‘रेवड़ी बन चुका है दिल्ली चुनाव का बड़ा मुद्दा'

बीजेपी हो या कांग्रेस अपने-अपने चुनाव घोषणापत्र में आम आदमी पार्टी की ‘रेवड़ियों’ से ही स्पर्धा करती नजर आयी। दिल्ली चुनाव में रेवड़ियों के प्रति अचानक उमड़ी मोहब्बत के पीछे अरविन्द केजरीवाल के दिल्ली मॉडल का दबाव साफ तौर पर झलक रहा है। पढ़ें वरिष्ठ पत्रकार प्रेम कुमार का यह विशेष आलेख

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आप संयोजक और दिल्ली के पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल (फोटो- @aap)

प्रेम कुमार, वरिष्ठ पत्रकार: दिल्ली विधानसभा चुनाव के आखिरी दौर में सभी दलों के निशाने पर दिल्ली सरकार की ओर से दी जा रही ‘रेवड़ियां’ आ गयी हैं। कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों ही दल इन ‘रेवड़ियों’ को खोखला बताने में जुट गये हैं। इसका मतलब साफ है कि अरविन्द केजरीवाल की ‘रेवड़ियां’ दिल्ली की जनता के जेहन में खासा प्रभाव रख रही हैं और चुनाव के दौरान ‘रेवड़ियों’ का असर मतदाताओं पर पड़ेगा। आलोचना के तौर पर ही सही लेकिन अगर कांग्रेस और बीजेपी ‘रेवड़ियों’ की चर्चा कर रही है तो यह आम आदमी पार्टी की मुराद ही पूरी कर रही है। आम आदमी पार्टी ने स्वयं भी अपनी रणनीति में ‘रेवड़ियों’ को सबसे ऊपर रखा है। आक्रामक तौर पर ‘रेवड़ियों’ के अलग-अलग स्वाद का अहसास वोटरों को कराने में लगी हुई है।

‘रेवड़ियों’ को लेकर प्रतिस्पर्धा

बीजेपी हो या कांग्रेस अपने-अपने चुनाव घोषणापत्र में आम आदमी पार्टी की ‘रेवड़ियों’ से ही स्पर्धा करती नजर आयी। महिला सम्मान योजना के तौर पर आम आदमी पार्टी ने 2,100 रुपये देने का एलान कर रखा है। कांग्रेस ने इसे बढ़ाकर 2,500 हजार रुपये करने की घोषणा की है। छात्रों को रियायती दर पर यात्रा, मेट्रो में रियायती यात्रा जैसे मुद्दों पर भी अरविन्द केजरीवाल की घोषणाओं की नकल देखने को मिलती है। दिल्ली चुनाव में रेवड़ियों के प्रति अचानक उमड़ी मोहब्बत के पीछे अरविन्द केजरीवाल के दिल्ली मॉडल का दबाव साफ तौर पर झलक रहा है।

किसकी रेवड़ी ‘हाइजेनिक’?

वोटरों के बीच विश्वास सबसे बड़ी चीज होती है। किस पार्टी की ‘रेवड़ी’ वोटर स्वीकार करें यह इस बात पर निर्भर करता है कि ये ‘रेवड़ी’ किस वातावरण में बनी हैं, हाइजेनिक भी उसी हिसाब से होंगी। आम आदमी पार्टी ने आम जनता के दुख-तकलीफ और जरूरतों को समझते हुए सत्ता में रहकर रेवड़ी तैयार की और जनता के बीच बांटा। कहावत है- ‘भोज के समय में कोंहड़ा रोना’। इसका प्रतिफल बीजेपी और कांग्रेस को शायद ही मिले। महिला, बुजुर्ग, छात्र सबके लिए केजरीवाल के दिल्ली मॉडल में कुछ न कुछ रेवड़ी है। उन्हें विश्वास भी है कि ये रेवड़ियां उन्हें मिली हैं और आगे भी मिलेंगी। मगर, बीजेपी और कांग्रेस की रेवड़ियों को मतदाता कैसे और क्यों स्वीकार करें?- यह प्रश्न इसलिए खड़ा हो जाता है कि इन पार्टियों ने अपने-अपने शासित राज्यों में ये रेवड़ियां समय रहते नहीं बांट सकी हैं। बीजेपी दिल्ली में 500 रुपये में सिलेंडर देने का वादा कर रही है। मगर, क्या वह ऐसा यूपी में कर सकी है जहां वह 2017 से सरकार में है? यही सवाल कांग्रेस से भी पूछे जा रहे हैं। ये सवाल महज सवाल नहीं, विश्वास का पैमाना तलाशते सवाल हैं। आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविन्द केजरीवाल ने मुफ्त पानी, मुफ्त बिजली, मुफ्त चिकित्सा, मुफ्त यात्रा (महिलाओं के लिए) जैसी रेवड़ियों से अपने अवाम को जो सहूलियत प्रदान की है वह महज रेवड़ी नहीं है। वह महज चंद रुपयों की सहायता भी नहीं है। वास्तव में सरकार ने पहली बार यह बताया और समझाया है कि सरकार होती किसलिए है?

