OMG: '13 लाख रुपये प्रति वर्ष...' बच्चे के पालन-पोषण के खर्च से तंग आ गया ये शख्‍स, वायरल हो रही पोस्‍ट

Ajab Gajab: लिंक्‍डइन यूजर ने कहा कि, 'यदि कोई माता-पिता अपनी आय का लगभग 30% अपने बच्चे पर खर्च करता है, तो शुद्ध वेतन प्रति वर्ष लगभग 43-44 लाख रुपये होना चाहिए। और जब आप करों को शामिल करते हैं, तो यह आंकड़ा और भी बढ़ जाता है।'

पालन-पोषण के खर्च से शख्‍स हुआ परेशान।

पालन-पोषण के खर्च से शख्‍स हुआ परेशान।

Ajab Gajab: मुंबई के एक व्यक्ति ने लिंक्डइन पर एक ऐसी पोस्ट की है जिसे वायरल होने में क्षण भर भी समय नहीं लगा। इस पोस्ट में बताया गया है कि, शहरी भारत में बच्चों की परवरिश काफी महंगी हो गई है। अपनी पोस्ट में, अंकुर झावेरी ने अपने चचेरे भाई (जो एक अंतरराष्ट्रीय स्कूल में पढ़ाते हैं) से बातचीत के बाद एक महानगरीय शहर में एक बच्चे की परवरिश की लागत में आने वाले खर्च का आकलन किया। उन्होंने अपनी पोस्ट में लिखा, 'मुझे भारत में बच्चों की परवरिश की वास्तविक लागत का एहसास तब तक नहीं हुआ, जब तक कि मैं पिछले हफ़्ते अपने चचेरे भाई से नहीं मिला।'

अंकुर लिखते हैं कि, एक प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय स्कूल में सिर्फ़ ट्यूशन फीस से ही अभिभावकों को सालाना 7 से 9 लाख रुपये तक का नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह तो बस शुरुआत है। उन्होंने कहा, 'इसमें यूनिफॉर्म, किताबें, निजी ट्यूशन और अन्य सामान की लागत भी जोड़ दें - सालाना 2 से 4 लाख रुपये और जिससे कुल शिक्षा-संबंधी खर्च लगभग 12 लाख रुपये सालाना हो जाता है। इसमें कुछ अतिरिक्त कोचिंग/पाठ्येतर गतिविधियां, कपड़े, जन्मदिन की पार्टियां, अवकाश व्यय आदि को भी जोड़ लें, तो यह 8000-10,000 रुपये प्रति माह (सालाना 1 लाख रुपये) होगा।' कुल मिलाकर उन्होंने सालाना खर्च लगभग 13 लाख रुपये प्रति बच्‍चे का आकलन किया।

लिंक्‍डइन यूजर ने कहा कि, 'यदि कोई माता-पिता अपनी आय का लगभग 30% अपने बच्चे पर खर्च करता है, तो शुद्ध वेतन प्रति वर्ष लगभग 43-44 लाख रुपये होना चाहिए। और जब आप करों को शामिल करते हैं, तो यह आंकड़ा और भी बढ़ जाता है। उन्होंने लिखा, 'लेकिन रुकिए... पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त... मजेदार हिस्सा अभी बाकी है - आयकर! मान लीजिए कि आप अपने वेतन का 20% कर के रूप में देते हैं... तो अपने बच्चों के लिए इस जीवनशैली को वहन करने के लिए आपका सकल वेतन लगभग 55 लाख रुपये होना चाहिए। यह यहीं खत्म नहीं होता। उन्होंने बताया, 'यह तब होता है जब आपके पास एक बच्चा होता है। एक और बच्चा होने पर ये संख्याएं काफी बढ़ जाती हैं। मैं हमेशा आश्चर्य करता था कि आजकल लोग बच्चे क्यों नहीं चाहते। अब मुझे पता चला कि क्यों...?'

अंकुर झावेरी ने अभिभावकों से भी सुझाव मांगे: 'आपमें से जिनके बच्चे हैं, कृपया मुझे बताएं कि मैं और क्या भूल रहा हूं।' कुछ माता-पिता अंकुर से सहमत थे, जबकि अन्य ने तर्क दिया कि इस तरह के खर्च केवल उन लोगों पर लागू होते हैं जो मेट्रो शहरों में उच्च गुणवत्ता की शिक्षा प्राप्त करना चाहते हैं। एक यूजर ने लिखा, 'यह वर्तमान लागत है। किसी भी पेशेवर डिग्री या कोर्स की भविष्य की लागत के बारे में क्या, खासकर अगर विदेश में जाने की योजना है?' दूसरे ने लिखा कि, 'मुझे लगता है कि वास्तविक समस्या जिसे पहले हल करने की आवश्यकता है वह शिक्षा की उच्च लागत नहीं है..... यह FOMO है।' इस पर एक यूजर ने असहमति जताते हुए कहा कि, 'मैं इन स्कूलों को ब्रांडेड स्कूल कहूंगा। मेरे स्कूल की फीस सालाना 15 हजार रुपये से कम थी, मेरा मानना है कि यह अभी तक एक लाख रुपये तक नहीं पहुंची है। इसलिए ब्रांडेड स्कूल के बजाय अच्छे स्कूल का चयन करना अधिक महत्वपूर्ण है।' एक अन्‍य ने कहा कि, 'मैं स्कूलों को सूचीबद्ध कर रहा हूं... और आपको एक लाख से 1.5 रुपये प्रति वर्ष के भीतर अच्छे स्कूल मिल जाएंगे।'

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शाश्वत गुप्ता author

पत्रकारिता जगत में पांच साल पूरे होने जा रहे हैं। वर्ष 2018-20 में जागरण इंस्‍टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट एंड मास कम्‍युनिकेशन से Advance PG डिप्लोमा करने के...और देखें

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