Ekdant Sankashti Chaturthi 2025: एकदन्त संकष्टी चतुर्थी के दिन पढ़ें ये व्रत कथा, पूरी होगी हर मनोकामना
Ekdant Sankashti Chaturthi 2025: संकष्टी चतुर्थी, भगवान गणेश को समर्पित एक अत्यंत शुभ व्रत है, जिसे हर माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा की जाती है। आज यानी 16 मई को एकदन्त संकष्टी चतुर्थी है। यहां आप जानेंगे इसकी पौराणिक व्रत कथा।

Ekdant Sankashti Chaturthi
Ekdant Sankashti Chaturthi Vrat Katha 2025: "एकदंत संकष्टी चतुर्थी" भगवान गणेश के "एकदंत" स्वरूप को समर्पित होती है। धार्मिक मान्यताओं अनुसार भगवान गणेश के इस स्वरूप की पूजा करने से भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। इस व्रत का हिंदू धर्म में खास महत्व माना गया है। ये व्रत हर साल ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि तो पड़ता है। कई महिलाएं यह व्रत अपनी संतान की दीर्घायु और सुखी जीवन के लिए रखती हैं, जबकि कुछ दंपत्ति इसे संतान प्राप्ति की इच्छा से भी करते हैं। यहां आप जानेंगे एकदंत संकष्टी चतुर्थी की व्रत कथा।
एकदन्त संकष्टी चतुर्थी 2025: जानें तिथि, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और चंद्रोदय समय
Ekdant Sankashti Chaturthi Vrat Katha 2025 (एकदंत संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा)
एक बार की बात है—भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी का विवाह तय हुआ। देवलोक में खुशी की लहर दौड़ गई। चारों ओर शादी की तैयारियां ज़ोरों पर थीं। सारे देवताओं को निमंत्रण भेजा गया, लेकिन भगवान गणेश को बुलाना भूल गए। शादी का दिन आया। बारात निकलने को तैयार थी। सभी देवता सज-धज कर बारात में शामिल होने आ गए। लेकिन जब उन्होंने चारों तरफ नज़र दौड़ाई, तो गणेश जी कहीं दिखाई नहीं दिए। यह बात सबको अजीब लगी। किसी ने सोचा—क्या उन्हें बुलाया ही नहीं गया? या वो खुद नहीं आए?
फिर जब भगवान विष्णु से पूछा गया तो उन्होंने कहा, "मैंने शिवजी को निमंत्रण भेजा था। गणेश जी उनके पुत्र हैं, अगर वे साथ आना चाहते तो आ जाते। अलग से बुलाने की ज़रूरत नहीं समझी।"
इसी बीच किसी ने सुझाव दिया कि यदि गणेशजी आ भी जाते हैं, तो उन्हें घर की रखवाली का काम दे दिया जाए। कहा गया – "वो तो चूहे पर सवारी करते हैं, बहुत धीरे-धीरे चलते हैं, बारात में पीछे रह जाएंगे। बेहतर होगा कि उन्हें दरवाजे पर पहरेदारी के लिए बैठा दिया जाए।" यह सुझाव सबको ठीक लगा और भगवान विष्णु ने भी बिना ज्यादा सोच-विचार किए इसकी सहमति दे दी। उसी समय गणेशजी वहां आ पहुंचे। उन्हें विनम्रता से समझाकर घर की देखरेख के लिए द्वार पर बैठा दिया गया। सभी देवता बारात लेकर आगे बढ़ गए। उधर नारद मुनि का ध्यान गया कि गणेशजी तो दरवाजे पर अकेले बैठे हैं। वे तुरंत उनके पास गए और पूछा, "आप बारात में क्यों नहीं गए?" गणेशजी ने नाराजगी जताते हुए कहा, "मुझे जानबूझकर दरवाजे पर बैठा दिया गया है। यह मेरे लिए अपमान की बात है। भगवान विष्णु ने मुझे आमंत्रित ही नहीं किया और अब घर का पहरेदार बना दिया है।"
नारद जी ने मुस्कराते हुए कहा, "तो फिर आप अपनी चूहों की सेना को भेज दीजिए। वे रास्ता खोद देंगे, जिससे बारात के रथ और वाहन जमीन में फंस जाएंगे।" गणेश जी ने नारदजी की बात मानते हुए तुरंत अपनी चूहों की सेना को आदेश दे दिया। जब विष्णु जी की बारात आगे बढ़ी, तो रथ के पहिए ज़मीन में धंस गए। जितनी कोशिश की गई, उतनी ही समस्या बढ़ती गई। रथ हिलने का नाम ही नहीं ले रहा था। अब सभी देवता घबरा गए। तब नारदजी ने कहा, "ये सब गणेश जी को न बुलाने का फल है। यदि उन्हें मनाकर लाया जाए तो सब ठीक हो सकता है।"
भगवान शिव ने अपने वाहन नंदी को भेजा, और सभी देवताओं ने मिलकर गणेश जी की विधिवत पूजा की। तब जाकर पहिए ज़मीन से निकले, लेकिन वे टूट चुके थे। अब पास के एक बढ़ई को बुलाया गया। उसने काम शुरू करने से पहले "श्री गणेशाय नमः" कहा और मन ही मन गणेश जी को नमन किया। उसके बाद जैसे चमत्कार हुआ—उसने टूटे हुए पहियों को पूरी तरह ठीक कर दिया।
बढ़ई ने देवताओं से कहा: "आपने सबसे पहले गणेश जी की पूजा नहीं की, इसीलिए आपके साथ यह विघ्न आया। हम जैसे साधारण लोग भी सबसे पहले गणेश जी को स्मरण करते हैं। आप देवता होकर कैसे भूल गए?" सभी देवताओं ने फिर से गणेश जी से क्षमा मांगी, और तभी बारात आगे बढ़ सकी। अंत में भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का विवाह शांतिपूर्वक संपन्न हुआ।
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धरती का स्वर्ग कहे जाने वाले जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हूं। 10 साल से मीडिया में काम कर रही हूं। पत्रकारिता में करि...और देखें

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