कांग्रेस अध्यक्ष के नामांकन के लिए अब केवल 2 दिन, प्लान बी आएगा काम !

अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए अगर अशोक गहलोत के अलावा दिग्विजय सिंह, के.सी.वेणुगोपाल जैसे गांधी परिवार करीबी नेताओं को मैदान में उतारा जाता है, तो उसका संदेश भी साफ है। इसके अलावा शशि थरूर भी नामांकन के लिए तैयार हैं। ऐसे में अगले 2 दिन आलाकमान के लिए बेहद अहम होने वाले हैं।

मुख्य बातें
  • दिग्विजय सिंह गांधी परिवार के करीबी नेताओं में से एक हैं।
  • अशोक गहलोत प्रकरण से गांधी परिवार की साख को धक्का लगा है।
  • शशि थरूर की उम्मीदवारी करीब-करीब तय है।
Congress President Election: कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव से पहले जिस तरह राजस्थान प्रकरण की वजह से गांधी परिवार के लिए मुश्किलें खड़ी हुई हैं। उसके बाद जो समीकरण बनते दिख रहे हैं, उसे देखते हुए लगता है कि अब पार्टी प्लान बी पर काम कर रही है। गांधी परिवार के बेहद करीबी दिग्विजय सिंह के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने की चर्चा है। इसके अलावा अभी आलाकमान ने अशोक गहलोत को लेकर भी कोई स्थिति साफ नहीं की है। खबरों के अनुसार अशोक गहलोत जल्द ही सोनिया गांधी से मुलाकात कर सकते हैं। सवाल यही है कि जब नामांकन के लिए केवल दो दिन (30 सितंबर को है नमांकन का आखिरी दिन) बचे हैं। कांग्रेस अध्यक्ष पद का ड्रामा पार्टी को फायदा पहुंचाएगा या नुकसान।
शशि थरूर के बाद अब दिग्विजय भी लड़ेंगे चुनाव !
राजस्थान में हुए सियासी ड्रामे के बाद, अब आलाकमान मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह (Digvijya Singh) को अध्यक्ष पद की रेस में उतारने की तैयारी कर रहा है। सूत्रों के अनुसार दिग्विजय सिंह आज रात दिल्ली लौटेंगे और 30 सितंबर को अपना नामांकन दाखिल करेंगे। पार्टी सूत्रों का कहना है कि अगर अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) रेस से बाहर होते हैं, तो दिग्विजय सिंह गांधी परिवार के करीबी नेताओं में से एक हैं। और इस परिस्थिति में शशि थरूर (Shashi Tharoor) के मुकाबले दिग्वजिय सिंह को मैदान में उतारा जा सकते हैं। उनके पास न केवल प्रशासनिक स्तर पर लंबा-चौड़ा अनुभव है, बल्कि संगठन स्तर पर भी उनके पास अच्छा-खासा अनुभव है।
अशोक गहलोत चुनाव लड़ेंगे !
जिस तरह राजस्थान (Rajasthan) अशोक गहलोत के पक्ष में 92 विधायकों ने आलाकमान के हुक्म की परवाह नहीं की। उसके बावजूद गहलोत को कारण बताओ नोटिस न जारी करना, कांग्रेस के प्लान बी का हिस्सा लगता है। क्योंकि अगर पार्टी पहले ही अशोक गहलोत को रेस से बाहर कर देती है, तो संदेश गलत जा सकता है। ऐसे में उन्हें चुनाव लड़ाया जा सकता है। और चुनाव में अगर गहलोत के अलावा दिग्विजय सिंह, के.सी.वेणुगोपाल जैसे गांधी परिवार करीबी नेताओं को मैदान में उतारा जाता है, तो उसका संदेश भी साफ है। ऐसे में सोनिया गांधी के साथ अशोक गहलोत की 28 सितंबर को रात की मुलाकात कई सियासी संदेश दे सकती हैं।
गहलोत के सत्ता प्रेम और आलाकमान के रैवये से बिगड़ा खेल
गांधी परिवार के पिछले चार दशक से करीबी रहे अशोक गहलोत ने ऐन वक्त झटका देकर, गांधी परिवार और टीम की सारी प्लानिंग को धता बता दिया है। आलाकमान भारत जोड़ो यात्रा और करीब 24 साल बाद अध्यक्ष पद का चुनाव कराने से जनता के बीच नया संदेश देना चाहता था। लेकिन गहलोत का सत्ता प्रेम इन सब पर भारी पड़ गया है। इसके अलावा जिस तरह राजस्थान की जमीनी हकीकत समझे बिना, सचिन पायलट को राजस्थान की सत्ता सौंपने की हड़बड़ी आलाकमान द्वारा दिखाई गई, उससे कांग्रेस की प्लानिंग पर पानी फिर गया।
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