Maha Shivratri 2023 : जयपुर के इस मंदिर में श्री कृष्ण ने की थी महादेव की पूजा, जाने क्या है यहां का पौराणिक इतिहास

Maha Shivratri 2023 : द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने अंबिकेश्वर मन्दिर में महादेव को रिझाया था। इस बात का उल्लेख भगवत् पुराण में मिलता है, जिसमें बताया गया है कि, कान्हा अम्बिका वन में आए नंद बाबा व ग्वालों की टोली संग अंबिका वन में आए थे। यहां पर भगवान शिव का जलाभिषेक किया था। इतिहासकारों के मुताबिक इस मंदिर के नाम पर ही कभी जयपुर की राजधानी रहे आमेर का नाम प्रचलित हुआ। पूर्व में यह आम्बेर था, जो कालांतर में बदल कर आमेर हो गया।

Famous Temple Ambikeshwar Jaipur

जयपुर के अंबिकेश्वर मंदिर में कान्हा ने की थी महादेव की पूजा

तस्वीर साभार : Times Now Digital

Maha Shivratri 2023 : मरू प्रदेश राजस्थान की राजधानी जयपुर अपने गौरवशाली अतीत में सहेजे हुए हैं कई इतिहास। यहां राजसी वैभव के प्रतीक शाही भवन, महल, किले और पुरानी हवेलियां आज भी अपनी गाथाएं सुनाती प्रतीत होती हैं। मगर इनके अलावा भी पिंक सिटी की एक और खासियत है, यहां के पौराणिक मंदिर।

इस बार अगर शिवरात्रि के मौके पर आप जयपुर आने का प्लान बना रहे हैं तो आपको यहां पर महादेव के द्वापर युग का एक अनूठा मंदिर देखने को मिलेगा। जहां पर भगवान श्री कृष्ण ने कभी आशुतोष को रिझाया था। जयपुर से करीब 9 किमी की दूरी पर स्थित प्रसिद्ध आमेर किले के नजदीक सागर मार्ग पर मौजूद है प्राचीन अंबिकेश्वर महादेव मंदिर। इतिहासकारों के मुताबिक इस मंदिर के नाम पर ही कभी जयपुर की राजधानी रहे आमेर का नाम प्रचलित हुआ। पूर्व में यह आम्बेर था, जो कालांतर में बदल कर आमेर हो गया।

नंद बाबा व ग्वालों संग आए थे यहां कान्हायहां के लोगों के मुताबिक द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने इस मन्दिर में महादेव को रिझाया था। इस बात का उल्लेख भगवत् पुराण में मिलता है, जिसमें बताया गया है कि, कान्हा अम्बिका वन में आए नंद बाबा व ग्वालों की टोली संग आए थे। यहां पर भगवान शिव का जलाभिषेक किया था। इसके अलावा भगवत पुराण में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि, इसी स्थान पर श्री कृष्ण ने इन्द्र के पुत्र सुदर्शन को भी श्राप से मुक्त कराया था। जिसमें सुदर्शन को ऋषियों का अपमान करने के कारण अजगर बनने का श्राप था और वह इसी अम्बिका वन में रहता था।

22 फीट की गहराई में विराजे हैं बाबा भोलेनाथद्वापर कालखंड का ये पौराणिक मन्दिर वर्तमान दौर में भी भक्तांे की आस्था का प्रमुख केंद्र है। यहां पर इलाके के लोग भगवान शंकर की आराधना करने आत हैं। सावन के महीने में तो यहां पर भक्तों का तांता लगा रहता है। बता दें कि, इस पौराणिक मंदिर में भगवान शिव जमीन से 22 फीट नीचे विराजित हैं। इस मंदिर की सबसे खास बात तो ये है कि, मानसून के मौसम में भूगर्भ से जल उपर आ जाता है, यही वजह है कि, बारिश के पूरे मौसम में शिवलिंग जलमग्न रहता है। मानसून के विदा होने के बाद शिवलिंग दिखाई देता है। आष्चर्य की बात तो ये है कि, बारिश समाप्त होने के बाद जल भूगर्भ में चला जाता है, जबकि उपर से चढाया गया जल भूगर्भ में नहीं जाता। वहीं पूरा मंदिर 14 खंभों पर टिका हुआ है।

स्वयंभू प्रकट हैं यहां महादेवळालांकि आमेर के इतिहास को लेकर अलग- अलग कई मत हैं। जिसमें कई इतिहासकारों ने आमेर में महाअम्बिका या अम्बरीश नाम के शासक का उल्लेख किया है। वहीं इतिहास में ये भी लिखा गया है कि, मीणा जाति के 52 ठिकानों की प्रमुख राजधानी आमेर को काकिलदेव कच्छावा ने ग्यारहवीं शताब्दी में सूरसिंह व भत्तो मीणा को पराजित कर इसे अपनी राजधानी बनाया। इसके बाद ये भी उल्लेखित है कि, गाय के एक स्थान पर स्वतः दूध देने पर यहां के शासक ने देखा तो उस स्थान कि, खुदाई करवाई। इसके बाद वहां पर शिवलिंग निकला। इसके बाद काकिलदेव ने यहां पर राजस्थान षैली में मंदिर यह भव्य मंदिर बनवाया।

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