जस्टिस बीआर गवई: जानिए कैसा रहा भारत के 52वें चीफ जस्टिस का सफर, इस मायने में सबसे अलग
जस्टिस बीआर गवई ने आज देश के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ले ली।उनका कार्यकाल 23 नवंबर तक रहेगा। पूर्व सीजेआई संजीव खन्ना ने जस्टिस गवई को अगला सीजेआई नियुक्त करने की सिफारिश की थी।

जस्टिस बीआर गवई
Justice BR Gavai: जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई (Justice BR Gavai) नेआज भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ले ली। इसके साथ ही वह देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर आसीन होने वाले बौद्ध व्यक्ति बन गए हैं। उनका कार्यकाल 23 नवंबर तक रहेगा। पूर्व सीजेआई संजीव खन्ना ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठतम न्यायाधीश जस्टिस गवई को अगला सीजेआई नियुक्त करने की सिफारिश की थी। जस्टिस संजीव खन्ना 13 मई को सेवानिवृत्त हो चुके हैं।
अमरावती शहर में जन्मे
24 नवंबर, 1960 को अमरावती शहर के फ्रीजरपुरा इलाके में जन्मे न्यायमूर्ति गवई तीन भाई-बहनों में सबसे बड़े हैं। उनके पिता दिवंगत आरएस गवई, अंबेडकरवादी राजनीति में एक कद्दावर व्यक्ति थे और खुद कानून की पढ़ाई करने का सपना देखा करते थे। उनके पिता आरएस गवई ने सुनिश्चित किया कि उनके बच्चों का पालन-पोषण अनुशासन के साथ हो। उनकी पत्नी कमलताई, जो एक पूर्व स्कूल शिक्षिका हैं, उन्होंने युवा भूषण को कड़ी मेहनत का मूल्य सिखाने पर ध्यान केंद्रित किया।
बीआर गवई ने अपने बचपन के अधिकतर समय में नगरपालिका मराठी-माध्यम विद्यालय में पढ़ाई की, अक्सर ऐसी कक्षाओं में बैठे जहां बुनियादी ढांचे का अभाव था। आर्थिक कठिनाइयों से लड़कर उन्होंने आगे का सफर तय किया। उनके लिए एक और प्रेरणा डॉ बीआर अंबेडकर थे, जिनकी विरासत का उन्होंने न केवल शब्दों में बल्कि व्यवहार में भी सम्मान किया।
शुरुआत में राजनीति की ओर आकर्षित हुए
हालांकि, कानून उनका पहला पेशा नहीं था। अपने शुरुआती वर्षों में बीआर गवई राजनीति की ओर आकर्षित हुए और यहां तक कि चुनाव लड़ने के बारे में भी सोचा, लेकिन 1990 के दशक में एक अहम मोड़ ने उन्हें दोबार सोचने पर मजबूर कर दिया। अमरावती विश्वविद्यालय से वाणिज्य और बाद में कानून में डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने 1985 में वकालत शुरू की। कई वर्षों तक उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ में अतिरिक्त सरकारी वकील और सरकारी वकील के रूप में काम किया।
संवेदना भरे कई अहम फैसले दिए
उन्होंने सरकारी वकील का पद केवल इस शर्त पर स्वीकार किया कि वे अपनी टीम चुनेंगे - जिनमें से दो, भारती डांगरे और अनिल एस किलोर थे। नागपुर, औरंगाबाद, पणजी और मुंबई की पीठों में दो दशकों से अधिक समय तक अपने न्यायिक करियर में न्यायमूर्ति गवई ने ऐसे मामलों की अध्यक्षता की जो न्याय के प्रति उनकी गहरी चिंता को दर्शाते हैं। दो दशकों तक अपने कानूनी रूप से स्वामित्व वाले घर पर कब्जा पाने के लिए संघर्ष करती रही महिला का मामला इसका उदाहरण है। उनके आदेशों ने आखिरकार उसे अपने सिर पर छत हासिल करने में मदद की। एक अन्य मामले में जिसमें एक पति ने मां को उसके नवजात बच्चे से अलग कर दिया था, न्यायमूर्ति गवई के हस्तक्षेप से बच्चे को वापस लाया गया।
अहम संविधान पीठ का हिस्सा रहे
2023 में वे संविधान पीठ का हिस्सा थे जिसने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का फैसला सुनाया और 2024 में वह उस पीठ का भी हिस्सा थे जिसने चुनावी बॉन्ड योजना को खारिज कर दिया था। जस्टिस गवई कहते हैं, मैं अदालत कक्ष से बाहर निकलते ही सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश नहीं रह जाता। मैं खुद को एक आम नागरिक मानता हूं। इससे पता चलता है कि वह अदालत से बाहर एक सामान्य नागरिक की तरह व्यवहार करते हैं।
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