'हद है ! 25 मिनट का अतिरिक्त ब्रेक लेने पर डांट दिया !' कर्मचारी ने बॉस पर निकाली भड़ास, वायरल हुई पोस्‍ट

Viral News: रेडिट पर एक पोस्ट में कर्मचारी ने एक कार्यालय समूह चैट से चार स्क्रीनशॉट साझा किए, जहां मैनेजर को टॉयलेट जाने सहित अतिरिक्त ब्रेक लेने के लिए कर्मचारियों को फटकार लगाते देखा जा सकता है। स्क्रीनशॉट से पता चला कि प्रबंधक ने एक घंटे के ब्रेक की सख्त नीति लागू कर रखी थी।

कर्मचारी को एक्‍स्‍ट्रा ब्रेक लेना पड़ा महंगा।

कर्मचारी को एक्‍स्‍ट्रा ब्रेक लेना पड़ा महंगा।

Viral News: कॉरपोरेट जगत में काम करने वाले कर्मचारी अपनी नौकरी की समस्याओं, कार्यालय के अनुभवों और वर्कप्‍लेस की चिंताओं को रेडिट पर काफी शेयर करते हैं। कई लोग गुमनाम रूप से अपनी कहानियां शेयर करते हैं, सलाह लेते हैं और ऐसे अन्य लोगों से जुड़ते हैं जो समान चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। हाल ही में एक भारतीय कर्मचारी ने अपने प्रबंधक की कर्मचारी लीव के बारे में सख्त और अनुचित नीतियों के बारे में बताया है।

रेडिट पर एक पोस्ट में कर्मचारी ने एक कार्यालय समूह चैट से चार स्क्रीनशॉट साझा किए, जहां मैनेजर को टॉयलेट जाने सहित अतिरिक्त ब्रेक लेने के लिए कर्मचारियों को फटकार लगाते देखा जा सकता है। स्क्रीनशॉट से पता चला कि प्रबंधक ने एक घंटे के ब्रेक की सख्त नीति लागू कर रखी थी, जिसके तहत कर्मचारी द्वारा लिया गया प्रत्येक ब्रेक, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, प्रतिदिन ब्रेक के लिए आवंटित कुल 60 मिनट में से काट लिया जाता था। बॉस के एक मैसेज में लिखा था, 'जब आप लोग 10-15 मिनट का ब्रेक लेते हैं, तो आपको अगला ब्रेक [कुल मिलाकर] 60 मिनट का लेना चाहिए - (पिछले ब्रेक को छोड़कर)। एक दिन में कुल ब्रेक 60 मिनट से ज़्यादा नहीं होना चाहिए। उम्मीद है कि यह ठीक है।'

दूसरे मैसेज में, बॉस ने एक कर्मचारी को अपने दैनिक ब्रेक समय से 27 मिनट ज़्यादा समय लेने के लिए फटकार लगाई। कर्मचारी ने बताया कि वे हर एक ब्रेक के बारे में मैनेजर को सूचित करने में मेहनती थे, जिसमें टॉयलेट जाना भी शामिल था। कर्मचारी ने बताया कि ये लगातार, छोटे-छोटे ब्रेक जमा हो गए थे और उनके कुल ब्रेक समय को आवंटित 60 मिनट से ज़्यादा कर दिया था। जब कर्मचारी ने टॉयलेट जाने के लिए एक्‍स्‍ट्रा 10 मिनट का ब्रेक मांगा तो मैनेजर ने उसे भी मना कर दिया। मैनेजर का जवाब रूखा था और कहा कि, 'नहीं, आधिकारिक ब्रेक 60 मिनट का है। बस इतना ही। चलो उसी पर टिके रहते हैं। मैं इसे बदल नहीं सकता। अलविदा, आगे कोई मैसेज नहीं।'

इस पोस्ट ने वर्कप्‍लेस की नीतियों और कर्मचारी हितों के बारे में गरमागरम बहस छेड़ दी है। कई यूजर्स ने कर्मचारियों के प्रति आक्रोश और सहानुभूति व्यक्त की, मैनेजर की नीतियों को हास्यास्पद और अमानवीय कहा। कुछ लोगों ने सुझाव दिया है कि मैनेजर की हरकतें श्रम कानूनों या मानवाधिकारों का उल्लंघन कर सकती हैं। एक यूजर ने लिखा, 'ऐसा लगता है कि आप स्कूल में वापस आ गए हैं, जहां बाथरूम में जाने के लिए अनुमति लेनी पड़ती है। अब स्कूल भी बेहतर लगते हैं।' एक अन्‍य यूजर ने कहा कि, 'मैं कभी भी कंपनी के सख्त ब्रेक टाइम के प्रति जुनून को नहीं समझ पाऊंगा। वे इससे क्या हासिल करना चाहते हैं? अगर कोई व्यक्ति दिन का अपना काम 3/4 घंटे में पूरा कर लेता है, तो उसे अगले 6/5 घंटे क्या करना चाहिए? इसके अलावा, अपने कर्मचारियों को लेकर इतना असुरक्षित क्यों हैं कि उन्हें ज़ूम पर अपनी स्क्रीन साझा करनी पड़े।' तीसरे यूजर ने कहा कि, 'यह किस तरह का काम है? क्या आप लोगों को लगातार बैठकर किसी चीज़ की निगरानी करनी होती है/ग्राहक सहायता करनी होती है या आप अपने काम खुद करते हैं? यह इतना कठोर क्यों है?'

(डिस्‍क्‍लेमर: टाइम्‍स नाउ नवभारत का उद्देश्‍य किसी प्रोडक्‍ट/कंपनी/फर्म/व्‍यक्ति विशेष की छवि को ठेस पहुंचाना नहीं है। ये दावा जानकारी मात्र है अत: टाइम्‍स नाउ नवभारत ऐसे किसी वायरल दावे की पुष्टि नहीं करता है।)

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शाश्वत गुप्ता author

पत्रकारिता जगत में पांच साल पूरे होने जा रहे हैं। वर्ष 2018-20 में जागरण इंस्‍टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड मास कम्‍युनिकेशन से Advance PG डिप्लोमा करने के...और देखें

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