये दल तेजी से आगे बढ़ें। बहरहाल, इंडिया गठबंधन की सियासी आंच गरम है, इसके उबाल से नए-नए राजनीतिक संदर्भ निकल रहे हैं।
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