नए CDS का विपिन रावत से अजब कनेक्शन,जानें नियुक्ति-रेजीमेंट-जिले का क्या है नाता
चाहे जनरल बिपिन रावत को थल सेनाध्यक्ष बनाने की बात हो या फिर अनिल चौहान को सीडीएस बनाने की बात, दोनों की नियुक्ति चौंकाने वाली रही है। रावत जहां जूनियर होते हुए भी थल सेनाध्यक्ष बनाए गए थे। वहीं अनिल चौहान एक साल पहले ही सेना से रिटायर हो गए थे।
सीडीएस अनिल चौहान और जनरल बिपिन रावत
- जरनल बिपिन रावत को सीनियर अधिकारियों की वरिष्ठता को नजरअंदाज कर थल सेनाध्यक्ष बनाया गया था।
- जनरल बिपिन रावत और सीडीएस अनिल चौहान पौड़ी गढ़वाल जिले के रहने वाले हैं।
- नए सीडीएस के सामने अंतरिक्ष और डिजिटल युद्ध के लिए सेना को तैयार करने की चुनौती है।
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दोनों की नियुक्ति चौंकाने वाली
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चाहे जनरल बिपिन रावत को थल सेनाध्यक्ष बनाने की बात हो या फिर अनिल चौहान को सीडीएस बनाने की बात, दोनों की नियुक्ति चौंकाने वाली रही है। जब 31 दिसंबर, 2016 को जब जनरल बिपिन रावत को थल सेना की कमान सौंपी गई तो कइयों को आश्चर्य हुआ था। असल में जरनल रावत को थल सेना प्रमुख बनाना कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं थी। उन्हें दो सीनियर अधिकारियों की वरिष्ठता को नजरअंदाज कर थल सेनाध्यक्ष बनाया गया था।
ऐसा फैसला करने के पीछे की वजह , उनका लंबा सैन्य अनुभव था। उनके पास चीन, पाकिस्तान और पूर्वोत्तर भारत के फ्रंट पर काम करने का अच्छा खासा अनुभव था। जनरल रावत की पूर्वोत्तर भारत में उग्रवाद को काबू करने और म्यांमार में उग्रवादियों के कैंपों को खत्म करने में भी अहम भूमिका रही है। इसके अलावा जम्मू और कश्मीर में लाइन ऑफ कंट्रोल पर भी वह बेहद अनुभवी थे।
इसी तरह अनिल चौहान की नियुक्ति सरप्राइज देने वाली रही है। क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी रिटायर्ड सेना अधिकारी को, शीर्ष पद की जिम्मेदारी दी गई है। और इसकी भूमिका जून में ही लिख ली गई थी। जब भारत सरकार ने सीडीएस के चयन के लिए नियमों में बदलाव किया था, तो उस वक्त ही यह अंदाजा हो गया था, कि उसकी किसी खास सेना अधिकारी पर है। सीडीएस नियुक्त होने से पहले अनिल चौहान साल 2021 में सेना से रिटायर हो गए थे। और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजित डोभाल और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद सचिवालय के सैन्य सलाहकार के तौर पर काम कर रहे थे। इसके पहले वह ईस्टर्न आर्मी के कमांडर और सैन्य अभियानों के महानिदेशक रह चुके थे। ऐसे में उनके पास भी चीन की चुनौती से निपटने का अच्छा खासा अनुभव था।
दोनों का 11 वीं गोरखा राइफल से नाता
पूर्व सीडीएस जनरल बिपिन रावत ने 11वीं गोरखा राइफल की पांचवीं बटालियन से 1978 में अपने करियर की शुरुआत की थी। और यही से आगे बढ़ते हुए वह थल सेनाध्यक्ष बने और उसके बाद देश के पहले सीडीएस रहे। बिपिन रावत की तरह मौजूदा सीडीएस अनिल चौहान का भी 11वीं गोरखा राइफल से नाता रहा है। लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान को 1981 में भारतीय सेना की 11 गोरखा राइफल्स में कमीशन प्रदान किया गया था।
इसके बाद जब जनरल बिपिन रावत सेनाध्यक्ष बने तो वह, साल 2019 में गोरखा राइफल्स रेजीमेंटल सेंटर के हीरक जयंती समारोह में लखनऊ आए थे और यहीं पर उन्होंने तत्कालीन पूर्वी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान को कर्नल आफ द रेजीमेंट की कमान सौंपी थी। यानी दोनों सेना अधिकारियों ने अपने सैन्य गुण 11वीं गोरखा राइफल में ही सीखे।
एक ही जिले के रहने वाले
एक तरफ सेना में जहां दोनों सीडीएस ने 11वीं गोरखा राइफल से अपना करियर शुरू किया। उसे तरह उनके बचपन का भी कनेक्शन है। दोनों उत्तराखंड के पौढ़ी गढ़वाल के रहने वाले हैं। जनरल रावत पौड़ी गढ़वाल जिले के साइना गांव के रहने वाले थे, वहीं मौजूदा सीडीएस अनिल चौहान गवाना गांव के रहने वाले हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार दोनों के गांवों के बीच की दूरी 90 किलोमीटर है।
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