जब प्रधानमंत्री नेहरू पर बुरी तरह भड़क गए फिराक गोरखपुरी, कह डाला था ये मशहूर शेर, फिल्मों में भी हुआ इस्तेमाल

फिराक के बारे में मशहूर था कि से ज़्यादा मुंहफट कोई दूसरा शायर ना हुआ। उनकी खासियत ये थी कि आंखे गड़ाकर जब वो कोई बात बोलते थे तो सामने वालों की आंखें ख़ुद ब ख़ुद झुक जाती थीं। वह यारों के यार तो थे ही लेकिन यारी में भी अपनी नाराजगी को जाहिर करने से नहीं चूका करते थे। फिराक से जुड़ा ऐसा ही एक किस्सा है जो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से जुड़ा है

Firaq Gorakhpuri (1)

जब प्रधानमंत्री नेहरू पर बुरी तरह भड़क गए फिराक गोरखपुरी, कह डाला था ये मशहूर शेर, फिल्मों में भी हुआ इस्तेमाल

Firaq Gorakhpuri: नाम रघुपति सहाय। जन्म 28 अगस्त 1896। स्थान - उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिला। ये परिचय है कलम के उस जादूगर का जिसे अदब की दुनिया फिराक गोरखपुरी के नाम से जानती है। फिराक गोरखपुरी वह नाम है जिसने उर्दू शायरी की फिज़ा में नई रोशनी भरी, नई सोच दी और एक पूरा दौर अपने अंदाज़ से संवार दिया। फिराक की शायरी में प्रेम, सौंदर्य और भारतीय संस्कृति की गहरी छाप दिखती थी। उन्होंने उर्दू को नई लफ़्ज़ों की दौलत दी और शायरी को ऐसे ख़्यालात दिए जो आज भी सोचने पर मजबूर करते हैं। वे अपनी शायरी में हिंदुस्तानियत को कूट-कूट कर भरते थे। उनकी गजलों में प्रेम की गहराई और दर्द की संवेदना साफ झलकती है। फिराक की ज़बान आम और रोज़मर्रा की बोली से जुड़ी हुई थी नर्म, मीठी और असरदार। इसकी एक बानगी इस मशहूर शेर के जरिए समझिए:

शाम भी थी धुआं धुआं, हुस्न भी था उदास उदास,

दिल को कई कहानियां याद सी आ के रह गईं।

एक और शेर है:

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं,

तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं।

हिंदी-उर्दू शायरी की मांग के सिंदूर थे फिराक

फ़िराक़ ने उर्दू शायरी को रूमानी ख़्वाबों से निकालकर ज़िंदगी के अपने तजुर्बों से जोड़ा। उन्होंने इश्क़ को सिर्फ़ जज़्बात नहीं, बल्कि सोच, समझ और दर्शन का हिस्सा बनाया। उनकी लिखावट में जिस्म और रूह का मेल है, मिलन सिर्फ़ जिस्मों का नहीं, बल्कि दो सोचों का है। वो कहते थे कि उर्दू अदब ने अभी तक औरत की असली तस्वीर पेश नहीं की। जब तक उर्दू शकुन्तला, सीता और सावित्री जैसे किरदार पैदा नहीं करेगी, तब तक वो हिंदुस्तान की तहज़ीब की अगुवा नहीं बन सकती।

फिराक के बारे में मशहूर था कि से ज़्यादा मुंहफट कोई दूसरा शायर ना हुआ। उनकी खासियत ये थी कि आंखे गड़ाकर जब वो कोई बात बोलते थे तो सामने वालों की आंखें ख़ुद ब ख़ुद झुक जाती थीं। वह यारों के यार तो थे ही लेकिन यारी में भी अपनी नाराजगी को जाहिर करने से नहीं चूका करते थे। फिराक से जुड़ा ऐसा ही एक किस्सा है जो तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से जुड़ा है। इस किस्से पर आएं उससे पहले फिराक का ये मशहूर शेर पढ़िये:

तुम मुख़ातिब भी हो, क़रीब भी हो

तुमको देखें कि तुम से बात करें

शाहरुख खान पर फिल्माया फिराक का वह शेर

इस शेर को खूब पढ़ा गया और ना जाने कितनी ही बार नए शब्दों के साथ इसे नए रूप में गढ़ा गया। यश चोपड़ा के निर्देशन में बनी एक फिल्म थी डर। फिल्म में एक गाना था जो शाहरुख खान और जूही चावला पर फिल्माया गया था। गाने के बोल थे-

तू मेरे सामने, मैं तेरे सामने

तुझको देखूं कि प्यार करूं..

