जापानी बुखार पर जोरदार प्रहार, जानें कैसे बच्चों की मौत के आंकड़े हुए Zero

इंसेफ्लाइटिस एक समय गोरखपुर में काल का दूसरा नाम था। इससे संक्रमित होने वाले बच्चों में से बहुत से बच्चे असमय काल के गाल में समा जाते थे। लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में पिछले 7 वर्षों में जमकर काम हुआ और आज मृत्यु के मामले शून्य पर पहुंच गए हैं।

Japani Bukhar

गोरखपुर में इंसेफ्लाइटिस से मौत के मामले हुए शून्य

पूर्वी उत्तर प्रदेश, विशेषतौर पर गोरखपुर और आसपास के जिलों में एक समय एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम और जापानी बुखार (Japanese Encephalitis) बड़ी महामारी की तरह था। अभी कुछ साल पहले तक हर साल जुलाई-सितंबर महीनों में यहां बड़ी संख्या में बच्चे इस बीमारी के कारण जान गंवाते थे। हर साल वह मंजर नजर आता था, जिसमें माता-पिता और परिवारजन अपने बच्चों को बेहोशी की हालत में हाथों में उठाए बीआरडी मेडिकल कॉलेज पहुंचते थे। एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम और जापानी बुखार से पीड़ित बच्चों के इलाज के लिए बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज (BRD Medical College) ही एकमात्र उम्मीद की किरण होता था। लेकिन इस अस्पताल तक पहुंचने वाले बहुत से बच्चों की भी मौत हो जाती थी। पिछले कुछ वर्षों में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने इस ओर ध्यान दिया और आखिरकार साल 2023 पिछले कई दशकों में पहला साल बना, जब गोरखपुर जिले में एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम और जापानी बुखार से किसी बच्चे की मौत नहीं हुई।

45 साल में पहली बारगोरखपुर और आसपास के जिलों के बच्चों के लिए एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम और जापानी बुखार काल का दूसरा नाम थे। आखिरकार सरकार की कोशिशें रंग लाईं और साल 2023 में जुलाई-सितंबर, जिसे एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम और जापानी बुखार का सीजन माना जाता है, गोरखपुर जिले में किसी बच्चे की मौत नहीं हुई। गोरखपुर के लिए यह इसलिए भी खास है, क्योंकि यह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गृह जिला है। जन स्वास्थ्य को लेकर उनकी सरकार की कोशिशें आखिर परवान चढ़ी और पिछले साल मामले शून्य तक पहुंच गए।

CMO का क्या है कहनागोरखपुर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) आशुतोष कुमार दूबे ने इस सफलता का राज बताया। उन्होंने बताया, 'हमने इंफेक्शन के कारणों पर उसके स्रोत के स्तर पर ही हमला किया। एक बहुत ही अच्छे मैनेजर की तरह मुख्यमंत्री सभी विभागों को एक पेज पर लेकर और कहा कि अब आपको इस समस्या का समाधान करना है। बस फिर क्या था, सभी अधिकारियों ने उनके निर्देशों को माना।'

6 साल में शून्य तक का सफरएक समय था जब इंसेफ्लाइटिस गोरखपुर में बच्चों के लिए मौत का दूसरा नाम था। 6 साल की कड़ी मेहनत के बाद आखिरकार इस पर काबू पाया गया। साल 2017 में एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम के 764 मामले सामने आए, जिनमें से 111 की मौत हो गई थी। वहीं 2023 में सिर्फ 88 बच्चों को यह संक्रमण हुआ और सभी की बचा लिया गया। इसी तरह जापानी बुखार यानी (Japanese Encephalitis) के भी 52 मामले 2017 में सामने आए थे, जिनमें से 2 की मौत हुई थी, जबकि 2023 में कोई भी बच्चा जापानी बुखार से संक्रमित नहीं हुआ।

एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोमजापानी बुखार
सालमामलेमृत्युमामलेमृत्यु
2017764111522
201840038352
201922710355
202021411132
202122815120
2022853110
202388000
* आंकड़े गोरखपुर जिला स्वास्थ्य विभाग के हैं और 26 अक्टूबर 2023 तक अपडेटेड हैं।
इस तरह से गोरखपुर इंसेफ्लाइटिस के सबसे बुरे दौर से बाहर निकलने में सफल रहा। इस सफलता का श्रेय संयुक्त प्रयास को जाता है, जिसमें प्राथमिकता के स्तर पर काम, राजनीतिक इच्छा शक्ति, जल से जुड़ी स्वच्छता, स्वास्थ्य विभाग, ग्रामीण क्षेत्रों में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की स्थिति में सुधार, गोरखपुर अस्पताल में स्पेशलिस्ट डॉक्टर की नियुक्ति, 500 बेड की नई फेसिलिटी के साथ ही वायरस के खिलाफ उसके स्रोत पर हमने की रणनीति शामिल हैं।