प्रदूषण, यमुना पर रक्षात्मक है ‘आप’

निश्चित तौर पर प्रदूषण, यमुना का गंदा पानी जैसे मुद्दे हैं जिसे आप सरकार हल नहीं कर सकी है। अरविन्द केजरीवाल ने इसे माना भी है। मगर, जिन मोर्चों पर केजरीवाल का दिल्ली मॉडल खड़ा हुआ है वह बहुत मजबूत है। अरविन्द केजरीवाल का यह मॉडल कई तरह की प्रतिकूल स्थितियों के बीच तैयार हुआ है। मुख्यमंत्री रहते अरविन्द केजरीवाल और उनके मंत्रिपरिषद के अहम मंत्रियों को जेल भेजना, ईडी-सीबीआई-आईटी की लगातार रेड जैसी परिस्थितियों में ‘रेवड़ी’ का मॉडल विकसित हुआ है। इसलिए जनता की नज़र में इसकी अहमियत बढ़ जाती है। अरविन्द केजरीवाल मतदाताओं के बीच जाकर गिना रहे हैं कि बिजली, पानी, शिक्षा, चिकित्सा, यात्रा जैसे मदों पर आम जनता को बचत हो रही है और उसका हिसाब लगाया जाए तो यह बचत 25 हजार रुपये महीने से लेकर 50-50 हजार रुपये महीने तक हो रही है। केजरीवाल ने राजनीति बदल दी है। सरकार का मतलब बदल दिया है। छोटी-छोटी सहूलियतें, छोटी-छोटी बचत आम आदमी की जिन्दगी में बड़ा प्रभाव छोड़ती हैं। आम लोगों के जीवन में इन सहूलियतों का बहुत महत्व है। केजरीवाल को यह श्रेय जाता है कि उन्होंने पूरे देश में राजनीति का केंद्रीय विषय आम जनता के लिए सहूलियतें बना दी हैं जिन्हें अब ‘रेवड़ी’ के नाम से जाना जाने लगा है।

आम जनता का सपना पूरा हुआ

दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले छात्र अगर फ्रांस घूम कर आते हैं तो यह आम आदमी का वह सपना है जिस बारे में उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह सपने को जीवित कर पाएगा। दिल्ली के सरकारी स्कूलों से बच्चे मेडिकल, इंजीनियरिंग, एमबीए की पढ़ाई कर रहे हैं। टॉप के पांच स्कूलों में दिल्ली के तीन स्कूल शामिल हैं तो यह निश्चित रूप से दिल्ली सरकार की उपलब्धि है। दिल्ली में रह रहा गरीब तबके का परिवार अगर अपने बुजुर्ग सास-ससुर या मां-बाप का इलाज कराने की हसरत पूरी कर पा रहा है तो यह अन्यत्र दुर्लभ है। संजीवनी योजना लागू होने के बाद बुजुर्गों की जिन्दगी और आसान हो जाने वाली है। दिल्ली के बुजुर्ग तीर्थ यात्रा भी मुफ्त में कर रहे हैं और इस सहूलियत से वे अभिभूत हैं। आम लोगों की नज़र में ये उपलब्धियां हैं। चुनाव में इसका लाभ निश्चित रूप से आम आदमी पार्टी उठाती दिख रही है। आम आदमी पार्टी की रणनीति ही यही है कि ‘रेवड़ी’ पर चुनाव हो। भले ही विपक्ष रेवड़ी की आलोचना ही क्यों ना करे। वास्तव में रेवड़ी मुद्दा बनने पर आम आदमी पार्टी को जनता के बीच अपने किए हुए काम को लेकर जाने का अवसर मिल रहा है। वे मतदाताओं से सीधा संवाद कर रहे हैं। इस दौरान उनकी खीज भी सामने आती है तो वह आम आदमी पार्टी की सियासत और सेहत के लिए बुरा नहीं है। जनता जब एक बार गुस्सा निकाल देती है तो फिर पॉजिटिवली रिएक्ट करने लगती है। ऐसा आम आदमी पार्टी के नेता मान रहे हैं। दिल्ली का चुनाव इसी मायने में दिलचस्प हो चुका है। ‘रेवड़ी’ दिल्ली चुनाव को तय करने जा रही है।

डिस्क्लेमर : प्रस्तुत लेख में लेखक के निजी विचार हैं ।

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