नहीं टिकी साजिश की थ्योरी! पांच प्वाइंट में समझिए कहां-कहां जांच समिति के सामने फंसे जस्टिस वर्मा
Justice Varma Cash Case: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज यशवंत वर्मा पर महाभियोग तय लग रहा है। जस्टिस वर्मा के आवास से अधजले नोट बरामद हुए थे, तब जस्टिस वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट में तैनात थे। इस मामले की जांच कर रही समिति ने जस्टिस वर्मा को दोषी ठहराया है।

जस्टिस यशवंत वर्मा (फाइल फोटो)
Justice Varma Cash Case: न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा, आज की तारीख में इलाहाबाद हाईकोर्ट में तैनात लेकिन सुनवाई से दूर। 14 मार्च 2025 को यशवंत वर्मा के दिल्ली वाले घर में आग लगी। दमकर कर्मी वहां आग बुझाने पहुंचे तो अधजले नोटों का ढेर पाया। तब जस्टिस यशवंत वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट में तैनात था। हाईकोर्ट के एक जज के यहां नोटों को मिलना, सनसनी फैला गया, न्यायपालिका पर सवाल उठने लगा। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत एक्शन लिया, जांच समिति गठित हुई, जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर हुआ और उन्हें न्यायिक कार्य से दूर कर दिया गया। अब जांच समिति की रिपोर्ट आ चुकी है। जस्टिस वर्मा, जांच समिति की रिपोर्ट में तो दोषी दिख रही हैं। जांच समिति ने जस्टिस वर्मा के साजिश वाली थ्योरी को भी खारिज कर दिया है।
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1. पुलिस में क्यों नहीं जस्टिस वर्मा?
दिल्ली में न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के तत्कालीन आधिकारिक आवास से जले नोट बरामद किये जाने के मामले में उनकी साजिश की ‘थ्योरी’ को खारिज करते हुए पूछा कि उन्होंने (न्यायमूर्ति वर्मा ने) पुलिस में शिकायत क्यों नहीं दर्ज कराई। न्यायमूर्ति वर्मा के अनुसार, जिस भंडार कक्ष में यह बरामदगी हुई थी, उसका इस्तेमाल अप्रयुक्त फर्नीचर, बोतलें, कालीन और लोक निर्माण विभाग की सामग्री सहित विविध वस्तुओं को रखने के लिए किया जाता था और संपत्ति के सामने तथा पीछे दोनों प्रवेश द्वारों से पहुंचा जा सकता था, जिससे बाहरी लोगों के लिए वहां पहुंचना आसान हो जाता था।
2. स्टोर रूम में जस्टिस वर्मा का गुप्त नियंत्रण
पंजाब एवं हरियाणा उच्च के मुख्य न्यायाधीश शील नागू की अध्यक्षता वाली तीन-सदस्यीय समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट में कहा कि न्यायमूर्ति वर्मा और उनके परिवार के सदस्यों का भंडार कक्ष पर ‘‘गुप्त या सक्रिय नियंत्रण’’ था। समिति की जांच रिपोर्ट में कहा गया है कि यह साबित करता है कि उनका कदाचार इतना गंभीर था कि उन्हें हटाया जाना चाहिए।
3. मुख्य न्यायाधीश के पास क्यों नहीं गए जस्टिस वर्मा?
