इतना गुस्से में क्यों हैं किसान? दिल्ली ही नहीं यूरोपीय देशों में भी सड़क पर अन्नदाता, समझिए क्या है 'दिल्ली चलो' मार्च का बर्लिन लिंक

Farmer protest in India: किसान आंदोलन सिर्फ दिल्ली या भारत तक ही सीमित नहीं है। सरकारी रवैये को लेकर अलग-अलग देशों का किसान काफी गुस्से में है और बीते एक साल से लगातार प्रदर्शन कर रहा है। हालांकि, किसानों की मांगे अलग-अलग हैं।

Kisan Andolan.

किसान आंदोलन

India Farmer protest Berlin Connection: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आज काफी हलचल भरा माहौल रहा। संयुक्त किसान मोर्चा और किसान मजदूर मोर्चा के आह्वान पर हजारों किसान दिल्ली की सीमाओं में दाखिल होने के लिए संघर्ष करते नजर आए। पुलिस भी दिनभर किसानों से जूझती रही और कई जगहों से पुलिस-किसानों की झड़प की भी खबरें सामने आईं। किसानों की मुख्य मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी है। इस मांग को लेकर विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा का किसान मुखर है और राशन से भरे टैंकरों और ट्रैक्टर पर सवार होकर दिल्ली के लिए निकल पड़ा है।

हालांकि, किसान आंदोलन सिर्फ दिल्ली या भारत तक ही सीमित नहीं है। सरकारी रवैये को लेकर अलग-अलग देशों का किसान काफी गुस्से में है और बीते एक साल से लगातार प्रदर्शन कर रहा है। पिछले साल की ही बात है, 18 दिसंबर को जर्मनी में सैकड़ों किसानों ने ट्रैक्टरों पर सवाल होकर राजधानी बर्लिन के लिए कूच कर दिया था। पूरी राजधानी जाम हो गई थी। किसान सरकार द्वारा कृषि सब्सिडी में हालिया कटौती का विरोध कर रहे थे। इसके बाद यह आंदोलन बुल्गारिया, फ्रांस, हंगरी, इटली, पोलैंड और स्पेन में भी शुरू हो गया। किसानों की प्रमुख मांग सरकारी समर्थन, ऊर्जा की कीमतों और हरित नीतियों में कटौती रही।

जर्मन सरकार को वापस लेनी पड़ीं नीतियां

जर्मनी में किसानों का गुस्सा इस कदर था कि सरकार को झुकना पड़ा। किसान आंदोलन को खत्म करने के लिए जर्मन सरकार ने अपनी कई नई पहलों को वापस ले लिया। इसमें ज्यादातर नीतियां ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन को कम करने को लेकर थीं। हालांकि, सरकार के बैकफुट पर जाने से सरकार को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के टारगेट को पूरा करने में नुकसान जरूर पहुंचा।

फ्रांस में भी झुकी सरकार

जर्मनी के अलावा फ्रांस में भी किसानों का गुस्सा सरकार को झेलना पड़ा। यहां किसान कीटनाशकों के उपयोग के साथ ईंधन सब्सिडी पर प्रतिबंध के फैसले को वापस करने की मांग कर रहे थे। किसानों का प्रदर्शन इतना उग्र रहा कि फ्रांसीसी सरकार ने अपने फैसले को वापस ले लिया। जैसे ही यूरोप के अन्य हिस्सों में किसानों का विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ, यूरोपीय आयोग भी अपनी नीतियों में संशोधन करना शुरू कर दिया।

भारत के किसानों में क्यों गुस्सा है?

अब बात भारत की करते हैं। किसानों का हालिया प्रदर्शन 2020-21 में कृषि कानूनों के खिलाफ हुए ऐतिहासिक आंदोलन से जुड़ा हुआ है। दरअसल, सरकार ने किसानों से कुछ वादे किए थे, जो अभी तक पूरे नहीं हुए हैं। इसलिए किसान एक बार फिर दिल्ली की ओर कूच कर गए हैं। इसमें सबसे प्रमुख मांग न्यूनतम समर्थन मूल्य पर स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करना है। दरससल, ये सिफारिशें किसानों को फसलों पर MSP की गारंटी देते हैं। इसके अलावा किसान लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा में मारे गए किसानों के परिजनों को सरकारी नौकरी और 10-10 लाख रुपये मुआवजे, किसान आंदोलन के समय दर्ज किए गए मुकदमे वापस लेने के साथ ही 60 साल से अधिक उम्र के किसानों के लिए 10,000 रुपये की पेंशन की भी मांग कर रहे हैं।

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प्रांजुल श्रीवास्तव author

मैं इस वक्त टाइम्स नाउ नवभारत से जुड़ा हुआ हूं। पत्रकारिता के 8 वर्षों के तजुर्बे में मुझे और मेरी भाषाई समझ को गढ़ने और तराशने में कई वरिष्ठ पत्रक...और देखें

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