आजादी के बाद से ही PAK को सैन्य सहयोग देता आया है US, लोकतंत्र की जगह सेना के हुक्मरानों को दी ताकत
पाकिस्तान का जो आज सैन्य ढांचा है, उसकी नींव अमेरिका ने ही रखी। 1954 में पाकिस्तान और अमेरिका के बीच जो रक्षा करार हुआ था, उसके तहत अमेरिका ने ब्रिगेडियर जनरल हैरी एफ मेयर्स की अगुवाई में एक सर्वे टीम पाकिस्तान भेजा। इस टीम को इस बात का आकलन करना था कि अमेरिकी हितों के लिहाज से पाकिस्तान के पास कितनी सैन्य क्षमता होनी चाहिए।

सैन्य रूप से आज भी पाकिस्तान की मदद करता है अमेरिका।
US Military Aid To Pakistan : 1947 में पाकिस्तान जब आजाद हुआ तो उसके कुछ साल बाद से ही वह अमेरिका के करीब जाने लगा। पाकिस्तान-अमेरिका के मेल-मिलाप की यह कहानी 1950 के दशक से ही शुरू हो गई थी। इस रिश्ते की एक मजबूत नींव तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति ड्वाइट डेविड आइजनहावर ने 1954 में रखी। दरअसल, अमेरिकी विदेश और रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने आइजनहावर को बताया कि मध्य पूर्व यानी मिडिल इस्ट में अमेरिकी हितों को सुरक्षित रखने और अमेरिकी दबदबा बनाए रखने में पाकिस्तान एक अहम देश साबित हो सकता है। पाकिस्तान के जरिए वह इस इलाके को नियंत्रित भी कर सकता है। इसलिए पाकिस्तान को सैन्य रूप से ताकतवर बनाने की जरूरत है। फिर दोनों मंत्रालयों की सलाह पर 1954 में दो समझौते हुए। पहला था 'द म्यूचुअल डिफेंस असिस्टेंस अग्रीमेंट' और दूसरा 'एड मेमोआयर'।
1954 में हुए दो अहम करार
इन दोनों करारों के बाद पाकिस्तान को, अमेरिका से सैन्य और आर्थिक मदद मिलने का दरवाजा खुल गया। यहीं से अमेरिकी उन्नत हथियारों का पाकिस्तान पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया। यही नहीं इसी दशक के 1954 में पाकिस्तान सीटो यानी साउथ-इस्ट एशिया ट्रीटी ऑर्गनाइजेशन (सीटो) का और 1955 में बगदाद पैक्ट (सेंटो) का सदस्य बना। इन दोनों संगठनों का सदस्य बनने के बाद पाकिस्तान की, अमेरिकी के साथ नजदीकी और बढ़ी और पांच मार्च 1959 को दोनों देशों के बीच हुए सहयोग करार ने इस रिश्ते को और मजबूती दे दी।
असली ताकत सेना के हवाले करता रहा US
अमेरिका अपने वैश्विक हितों के लिए पाकिस्तान के लोकतंत्र को नहीं बल्कि उसकी सेना को मजबूत बनाने में लगा रहा। दुनिया को लोकतंत्र और मानवता की नसीहत देना वाला यह देश पाकिस्तान के लोकतंत्र को लगातार नजरंदाज और असली ताकत सेना के हवाले करता रहा। इसका नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तान में लोकतंत्र शुरुआत में ही लड़खड़ा गया। उसके पैर कभी जम नहीं पाए। अमेरिका चाहता तो पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़ें मजबूत कर सकता था लेकिन दरअसल, उसका मकसद शुरुआत से ही पाकिस्तान को एक मजबूत लोकतांत्रिक देश नहीं बल्कि सैन्य रूप से एक वफादार मुल्क बनाना था जो उसके इशारे पर उठे और बैठे। अपने इस इरादे में वह सफल भी हुआ। उसने अपने डॉलर और सैन्य मदद के दम पर पाकिस्तान में मिलिट्री की अगुवाई में सैन्य अफसरों और नौकरशाहों का एक एलीट तंत्र और ढांचा तैयार किया, और पाकिस्तान की सरकार में यह तंत्र ही हमेशा हावी रहा।
