मामा-मौसी की बेटी से शादी कितनी जायज? उत्तराखंड यूनिफॉर्म सिविल कोड को चुनौती; हाईकोर्ट ने दिया झटका

Uttarakhand Uniform Civil Code: केंद्र सरकार और उत्तराखंड सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा की याचिकाकर्ता यह दिखाएं की संविधान में ये कहां दिया गया है कि मौसी या मामा की बेटी से शादी करना एक संवैधानिक अधिकार है? मेहता दलील देते हुए आगे कहा कि किसी भी सभ्य समाज में इस तरह के निकट संबंधों में विवाह की इजाजत नहीं होती है।

देहरादून हाईकोर्ट

यूनिफॉर्म सिविल कोड

Uttarakhand Uniform Civil Code: उत्तराखंड के यूनिफॉर्म सिविल कोड को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। देहरादून के रहने वाले अलमसुद्दीन सिद्दीकी और हरिद्वार के रहने वाले इकराम ने नैनीताल हाईकोर्ट में याचिका डाली है। उत्तराखंड सरकार को बड़ी राहत देते हुए हाईकोर्ट ने इस कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया है। वही इन याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए उत्तराखंड सरकार से 6 हफ्ते में जवाब मांगा है।

कोर्ट ने ईश्वर की दिलाई याद

केंद्र सरकार और उत्तराखंड सरकार की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा की याचिकाकर्ता यह दिखाएं की संविधान में ये कहां दिया गया है कि मौसी या मामा की बेटी से शादी करना एक संवैधानिक अधिकार है? मेहता दलील देते हुए आगे कहा कि किसी भी सभ्य समाज में इस तरह के निकट संबंधों में विवाह की इजाजत नहीं होती है। तुषार मेहता ने नैनीताल हाई कोर्ट का ध्यान ईश्वर भी दिलाया यूनिफॉर्म सिविल कोड की अनुसूची एक और दो में प्रतिबंध संबंधों की एक सूची दी गई है। इस सूची के मुताबिक कोई व्यक्ति अपनी मां, सौतेली मां, बेटी, बेटे की विधवा बहु और अन्य निकट संबंधों में शादी नहीं कर सकता है। मेहता ने कहा कि इस तरह के निकट संबंधों में होने वाली शादी को कानून के जरिए रोका जाना चाहिए।

यूनिफॉर्म सिविल कोर्ट में भेदभाव की दलीलों से इनकार करते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि कानून में सिर्फ अनुसूचित जनजाति के लोगों को छूट दी गई है। भारत के संविधान का अनुच्छेद 366 अनुसूचित जनजाति के लोगों को एक अलग वर्ग मानता है। ऐसे में अनुसूचित जनजाति के लोगों को छूट देना किसी तरह का भेदभाव नहीं है।

वहीं लिव इन रिलेशनशिप को लेकर उत्तराखंड सरकार की तरफ से दलील दी गई कि बिना कमिटमेंट के स्थापित होने वाले संबंधों में अक्सर पुरुष अपनी महिला साथी को बेसहारा छोड़ देते हैं और इस संबंध से पैदा होने वाले बच्चों का कोई भविष्य नहीं होता है। यूसीसी में इन तरह के संबंधों को लेकर स्पष्टता देते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि कानून इस तरह के संबंधों का विरोध नहीं करता है बल्कि इनको कानूनी मान्यता देता है। यूसीसी लागू होने के बाद इस तरह के रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों को कानूनी अधिकार मिलेंगे और जरूरत पड़ने पर महिला अदालतों का रुख कर सकेगी।

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गौरव श्रीवास्तव author

टीवी न्यूज रिपोर्टिंग में 10 साल पत्रकारिता का अनुभव है। फिलहाल सुप्रीम कोर्ट से लेकर कानूनी दांव पेंच से जुड़ी हर खबर आपको इस जगह मिलेगी। साथ ही चुना...और देखें

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