IRCTC घोटाला (फोटो:canva)
अपने पिता लालू प्रसाद यादव के रेल मंत्री रहते हुए IRCTC के कथित घोटाले में तेजस्वी यादव को भी दिल्ली की विशेष अदालत ने आरोपी माना है और धोखाधड़ी की धाराओं में आरोप तय कर दिया है। कई लोगों के मन में यह सवाल है कि 2005 में जब यह टेंडर दिया गया था उसे वक्त तेजस्वी यादव सिर्फ 16 साल के यानी नाबालिग थे। ऐसे में सीबीआई ने एक नाबालिग को किसी भ्रष्टाचार के मामले में आरोपी कैसे बना दिया?
इसका जवाब भी अदालत ने आरोप तय करते वक्त सीबीआई की चार्जशीट के आधार पर दिया है।
सीबीआई ने माना कि घोटाले की शुरुआत 2004 से 2006 के बीच हुई, उस वक्त तेजस्वी यादव नाबालिग थे। लेकिन कोर्ट ने आदेश में कहा कि घोटाले की जड़ भले 2005 में पड़ी हो, लेकिन शेयर ट्रांसफर और आर्थिक लाभ 2010 के बाद हुआ, जब तेजस्वी वयस्क थे। सीबीआई ने भी आरोप पत्र में यह बताया था कि मुख्य साजिश 2004 के बाद शुरू हुई पर इसका असल परिणाम और उससे लाभ लेने की शुरुआत बाद में हुई और तब तक तेजस्वी वयस्क हो चुके थे।
सीबीआई ने कहा कि 2010 से 2014 के बीच जब डीएमसीपीएल (Delight Marketing Company Pvt. Ltd.) के शेयर तेजस्वी यादव और राबड़ी देवी को ट्रांसफर हुए और 2014 में कंपनी का पूरा नियंत्रण लालू परिवार के पास चला गया तब तक तेजस्वी यादव बालिग हो चुके थे। इसका मतलब ये हुआ कि जो आर्थिक फायदा (benefit) इस कथित घोटाले से मिला, वो उन्हें तब मिला जब वे वयस्क थे।
अदालत ने अपने आदेश में माना कि साजिश कई वर्षों तक चली और इसका असर बाद तक रहा। लाभ लेने वाले सभी लोगों को विशेषकर राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव को उस चरण में जिम्मेदार माना जा सकता है जब उन्होंने संपत्ति या शेयर हासिल किए। इसलिए अदालत ने कहा कि नाबालिग होने के समय वो अपराध में शामिल नहीं थे लेकिन बाद में जानबूझकर उस साजिश से फायदा लेने की वजह से उनकी कानूनी जिम्मेदारी बनती है।
कोर्ट ने ये भी कहा कि साजिश सिर्फ एक बार नहीं, बल्कि 2005 से 2014 तक लगातार चलती रही। इस दौरान कंपनी का स्वामित्व और शेयर कई बार बदले, जिनका अंत लालू परिवार के हाथ में हुआ।
सीबीआई ने अदालत को बताया कि डीएमसीपीएल कंपनी, जिसे 2005 में कोचर बंधुओं ने जमीन बेची थी, बाद में 2010 से 2014 के बीच राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव के नाम ट्रांसफर कर दी गई। यह ट्रांसफर बेहद कम कीमत पर हुआ, जिसे थ्रोअवे प्राइस कहा गया।सीबीआई के अनुसार, यह ट्रांसफर क्विड प्रो क्वो (लेन-देन में फायदा) का हिस्सा था, जो उस वक्त रेल मंत्री रहे लालू प्रसाद यादव के प्रभाव से हुआ।
आदेश के मुताबिक भारतीय दंड संहिता की धारा 120-B (आपराधिक षड्यंत्र) के तहत यदि कोई व्यक्ति साजिश से हुए लाभ को स्वीकार करता है या उसका लाभार्थी बनता है, तो उसे भी सह-अपराधी माना जा सकता है। इसलिए कोर्ट ने कहा कि तेजस्वी यादव भले ही उस समय नाबालिग थे, लेकिन उन्होंने बाद में उसी अपराध से अर्जित संपत्ति (shares, land ownership) को अपने नाम लिया। इस वजह से उन्हें beneficiary of conspiracy मानते हुए आरोपी बनाया गया।
ऐसे में कोर्ट का मानना है कि तेजस्वी यादव द्वारा कंपनी के शेयर लेना और कंपनी का नियंत्रण परिवार के हाथ में आना इस बात का संकेत है कि वे उस लाभ के उत्तराधिकारी और सहभागी थे, जो साजिश के जरिए हासिल हुआ।
कोर्ट ने पाया कि शेयर का ट्रांसफर जानबूझकर कम दाम पर किया गया, इससे सार्वजनिक धन को नुकसान हुआ। इन सौदों का असर राज्य के कोष पर पड़ा और इससे लालू यादव के परिवार को सीधा लाभ हुआ। इस कारण तेजस्वी यादव को भी धोखाधड़ी और साजिश के आरोपों में मुकदमे का सामना करना होगा।
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