समिति ने कहा, "न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के अस्वाभाविक आचरण पर पहले ही गौर किया जा चुका है...और तथ्य यह है कि अगर कोई साजिश की बात थी तो उन्होंने पुलिस अधिकारियों के पास कोई शिकायत दर्ज क्यों नहीं कराई या उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या भारत के प्रधान न्यायाधीश के संज्ञान में क्यों नहीं लाया कि उनके घर के भंडार कक्ष में करेंसी नोटों के जलने के बारे में ‘प्लांटेड खबर’ बनाई गई थीं।’’
प्रस्तावित कार्रवाई का घटनाक्रम
- 14 मार्च, 2025: दिल्ली स्थित 30 तुगलक क्रिसेंट स्थित वर्मा के सरकारी बंगले में रात करीब 11:35 बजे आग लग गई।
- 15 मार्च: दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिकारियों ने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर घटनास्थल का निरीक्षण किया।
- 17 मार्च: दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी के उपाध्याय ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना से मुलाकात की।
- 20 मार्च: दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने प्रधान न्यायधीश के साथ तस्वीरें और वीडियो साझा किए।
- 20 मार्च: अंग्रेजी दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया ने न्यायमूर्ति वर्मा के आवास पर कथित रूप से अधजली नकदी मिलने की खबर दी।
- दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने गहन जांच को लेकर प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखा।
- 21 मार्च: प्रधान न्यायाधीश ने न्यायमूर्ति वर्मा से 22 मार्च दोपहर 12 बजे से पहले लिखित में जवाब मांगा। उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम ने न्यायमूर्ति वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय स्थानांतरित करने पर भी विचार किया।
- 22 मार्च: न्यायमूर्ति वर्मा ने जवाब दिया, आरोपों को खारिज किया। प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की। उच्चतम न्यायालय ने मामले से संबंधित फोटो और वीडियो सहित आंतरिक जांच रिपोर्ट अपनी वेबसाइट पर अपलोड की।
- 28 मार्च: न्यायमूर्ति वर्मा को उनके मूल न्यायालय इलाहाबाद उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया। उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से कहा कि उन्हें न्यायिक कार्य न सौंपा जाए।
- 3 मई: उच्चतम न्यायालय की समिति ने न्यायमूर्ति को कदाचार का दोषी पाया और उन्हें हटाने की सिफारिश की।
- 8 मई: तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ महाभियोग चलाने की मांग की क्योंकि न्यायमूर्ति वर्मा ने पद छोड़ने से इनकार कर दिया।
4. ट्रांसफर आदेश को सीधे स्वीकार क्यों किया?
जांच समिति ने न्यायमूर्ति वर्मा द्वारा आग की घटना के बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपने स्थानांतरण को स्वीकार करने के कृत्य की जांच की।
पैनल ने कहा, "एक और कारण जो हमारे सामने है, वह है घटना के बाद का आचरण, जिसमें न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने स्थानांतरण आदेश के प्रस्ताव को चुपचाप स्वीकार कर लिया, जो उन्हें 20 मार्च को भारत के प्रधान न्यायाधीश के कार्यालय से अपना न्यायिक कार्य समाप्त करने के बाद शाम 4.15 बजे मिला था, जबकि वे उक्त प्रस्ताव के अनुसार 21 मार्च 2025 को सुबह नौ बजे तक जवाब दे सकते थे।’’
5. 'जो भरोसा जताया था, उसे झुठलाया है'
समिति ने कहा कि 20 मार्च को बिना किसी ‘‘आपत्ति’’ के स्थानांतरण की ‘‘स्पष्ट और तत्काल’’ स्वीकृति सामान्य परिदृश्य में परिवार के सदस्यों के साथ चर्चा के बाद और स्थानांतरण का कारण जानने के प्रयास के बाद होती, खासकर पिछले तीन वर्षों से दिल्ली उच्च न्यायालय में सेवा देने के बाद।’’ रिपोर्ट में आगे कहा गया है, ‘‘न्यायमूर्ति वर्मा या उनके परिवार के सदस्यों या किसी अन्य गवाह की ओर से कोई उचित स्पष्टीकरण न मिलने के कारण, इस समिति के पास यह मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं है कि स्टोर रूम में करेंसी नोटों के ढेर जैसी अत्यधिक संदिग्ध सामग्री रखने की अनुमति देकर उन्होंने उन पर जो भरोसा जताया था, उसे झुठलाया है।’’
क्या है जस्टिस वर्मा कैश कांड
14 मार्च 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस वर्मा के सरकारी आवास में आग लग गई। जैसे ही दमकल ने अग्नि पर काबू पाया, स्टोर रूम में भारी संख्या में आंशिक रूप से जले हुए नोट बरामद हुए। इस घटना के तुरन्त बाद एक जांच समिति गठित की गई। इस सिलसिले में, मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय हाईकोर्ट जजों की समिति का गठन किया गया, जिसने 42 दिनों तक चलने वाले निरीक्षण के बाद अपनी रिपोर्ट तैयार कर 4 मई 2025 को मुख्य न्यायाधीश (CJI) को सौंप दी। तत्पश्चात जांच समिति की रिपोर्ट के साथ-साथ जस्टिस वर्मा का जवाब भी राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री को भेज दिया गया है। जांच समिति ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग की सिफारिश कीहै। यदि वर्मा इस्तीफा नहीं देते हैं, तो संसद में उनके खिलाफ महाभियोग प्रक्रिया भी आरंभ हो सकती है।
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