ऐसी पहल से दूर होंगी बीमारियांमुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पिछले साल अक्टूबर में दिए एक बयान में कहा था कि जल्द ही उत्तर प्रदेश से जापानी बुखार और एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिंड्रोम का खात्मा हो जाएगा। यही नहीं राज्य सरकार डेंगू, मलेरिया, इंसेफ्लाइटिस, कालाजार और चिकनगुनिया जैसी संक्रामक बीमारियों पर नियंत्रण पाने के लिए साल 2017 से ही विशेष अभियान छेड़े हुए है। इस विशेष अभियान के अच्छे रिजल्ट भी सामने आए हैं। अभी मामले शून्य जरूर हो चुके हैं, लेकिन डॉक्टरों का मानना है कि इंसेफ्लाइटिस के खात्मे में अभी कुछ और समय लगेगा।

कैसे आया इतना बड़ा बदलावबड़े बदलाव के लिए हमेशा छोटा सा कदम जरूरी होता है। पिछले 6 वर्षों में बदलाव यह आया कि जिले के छोटे-छोटे सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में स्पेशल इंसेफ्लाइटिस ट्रीटमेंट सेंटर बनाए गए हैं। यहां साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखा जा रहा है। वेंटीलेटर, मॉनीटर, इंक्यूबेटर आदि की अच्छी व्यवस्था की गई है। अब बीमार बच्चों का उन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों पर ही इलाज हो जाता है, उन्हें गोरखपुर सिटी नहीं भेजना पड़ता। ऐसा इसलिए क्योंकि वहां एमबीबीएस डॉक्टरों और नर्सों को तैनात किया गया है। कुछ साल पहले तक यहां हालात डरावने थे। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों में न डॉक्टर होते थे न ही दवाएं और ऑक्सीजन सपोर्ट व अन्य जरूरी इक्विपमेंट।

एक हादसे ने बदल दी तस्वीरसाल 2017 में वो घटना हुई थी, जब BRD अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के कारण कई बच्चों की मौत हो गई थी। लेकिन उससे सीख लेकर अब काफी कुछ बदलाव हुआ है। पहले जहां सिर्फ 20 हजार लीटर ऑक्सीजन बैकअप रहता था, अब अस्पताल में 70 हजार लीटर बैकअप होता है। यही नहीं अस्पताल में बेड की संख्या भी बढ़कर अब करीब साढ़े चार सौ हो गई है। साल 2018 में योगी आदित्यनाथ सरकार ने संचारी रोग नियंत्रण और दस्तक कैंपेन चलाया, जिसमें हर विभाग के लिए अलग से दिशा-निर्देश थे। जैसे -

स्वच्छता विभागटॉयलेट ठीक से काम करें
जब विभागउथले पंपों को ठीक करें और पाइप से स्वच्छ पानी पहुंचाएं
पंचायती राज, ग्रामीण और शहरी विकास विभागकूड़े का निस्तारण, जंगली खास का कटान और फॉगिंग
आंगनवाड़ी सेंटरबच्चों को समय पर भोजन और राशन मिले, ताकि कुषोषण से लड़ा जा सके
शिक्षा विभागसूचना प्रकाशित करे
इस कैंपेन को बरसात से पहले, बारिश के महीनों में और बरसात के बाद साल में तीन बार चलाया जाता है।

घर-घर कैंपेनकोई भी मामला अनरिपोर्टेड न रह जाए, इसके लिए आशा और ANM कार्यकर्ता घर-घर जाते हैं। हाई-फीवर का कोई मामला इनकी नजरों से छूट नहीं सकता। फ्री एंबुलेंस सेवा 108 और 102 को हर जगह तैनात किया गया। यही नहीं, जिले में जहां कहीं भी जापानी बुखार या एक्यूट इंसेफ्लाइटिस सिड्रोम का कोई मामला सामने आता है, जिले की टीम उस इलाके का सर्वे करती है। इसमें देखा जाता है कि कहीं पानी रुका हुआ तो नहीं है और संक्रमण के अन्य मामलों की भो खोज होती है।

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Digpal Singh author

खबरों की दुनिया में लगभग 19 साल हो गए। साल 2005-2006 में माखनलाल चतुर्वेदी युनिवर्सिटी से PG डिप्लोमा करने के बाद मीडिया जगत में दस्तक दी। कई अखबार...और देखें

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