ब्रिगेडियर जनरल मेयर्स की अगुवाई में सर्वे टीम पाक आई
पाकिस्तान का जो आज सैन्य ढांचा है, उसकी नींव अमेरिका ने ही रखी। 1954 में पाकिस्तान और अमेरिका के बीच जो रक्षा करार हुआ था, उसके तहत अमेरिका ने ब्रिगेडियर जनरल हैरी एफ मेयर्स की अगुवाई में एक सर्वे टीम पाकिस्तान भेजा। इस टीम को इस बात का आकलन करना था कि अमेरिकी हितों के लिहाज से पाकिस्तान के पास कितनी सैन्य क्षमता होनी चाहिए। यानी इसका उद्देश्य मिडिल इस्ट की चुनौतियों और खतरों को देखते हुए पाकिस्तान में सैन्य नेटवर्क एवं क्षमता का विस्तार करना था। इस टीम ने सर्वे करने के बाद अपनी सिफारिशें भेजीं। सर्वे टीम ने कहा कि पाकिस्तान में सेना की चार डिवीजन और डेढ़ आर्मर्ड डिवीजन होनी चाहिए। इसके अलावा विध्वंसक और माइन स्वीपर्स सहित 12 युद्धपोत होने चाहिए। तीन बॉम्बर फाइटर, एक इंटरसेप्टर डे फाइटर, एक लाइट बॉम्बर, एक परिवहन विमान सहित लड़ाकू जहाजों की छह स्क्वॉड्रन होने की सिफारिश की गई। यानी पाकिस्तानी सेना, नौसेना और वायु सेना के लिए इस सर्वे टीम ने एक पुख्ता और विस्तृत रिपोर्ट भेजी।
1954 में पाक को US से मिली हथियारों की पहली खेप
इस रिपोर्ट या सर्वे के आधार पर नवंबर 1954 में अमेरिका ने हथियारों और उपकरणों की पहली बड़ी खेप पाकिस्तान को भेजी। इसके बाद तो हथियारों की आपूर्ति का सिलसिला ही शुरू हो गया। कहने का मतलब यह है कि दक्षिण एशिया में अमेरिका को एक लॉयल यानी एक वफादार देश की जरूरत थी, जो उसे पाकिस्तान के रूप में मिला। पाकिस्तानी हुक्मरानों की भी किस्मत खुल गई। बिना कुछ करे-धरे उनकी सेना मजबूत होने लगी। स्पेशल एड, आर्थिक पैकेज के रूप में डॉलर बरसने लगे। इनके दोनों हाथों में लड्डू और सिर कड़ाही में आ गए। रिपोर्टों में कई स्रोतों के हवाले से दावा किया गया है कि 1955 से लेकर 1960 तक म्यूचुअल असिस्टेंस प्रोग्राम जिसे M A P यानी मैप कहा जाता है, इसके तहत सैन्य मदद के रूप में पाकिस्तान को अमेरिका से भारी भरकम राशि मिलती रही।
पाकिस्तान को मिले सैकड़ों मिलियन डॉलर
नेशनल सेक्युरिटी काउंसिल की रिपोर्ट जो बाद में सार्वजनिक हुई, वह बताती है कि 1955 से लेकर 1960 तक अमेरिका ने MAP के तहत 400 से 475 मिलियन डॉलर की सैन्य मदद पाकिस्तान को भेजी। यही नहीं ड्रैपर कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि 1955 से 1959 के बीच पाकिस्तान को सैन्य मदद के रूप में अमेरिका से 447.4 मिलियन डॉलर मिले। रिपोर्ट यह भी बताती है कि 1950 से 58 के बीच पाकिस्तान ने म्यूचुअल सेक्युरिटी मिलिट्री सेल्स प्रोग्राम के तहत 427.4 मिलियन डॉलर देकर अमेरिका से सैन्य हथियार खरीदे। पाकिस्तान को सैन्य मदद के नाम पर मिली राशि की पुष्टि अमेरिकी सरकार के दस्तावेज भी करते हैं। इन दस्तावेजों के मुताबिक 1950 से 1958 के बीच दक्षिण एशिया के अपने इस सहयोगी देश को अमेरिका ने 352 मिलियन डॉलर की भारी-भरकम राशि दी।
