केवल अंग्रेजी में पालन-पोषण की आलोचना करने वाली पोस्ट पर छिड़ी बहस, सामने आए ऐसे रिएक्‍शन

Viral News: गणेश शंकर की पोस्ट पर ढेरों प्रतिक्रियाएं आईं, विशेषकर उन अभिभावकों की ओर से जो शहरी भारतीय बच्चों में मातृभाषा के प्रयोग में कमी आने के बारे में चिंतित थे। एक यूजर ने लिखा, 'यह बहुत दुखद नए जमाने की घटना है! यहां भी वही दृश्य है।

बच्‍चों की पैरेंटिंग पर उठे सवाल।

बच्‍चों की पैरेंटिंग पर उठे सवाल।

Viral News: कर्नाटक के एक व्यक्ति की पोस्ट पर सोशल मीडिया यूजर्स के बीच बहस छिड़ गई है। इस पोस्‍ट में बताया गया है कि, कैसे शहरी बच्चे अपनी मूल भाषाओं से संपर्क खो रहे हैं। मैसूर के गणेश शंकर ने एक्स पर शेयर किया कि उनके पड़ोसी का बच्चा केवल अंग्रेजी में बात करता है- न तो कन्नड़ में और न ही तमिल में, जो उसकी मातृभाषा है। उन्‍होंने लिखा कि, 'ऐसा लगता है कि स्थिति के कारण। और उसका उच्चारण पहले से ही एक है।' कई लोगों ने इस बात पर सहमति जताई। वहीं, भाषा के नुकसान, सांस्कृतिक अलगाव और शहरी घरों में अंग्रेजी के लिए बढ़ती प्राथमिकता पर बढ़ती चिंताओं को उजागर किया गया।

गणेश शंकर की पोस्ट पर ढेरों प्रतिक्रियाएं आईं, विशेषकर उन अभिभावकों की ओर से जो शहरी भारतीय बच्चों में मातृभाषा के प्रयोग में कमी आने के बारे में चिंतित थे। एक यूजर ने लिखा, 'यह बहुत दुखद नए जमाने की घटना है! यहां भी वही दृश्य है। छोटे बच्चे हिंदी या अपनी मातृभाषा नहीं समझते। केवल अमेरिकी उच्चारण वाली अंग्रेजी समझते हैं।' दूसरे ने कहा कि, 'यह नई सामान्य बात होती जा रही है। आजकल बच्चे केवल अंग्रेजी बोलते हैं।' तीसरे यूजर ने कहा कि, 'जब मैंने बेंगलुरु में यह देखा तो मैं हैरान रह गया। मैं ऐसे कन्नड़ लोगों को जानता हूं जो अपने बच्चों से केवल अंग्रेजी में बात करते हैं। दुर्भाग्य से मेरे आस-पास रहने वाले ज्यादातर लोग अपने बच्चों से अंग्रेजी में बात करते हैं।' चौथे यूजर ने कहा कि, 'मुझे लगता है कि अगर बच्चे अपनी मातृभाषा नहीं सीखते, तो उनका अपनी जड़ों से जुड़ाव लगभग खत्म हो जाता है। ऊपर से नीचे तक कितना भी दबाव डाला जाए, बाद में इसमें कोई बदलाव नहीं आ सकता। मैं बच्चों को उनकी प्राकृतिक, सांस्कृतिक पहचान से वंचित करने के लिए माता-पिता को दोषी ठहराऊंगा।'

गौरतलब है कि, ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न के एक एक्स यूजर ने इससे उलट राय साझा की। उन्होंने लिखा, 'मुझे लगता है कि भारत में भी ऐसा ही है। मेरी बेटी और कुछ परिवार सक्रिय रूप से यह सुनिश्चित करते हैं कि वे कन्नड़ बोलें। इसके अलावा, यहां सरकार द्वारा वित्तपोषित एक कन्नड़ स्कूल भी है। वहां जो हो रहा है, वह पागलपन है।' एक यूजर ने सुझाव देते हुए लिखा कि, 'माता-पिता के रूप में हमें घर पर अपनी मातृभाषा बोलने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए। बच्चे अंग्रेजी बोलने लग सकते हैं, लेकिन उन्हें धीरे से वापस लाएं। यह मेरा निजी अनुभव है। यह किसी के परिवार पर बहुत ही आलोचनात्मक टिप्पणी है। मैं आपसे आग्रह करूंगा कि आप जीवन में पूर्वाग्रहों से बाहर निकलें और दूसरों में केवल नकारात्मक चीजों पर ध्यान देने के बजाय सकारात्मक चीजें देखना शुरू करें।'

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शाश्वत गुप्ता author

पत्रकारिता जगत में पांच साल पूरे होने जा रहे हैं। वर्ष 2018-20 में जागरण इंस्‍टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड मास कम्‍युनिकेशन से Advance PG डिप्लोमा करने के...और देखें

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