गीतकार आनंद बख्शी ने फिराक के उसी शेर का तराना बनाया और शिव हरी ने अपने संगीत से संवार सीधे लोगों के दिल तक पहुंचा दिया। फिराक के इस शेर पर पूरा गाना बनाने में भले महीनों लगे हों लेकिन जब ये शेर बना था तब सेकेंड भी ना लगे थे। इस शेर के बनने की कहानी पंडित नेहरू और फिराक गोरखपुरी के एक मुलाकात और इंतजार के किस्से से जुड़ी है।

जब पीएम बन नेहरू ने भेजा फिराक को न्योता

दरअसल हुआ ये कि प्रधानमंत्री बनने के बाद पंडित नेहरू साल 1948 में इलाहाबाद आए थे। फिराक भी उन दिनों इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर थे। फिराक और नेहरू देश की आजादी से पहले से ही एक दूसरे के करीब थे। तो नेहरू जब प्रधानमंत्री बनने के बाद इलाहाबाद आए तो उन्होंने फिराक गोरखपुरी को मिलने के लिए बुलाया। फिराक मिलने आनंद भवन पहुंच गए। वहां पहुंचे तो रिसेप्शन पर ही एक महिला ने उन्हें रोक लिया और बोला कि आप अपना नाम एक पर्ची पर लिखकर दे दीजिए मैं अंदर भेज दूंगी। जब अंदर से बुलाया जाएगा तभी आप जाइएगा। फिराक इसपर थोड़े खफा हुए। दरअसल इससे पहले भी वह कई पंडित नेहरू से मिलने आनंद भवन पहुंचे थे लेकिन इतनी रोकटोक कभी नहीं झेली थी।

'नेहरू को बता देना मेरा पता'

फ़िराक़ ने पर्ची पर लिखा रघुपति सहाय। रिसेप्शनिस्ट ने दूसरी स्लिप पर आर सहाए लिख कर उसे अंदर भिजवा दिया। पंद्रह मिनट इंतज़ार करने के बाद फ़िराक़ के सब्र का बांध टूट गया और वो रिसेप्शनिस्ट पर चिल्लाए। मैं यहां जवाहर लाल के निमंत्रण पर आया हूं। आज तक मुझे इस घर में जाने से नहीं रोका गया है। बहरहाल जब नेहरू को फुरसत मिले तो उन्हें बता दीजिएगा कि मैं 8/4 बैंक रोड पर रहता हूं। उन दिनों फिराक का इलाहाबाद में यही पता हुआ करता था।

अपनी झल्लाहट बयां कर जैसे ही फिराक उठने लगे पंडित नेहरू ने उनकी आवाज़ पहचान ली। वो बाहर आए और बोले- रघुपति तुम यहां क्यों खड़े हो? अंदर क्यों नहीं आ गए? फ़िराक़ ने कहा- घंटों पहले मेरे नाम की स्लिप आपके पास भेजी गई थी। नेहरू ने कहा- पिछले तीस सालों से मैं तुम्हें रघुपति के नाम से जानता हूं। आर सहाय से मैं कैसे समझता कि ये तुम हो?

नेहरू से नाराजगी में निकला शेर

फिलहाल फिराक नेहरू के साथ कमरे के अंदर आए। अपने दोस्त जवाहर लाल का स्नेह देख फिराक खुश तो हुए लेकिन काफी देर तक वह शांत ही रहे। नेहरू ने पुराने दिनों की बात कर माहौल को हल्का करने की कोशिश की लेकिन फिराक को पुराने रंग में नहीं ला पाए। परेशान होकर पंडित नेहरू ने पूछ लिया- तुम अभी भी नाराज़ हो। फिराक पहले तो चुप रहे फिर थोड़ा मुस्कुराए और फिर एक शेर के जरिए जवाब दिया:

तुम मुख़ातिब भी हो, क़रीब भी हो

तुमको देखें कि तुम से बात करें..

तो इस तरह से नेहरू से मित्रवत नाराजगी में फिराक गोरखपुरी ने अपना ये मशहूर शेर रच डाला था। नेहरू और फिराक की इस मुलाकात और इस शेर के गढ़े जाने का किस्सा फिराक के भांजे अजयमान सिंह द्वारा उन पर लिखी किताब 'फ़िराक़ गोरखपुरी-ए पोएट ऑफ़ पेन एंड एक्सटेसी' में दर्ज है।

नेहरू और फिराक का याराना

फिराक गोरखपुरी और पंडित नेहरू भले मिजाज में एक दूसरे से बहुत अलग थे लेकिन दोनों में काफी घनिष्ठता थी। कई बार तो सार्वजनिक मंचों पर भी फिराक और नेहरू के बीच की बॉन्डिंग साफ नजर आई। एक बार तो किसी शेर में गलत उर्दू पढ़ने के लिए फिराक गोरखपुरी ने मंच पर ही पीएम नेहरू को लगभग डांट लगा दी थी। फिराक की वह बात भी खूब दूर तक गई थी जब उन्होंने कहा था कि भारत में सिर्फ ढाई लोगों को अंग्रेजी आती है, जिनमें एक वो खुद, दूसरे डॉ. राजेंद्र प्रसाद और जवाहरलाल नेहरू को आधी अंग्रेजी आती है। उनके इस बयान में भी नेहरू के प्रति उनका अपनापन नजर आता है।

बता दें कि फिराक गोरखपुरी उर्फ रघुपति सहाय को 1969 में ज्ञानपीठ पुरस्कार और 1960 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। 3 मार्च 1982 को वह इस दुनिया को अलविदा कह गए थे। फिराक के जीवन से जुड़े और भी कई रोचक किस्से हैं। हम आपको उन किस्सों से रूबरू करवाते रहेंगे।

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Suneet Singh author

मैं टाइम्स नाऊ नवभारत के साथ बतौर डिप्टी न्यूज़ एडिटर जुड़ा हूं। मूल रूप से उत्तर प्रदेश में बलिया के रहने वाला हूं और साहित्य, संगीत और फिल्मों में म...और देखें

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