'भारतीय लोग पृथ्वी पर सबसे अधिक काम करने वाले लोग हैं...' वायरल पोस्‍ट पर क्‍यों छिड़ा महासंग्राम ?

Viral Post: वित्‍तीय सलाहकार और कंटेंट क्रिएटर ने इस पैटर्न को छोटी उम्र से ही शुरू होने वाली जीवित रहने की मानसिकता के लिए जिम्मेदार ठहराया। वे कहते हैं कि, 'इस सब का मूल कारण क्या है? खैर, यह छोटी उम्र से ही जीवित रहने की प्रवृत्ति विकसित करने के कारण है।'

भारतीयों के वर्कलोड पर की गई पोस्‍ट।

भारतीयों के वर्कलोड पर की गई पोस्‍ट।

Viral Post: भारत के प्रतिभावान लोग दुनिया के अलग-अलग हिस्‍सों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। ठीक इसी प्रकार भारत में भी यहां के स्‍थानीय लोग लगन से काम करते हैं। मगर, इन दिनों भारतीयों के काम करने की शैली पर सोशल मीडिया पर एक पोस्‍ट काफी वायरल हो रही है। इस पोस्‍ट में कंटेंट क्रिएटर अक्षत श्रीवास्तव ने यह कहकर ऑनलाइन बहस छेड़ दी है कि भारतीय धरती पर सबसे ज़्यादा काम करने वाले लोग हैं, ऐसा अपनी मर्जी से नहीं, बल्कि कम उम्र से ही सिस्टम के दबाव की वजह से होता है। एक्स का उदाहरण देते हुए उन्‍होंने कहा कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए बच्चे दिन में 10-12 घंटे पढ़ते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि मेहनत करने की यह क्षमता वयस्कता में भी बनी रहती है। उन्होंने लिखा, 'कई मेहनती भारतीय विदेश चले जाते हैं। जबकि उनके यूरोपीय सहकर्मियों के पास खाली समय होता है, भारतीय अपनी कंपनी की सेवा के लिए अपनी नींद, परिवार और स्वास्थ्य का त्याग करते हैं।'

वित्‍तीय सलाहकार और कंटेंट क्रिएटर ने इस पैटर्न को छोटी उम्र से ही शुरू होने वाली जीवित रहने की मानसिकता के लिए जिम्मेदार ठहराया। वे कहते हैं कि, 'इस सब का मूल कारण क्या है? खैर, यह छोटी उम्र से ही जीवित रहने की प्रवृत्ति विकसित करने के कारण है।' उन्होंने कहा, 'कई मेहनती बच्चों के पास मेहनत करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है।' उन्होंने लिखा कि, 'योग्यता अर्जित करें - बेहतर जीवन का निर्माण करें। यही उनका एकमात्र विकल्प है। वे चुपचाप काम करते हैं, घंटों काम करते हैं। ठीक तब से जब वे 12-13 साल के बच्चे होते हैं। क्यों? क्योंकि कड़ी मेहनत करना हकदारी की भीख मांगने से 100 गुना बेहतर है।'

इस पोस्‍ट पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। कई लोग जहां उनसे सहमत हैं, वहीं कुछ ने अपनी आलोचनात्मक राय भी दी है। एक यूजर ने सवाल किया, 'भारतीय अक्सर अथक परिश्रम के चक्र में फंस जाते हैं, वे अपने प्रयासों के लिए निवेश पर वास्तविक प्रतिफल पर सवाल उठाए बिना मध्य-वर्गीय स्थिरता की तलाश में रहते हैं। आईआईटी या एनआईटी के लिए कड़ी मेहनत से दरवाजे खुल सकते हैं, लेकिन कक्षा में शीर्ष स्थान पाने का दबाव इतनी जल्दी क्यों शुरू हो जाता है, जिससे किशोरों की युवावस्था छिन जाती है?' दूसरे ने कहा कि, 'भारतीय महत्वाकांक्षा के कारण मेहनत नहीं करते। वे मेहनत इसलिए करते हैं क्योंकि व्यवस्था ने उन्हें सिखाया है कि कोई सुरक्षा जाल नहीं है, केवल कष्ट सहना या गिरना है।' तीसरे यूजर ने टिप्पणी की, 'यह भागदौड़ वाली संस्कृति नहीं है, यह अस्तित्व बचाने की संस्कृति है। कई भारतीयों के लिए कड़ी मेहनत महत्वाकांक्षा नहीं है - यह एकमात्र रास्ता है।' एक अन्‍य यूजर ने कहा कि, 'भारत की कार्य नीति जुनून में नहीं, बल्कि जीवित रहने में निहित है। प्रतियोगी परीक्षाओं से लेकर कॉर्पोरेट क्यूबिकल्स तक, सिस्टम हमें सिखाता है कि कड़ी मेहनत ही गरीबी और सामान्यता से मुक्ति का एकमात्र रास्ता है। यह मानसिकता - हालांकि सराहनीय है - अक्सर प्रतिभा को नहीं, बल्कि थकान को पुरस्कृत करती है। बच्चे परीक्षाओं के लिए खेल का त्याग करते हैं, वयस्क लक्ष्य के लिए स्वास्थ्य का त्याग करते हैं।' एक और यूजर ने लिखा, 'कड़ी मेहनत समस्या नहीं है। समस्या मानसिकता है। भारतीयों को यह जानना चाहिए: कड़ी मेहनत सफलता की कुंजी नहीं है - बल्कि ताकत ही सफलता की कुंजी है।'

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शाश्वत गुप्ता author

पत्रकारिता जगत में पांच साल पूरे होने जा रहे हैं। वर्ष 2018-20 में जागरण इंस्‍टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड मास कम्‍युनिकेशन से Advance PG डिप्लोमा करने के...और देखें

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