पाक को दिए F-86 F, T-33 फाइटर प्लेन
1952 से लेकर 1958 के बीच पाकिस्तान की सैन्य क्षमता का विस्तार और उसे एक पेशेवर सेना बनाने में अमेरिका की भूमिका बहुत अहम रही। इस दौरान अमेरिका ने पाकिस्तान को 120, एफ-86 एफ और 16, टी-33 फाइटर प्लेन दिए। तरह-तरह के युद्धपोत, विध्वंसक, टैंक, गोला बारूद, सैन्य एवं संचार उपकरणों की झड़ी लगा दी। पाकिस्तान के लिए उसने दो आर्मी कैंप, तीन सैन्य एयरफील्ड, नौसेना के लिए रेलवे और गोला-बारूद रखने के लिए डिपो का निर्माण किया। पाकिस्तानी सैन्य कर्मियों को टेक्निकल प्रशिक्षण देने के लिए अलग से प्रोग्राम भी चलाया। इस अमेरिकी मेहरबानी का नतीजा यह हुआ कि पाकिस्तानी सेना बुरी तरह से अमेरिका पर निर्भर हो गई। सेना, वायु सेना और नौसेना में अमेरिकी हथियारों के फुटप्रिंट्स खुलकर उभर आए। किसी भी एक देश पर इस कदर की सैन्य निर्भरता के अपने लाभ और जोखिम दोनों होते हैं।
इतने हथियारों का रखरखाव, उनका देखभाल भी करना होता है। टेक्निकल स्टॉफ को समय-समय पर प्रशिक्षण की जरूरत होती है। यह जिम्मेदारी भी अमेरिका उठाता रहा। पाकिस्तान के सैकड़ों अफसर, पायलटों और सैन्य कर्मियों को अपने यहां बुलाकर उन्हें ट्रेन करता रहा और इसका खर्च भी खुद उठाया। साल 1960 तक अमेरिकी सैन्य मदद से पाकिस्तान दक्षिण एशिया का एक मजबूत खिलाड़ी बन चुका था। अमेरिकी कृपा की वजह से उसके पास भारत से बेहतर हथियार हो गए थे। इसी दौरान 1962 में भारत-चीन युद्ध में भारत की हुई हार के बाद वह कसमसाने और भीतर ही भीतर भारत पर हमले की वह योजना बनाने लगा। भारत के साथ चीन के तनाव को देखते हुए अमेरिका के साथ-साथ वह बीजिंग से भी अपना रिश्ते मजबूत करने लगा। चीन और पाकिस्तान की यह 'यारी' अब कहां तक पहुंच गई है, इसे बताने की जरूरत नहीं है।
1961 में पाक को दिए F-104 स्ट्रेटफाइटर्स
बहरहाल, साल 1961 में अमेरिका ने अपने फाइटर प्लेन एफ-104 स्ट्रेटफाइटर्स की पहली खेप पाकिस्तान को भेजी। यह फाइटर प्लेन उस समय का सबसे आधुनिक और उन्नत लड़ाकू जहाजों में शामिल था। इन अमेरिकी फाइटर प्लेन का इस्तेमाल पाकिस्तान ने 1965 की लड़ाई में भारत के खिलाफ किया। आगे अमेरिका और पाकिस्तान के बीच सैन्य सहयोग और मजबूत होता रहा। यह सैन्य रिश्ता 1980 के दशक में और ऊंचाई पर पहुंच गया। इसी वक्त सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर धावा बोल दिया। अफगानिस्तान से सोवियत संघ को भगाने के लिए अमेरिका ने पाकिस्तान का सहारा लिया। अमेरिका के कहने पर पाकिस्तानी फौज ने सोवियत संघ की सेना से लड़ने के लिए अफगान मुजाहिदीनों को प्रशिक्षित किया। ये मुजाहिदीन लड़े और सोवियत संघ को अफगानिस्तान से निकलना पड़ा। इसके बदले में रीगन प्रशासन ने पाकिस्तान के लिए अच्छी-खासी सैन्य मदद जारी की। साथ ही अमेरिका ने पाकिस्तान को अपना मल्टीरोल फाइटर प्लेन एफ-16 बेचने का फैसला किया। पाकिस्तान को एफ-16 की पहले खेप 1983 में मिल गई।
