Ravana Shiva Tandav Stotram: रावण द्वारा रचित इस स्तोत्र का पाठ करने से क्या होता है, क्या है इसे पढ़ने का विधान, पढ़िए संपूर्ण शिव तांडव स्तोत्र के लिरिक्स

Ravana Shiva Tandav Stotram (रावण शिव तांडव स्तोत्र): लंकापति रावण को भगवान शिव का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। रावण ने भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए ऐसे दिव्य स्तोत्र की रचना की थी, जिसे सुनकर स्वयं भगवान शंकर भी प्रसन्न हो उठे थे। ऐसे में चलिए जानते हैं रावण द्वारा रचित शिव तांडव स्तोत्र के बारे में।

Shiva Tandav Stotra Katha, Mahatva, Vidhan aur Lyrics

रावण शिव तांडव स्तोत्र

Ravana Shiva Tandav Stotram (रावण शिव तांडव स्तोत्र): भगवान शिव को देवों का देव महादेव कहा जाता है। त्रिमूर्ति में भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बाद से भगवान शिव का विशेष स्थान है, जिन्हें देवता, असुर, मानव, भूत, यक्ष और पशु तक पूजते हैं। भगवान शिव के भक्तों की श्रृंखला में एक नाम लंकेश रावण का भी आता है। रावण ने अपने बाहुबल और असुरी शक्तियों से हमेशा ही अपने आराध्य को प्रसन्न किया था। लेकिन रावण की लालसा, मोह, अहंकार और अधर्मी व्यक्तित्व उसके विनाश का कारण बना। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के सातवें अवतार कहे जाने वाले प्रभु श्री राम ने रावण का और उसके आतंक का अंत किया था। भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रावण ने शिव तांडव स्तोत्र की रचना की थी। शिव तांडव स्तोत्र में मूलतः भगवान शिव के रौद्र रूप का वर्णन मिलता है। आज भी इस अद्भुत स्तोत्र का पाठ किया जाता है, जिससे पढ़ने से भगवान शिव का आशीर्वाद वरदान स्वरूप में मिलता है।

Shiv Tandav Stotram lyrics in Hindi (शिव तांडव स्तोत्र लिरिक्स हिंदी में)

सार्थशिवताण्डवस्तोत्रम् ॥ श्रीगणेशाय नमः ॥

जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले

गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम् ।

डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं

चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ॥१॥

जटाकटाहसम्भ्रमभ्रमन्निलिम्पनिर्झरी

विलोलवीचिवल्लरीविराजमानमूर्धनि ।

धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके

किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ॥२॥

धराधरेन्द्रनंदिनीविलासबन्धुबन्धुर

स्फुरद्दिगन्तसन्ततिप्रमोदमानमानसे ।

कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि

क्वचिद्दिगम्बरे(क्वचिच्चिदम्बरे) मनो विनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

जटाभुजङ्गपिङ्गलस्फुरत्फणामणिप्रभा

कदम्बकुङ्कुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे ।

मदान्धसिन्धुरस्फुरत्त्वगुत्तरीयमेदुरे

मनो विनोदमद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ॥४॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर

प्रसूनधूलिधोरणी विधूसराङ्घ्रिपीठभूः ।

भुजङ्गराजमालया निबद्धजाटजूटक

श्रियै चिराय जायतां चकोरबन्धुशेखरः ॥५॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनञ्जयस्फुलिङ्गभा

निपीतपञ्चसायकं नमन्निलिम्पनायकम् ।

सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं

महाकपालिसम्पदेशिरोजटालमस्तु नः ॥६॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वल

द्धनञ्जयाहुतीकृतप्रचण्डपञ्चसायके ।

धराधरेन्द्रनन्दिनीकुचाग्रचित्रपत्रक

प्रकल्पनैकशिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ॥७॥

नवीनमेघमण्डली निरुद्धदुर्धरस्फुरत्

कुहूनिशीथिनीतमः प्रबन्धबद्धकन्धरः ।

निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिन्धुरः

कलानिधानबन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा

वलम्बिकण्ठकन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम् ।

स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं

गजच्छिदांधकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे ॥९॥

अगर्व सर्वमङ्गलाकलाकदम्बमञ्जरी

रसप्रवाहमाधुरी विजृम्भणामधुव्रतम् ।

स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं

गजान्तकान्धकान्तकं तमन्तकान्तकं भजे ॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजङ्गमश्वस

