जब राज्यसभा में सज गई शेरो-शायरी की महफिल, सांसदों ने अपने शायराना अंदाज से कर दिया कायल

नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आसन की अनुमति से बोलते हुए सत्ता पक्ष की ओर से उनको बार-बार टोके जाने की शिकायत की और एक शेर पढ़कर माहौल बदल दिया।

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Rajya Sabha: राज्यसभा में मणिपुर मुद्दे को लेकर मानसून सत्र की शुरुआत से ही जारी गतिरोध और हंगामे के बीच गुरुवार को सुखद माहौल देखने को मिला। सदन में सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्यों की ओर से एक के बाद एक शेर सुनाये गए और ऐसा लगने लगा, मानो उच्च सदन शेर ओ सुखन की महफिल में बदल गया हो। कुल मिलाकर सदन का माहौल पूरी तरह शेरो-शायरी की महफिल में बदल गया। आप भी जरा इनकी बानगी देखिए।

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मल्लिकार्जुन खरगे ने की शुरुआत

उच्च सदन में एक बार के स्थगन के बाद जब दोपहर दो बजे कार्यवाही फिर शुरू हुई तो नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आसन की अनुमति से बोलते हुए सत्ता पक्ष की ओर से उनको बार बार टोके जाने की शिकायत की और यह शेर पढ़ा।

‘मक्तल (वधशाला) में आते हैं वे लोग खंजर बदल बदल के

या रब मैं लाऊं कहां से सर बदल बदल के’

बाद में इसके जवाब में भाजपा की सीमा द्विवेदी ने एक शेर पढ़ा-

‘वो कत्ल भी करते हैं तो रहते हैं गुमनाम

और हम आह भी भरते हैं तो करते हैं बदनाम’

कुछ देर बाद इस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए भाजपा के ही सुधांशु त्रिवेदी ने भी एक शेर पढ़ा-

‘सच जरा सा घटे या बढ़े तो सच सच ना रहे

मगर झूठ की तो कोई इंतिहा नहीं

लाख चेहरे बदल कर आ जाते हैं ये

मगर आईना कमबख्त झूठ बोलता नहीं’

इस पर सभापति ने त्रिवेदी को दुरुस्त करते हुए कहा-

‘चाहे सोने में जड़ दो, चाहे चांदी में जड़ दो,

आईना कभी झूठ बोलता नहीं’

इसके बाद कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने प्रसिद्ध शायर गालिब का नाम लेते हुए कहा कि उनसे किसी ने पूछा कि समस्या का समाधान क्यों नहीं हो रहा? इस पर गालिब ने कहा-

‘उम्र भर इस भूल में जीते रहे गालिब

धूल चेहरे पर थी और हम आईना पोंछते रहे’

इस पर खरगे ने सत्ता पक्ष की बात का जवाब देते हुए कहा- ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्ष को मिट्टी में दबाने की जितनी भी कोशिश कर लें, हम बार बार उगते रहेंगे क्योंकि हम बीज हैं।’

इसके जवाब में भाजपा सदस्य त्रिवेदी ने हिंदी के प्रख्यात कवि अज्ञेय की पंक्तियों को पढ़ा-

‘मैं उगता हूं, मैं बढ़ता हूं

मैं नभ की चोटी चढ़ता हूं

कुचला जाऊं यदि धूलि सा

आंधी सा पुन: उमड़ता हूं’’

कविता का सिलसिला यही समाप्त नहीं हुआ। इसके बाद कांग्रेस के शक्ति सिंह गोहिल ने पंक्तियां पढ़ी-

‘बहुत आसान है नशा पिलाकर किसी को गिराना

अरे मजा तो तब है जब गिरे हुए को संभालो

काश, मेरे मुल्क में ऐसी फ़िज़ा चले

कि मंदिर जले तो रंज मुसलमान को हो

और मस्जिद की आबरू पामाल ना हो

उसकी चिंता मंदिर के निगेहबां करें’

सदन में जब इन शेर और काव्य पंक्तियों को सुनाया जा रहा था तो सत्ता पक्ष और विपक्ष के सभी सदस्यों ने मुस्कुराते हुए और मेजें थपथपाकर इनकी सराहना की। (भाषा)

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अमित कुमार मंडल author

करीब 18 वर्षों से पत्रकारिता के पेशे से जुड़ा हुआ हूं। इस दौरान प्रिंट, टेलीविजन और डिजिटल का अनुभव हासिल किया। कई मीडिया संस्थानों में मिले अनुभव ने ...और देखें

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