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2001 के बाद पेट्रोल एयरक्राफ्ट, सर्विलांस रडार भेजे
यूएस डिपार्टमेंट ऑफ डिफेंस एंड स्टेट की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2001 के बाद से अमेरिका ने पाकिस्तान को 8 मैरीटाइम पेट्रोल एयरक्राफ्ट पी-3सी ओरियोन, 5750 मिलिट्री रेडियो सेट, 2007 एंटी-ऑर्मर मिसाइल TOW, छह AN/TPS-77 सर्विलांस रडार, छह सी-130 E हरक्युलिस परिवन विमान, पेरी क्लास मिसाइल फ्रिगेट यूएसएस मैक्लेनेर्नी, 20 AH-1F कोबरा अटैक हेलिकॉप्टर और 15 स्कैन इगल यूएवी दिए। यही नहीं, कोलिशन सपोर्ट फंड के तहत अमेरिका से पाकिस्तान को 26 बेल 412 EP यूटिलिटी हेलिकॉप्टर मिले। तो अंडर सेक्शन-1206 के तहत अमेरिका ने पाक को चार एमआई-17 मल्टीरोल हेलिकॉप्टर, 4 किंग एयर 350 सर्विलांस एयरक्राफ्ट, फ्रंटियर कोर के लिए 450 वाहन, 20 बुफैलो एक्सप्लोसिव डिटेक्शन एंड डिस्पोजल वेहिकल, नाइट विजन डिवाइस, रेडियो, बॉडी ऑर्मर, हेलमेट्स, फर्स्ट एड किट्स सहित युद्ध में इस्तेमाल होने वाले अन्य सैन्य उपकरण और तकनीक मुहैया कराए।
हेलिकॉप्टर इंजन, एवियोनिक्स के लिए 952 मिलियन डॉलर
यही नहीं, इंटरनेशनल मिलिट्री एजुकेशन एंड ट्रेनिंग और अन्य कार्यक्रमों के जरिए अमेरिका ने पाकिस्तानी सेना को फंड देने के साथ-साथ 2000 से ज्यादा पाकिस्तानी सैन्य अफसरों को प्रशिक्षण दिया है। अप्रैल 2015 में अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने फॉरेन मिलिट्री सप्लाई यानी एफएमएस के तहत 952 मिलियन डॉलर की मंजूरी दी। इस रकम की मंजूरी इसलिए दी गई ताकि पाकिस्तान अमेरिका से हेलिकॉप्टर इंजन, एवियोनिक्स सहित 15 AH-1Z वाइपर अटैक हेलिकॉप्टर और 1000 हेलफायर मिसाइलें खरीद सके। जाहिर है कि पाकिस्तान के सैन्य इतिहास में अमेरिका एक अहम किरदार रहा है। विगत दशकों में उसने सैन्य रूप से पाकिस्तान की भरपूर मदद की है। हालांकि, भारत के साथ रणनीतिक भागीदारी बढ़ने के बाद यह मदद कम जरूर हुई है लेकिन यह पूरी तरह से बंद नहीं हुई है।
F-16 अपग्रेडेशन के लिए ट्रंप ने मंजूर किए 397 मिलियन डॉलर
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने फरवरी के अंत में एफ-16 लड़ाकू विमानों को अपग्रेड करने के लिए 397 मिलियन डॉलर की राशि मंजूर की। भारत से करीबी के बाजवूद अमेरिका, पाकिस्तान को मदद पहुंचाने का रास्ता खुला रखा है, कभी क्लाइमेंट चेंज, कभी एजुकेशन, कभी स्वास्थ्य, कभी साफ पानी के नाम पर तो कभी आईएमएफ के जरिए वह इस देश की मदद कर देता है। 'ऑपरेशन सिंदूर' में भारत से बुरी तरह पिटने के बाद पाकिस्तान अगर भागकर अमेरिका के पास पहुंचा तो उसकी एक बड़ी वजह वाशिंगटन के साथ उसका ऐतिहासिक सैन्य रिश्ता और उसके प्रति उसकी वफादारी है। उसे पता है कि भारत की मार से उसे अमेरिका ही बचा सकता है, कोई और नहीं।
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