द्विनिर्गमत्क्रमस्फुरत्करालभालहव्यवाट् ।

धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल

ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ॥११॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्

गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः ।

तृणारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः

समं प्रव्रितिक: कदा सदाशिवं भजाम्यहम ॥१२॥

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन्

विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् ।

विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः

शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-

निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः ।

तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं

परिश्रय परं पदं तदङ्गजत्विषां चयः ॥१४॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी

महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना ।

विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः

शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥

इमं हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं

पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् ।

हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं

विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ॥१६॥

पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं

यः शम्भुपूजनपरं पठति प्रदोषे ।

तस्य स्थिरां रथगजेन्द्रतुरङ्गयुक्तां

लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥

इति श्रीरावण कृतम्

शिव ताण्डव स्तोत्रम्स म्पूर्णम्

Ravana Shiva Tandav Stotram Story (रावण शिव तांडव स्तोत्र की कथा)

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार रावण ने भगवान शिव को कैलाश पर्वत सहित उठा कर लाने का निर्णय किया। जब वो कैलाश पर्वत की ओर बढ़ा तो नंदी ने उसे रोक दिया और कैलाश पर्वत की सीमा को पार करने के लिए मना कर कहा कि भगवान महादेव तपस्या कर रहे हैं और मैं उनकी तपस्या में बाधा नहीं आने दूंगा। नंदी के द्वारा मना किए जाने के बाद रावण क्रोधित हो उठा और कैलाश पर्वत की सीमा पार करके उसे उठाने लगा। तभी भगवान शिव ने अपने पैर के अंगूठे से पर्वत को दबा दिया और रावण का हाथ उस पर्वत के नीचे दब गया। इसके पश्चात रावण ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए जो स्तुति गाई, उसे ही शिव तांडव स्तोत्र कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि जिस स्थान पर रावण का हाथ दबा था उसे आज राक्षस ताल कहा जाता है। भगवान शिव रावण के इस स्तोत्र को सुनकर अत्यंत ही प्रसन्न हुए थे।

Shiv Tandav Strotam ko padhne ka vidhan (शिव तांडव स्तोत्र को पढ़ने का विधान)

शिव तांडव स्तोत्र को पढ़ने का विधान कुछ इस प्रकार से है -

  • सुबह ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।
  • पूजा स्‍थल को साफ करें और भगवान शिव को प्रणाम करें।
  • धूप, दीप, गंगाजल, और नैवेद्य अर्पित कर पूजा करें।
  • शिव तांडव स्तोत्र को ऊंचे स्वर में गाएं।
  • स्तोत्र का पाठ करते समय मन में किसी के प्रति दुर्भावना नहीं लाएं।
  • पाठ पूरा होने के बाद भगवान शिव का ध्यान करें।
  • शिव तांडव स्तोत्र को लयबद्ध तरीके से ही गाएं।
  • नियमित रूप से मंदिर या घर में भगवान शिव के सामने इसका पाठ करें।

Shiv Tandav Stotram Importance (शिव तांडव स्तोत्र का महत्व)

शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और मनुष्य की सभी प्रकार की मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। शिव तांडव स्तोत्र का पाठ करने से कुंडली के शनि दोष और पितृ दोष से भी मुक्ति म‍िलती है। इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति में आत्म-विश्वास, साहस और ज्ञान का प्रसार बढ़ता है साथ ही जीवन में सुख, समृद्धि और शांति बनी रहती है।

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मेधा चावला author

हरियाणा की राजनीतिक राजधानी रोहतक की रहने वाली हूं। कई फील्ड्स में करियर की प्लानिंग करते-करते शब्दों की लय इतनी पसंद आई कि फिर पत्रकारिता से जुड़ गई।...और देखें

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